भारत को विश्व गुरु बनाने में योग का महत्वपूर्ण स्थान
हमारे ज्ञान और शिक्षा का आधार योग ही है
लखनऊ। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के पूर्व शुक्रवार को “ ज्ञान और अनुभव का संगम: योग ” विषय पर “ अंतर्राष्ट्रीय योग संगोष्ठी ” का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम गोमतीनगर स्थित अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, संस्कृति विभाग, द्वारा किया गया।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रो० मांडवी सिंह कुलपति भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय ने बताया कि प्राचीन समय में अपनी संस्कृति और समृद्धता के आधार पर भारत विश्व गुरु कहलाता था। भारत को विश्व गुरु बनाने में योग का महत्वपूर्ण स्थान है। हमारे ज्ञान और शिक्षा का आधार योग ही है। योग सीधे-सीधे ज्ञान से जुड़ा था। जब ऋषि परम्परा में ज्ञान दिया जाता था तब उसके साथ विद्यार्थियों एवं शिक्षार्थियों को अनुभव कराया जाता था। आज हम शिक्षा तो दे रहे हैं, उनको उपाधि मिल रही है, इसके साथ-साथ शिक्षा एवं ज्ञान के साथ विद्यार्थियों एवं शिक्षार्थियों को अनुभव भी दिया जाना चाहिए।
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रो० मांडवी सिंह कुलपति भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय, मुख्य वक्ता अनन्तश्री विभूषित महामंडलेश्वर स्वामी अभयानंद सरस्वती महाराज, श्रीलंका से वेन डॉ० जुलाम्पिटिये पुण्यासार महास्थविर, संत प्रमोद दास,संस्थान के सदस्य भिक्षु शील रतन, भिक्षु देवानंद वर्धन, तरुणेश बौद्ध, सरदार मंजीत सिंह, आलोक,निदेशक संस्थान डॉक्टर राकेश सिंह, डॉक्टर धीरेंद्र सिंह सहित बौद्ध भिक्षु, छात्र-छात्राएं, अध्यापक,नागरिक एवं बौद्ध विद्वान अन्य लोग उपस्थित रहें।
कार्यक्रम के विभूषित महामंडलेश्वर स्वामी अभयानंद सरस्वती महाराज ने अपने बताया कि ज्ञान और अनुभव के संयोग का नाम योग है। मन दुखी है, मन विक्षिप्त है तो मन को शांत करने की सबसे बडी दवा योग है। मन के कारण ही हम दुखी होते हैं, जैसे हम सो गए तो मन शांत हो जाता है तब हमको सुख एवं दुःख का अनुभव नहीं होता अर्थात कर्मों में कुशलता का मतलब योग है साथ ही महाराज ने योग का स्वरुप क्या है, योग के मार्ग पर क्यों जायें और योग के मार्ग पर कैसे चलें इस पर विस्तार से प्रकाश डाला।
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