‘साहित्य का कोई भी पाठ मानवीय संवेदनाओं की खोज करता है’
मानवाधिकार शिक्षा केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित, शिक्षक ट्रेनिंग की गंभीर कमी
लेख: लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविधालय में डॉ अलका सिंह द्वारा संचालित सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में हो रहे शोध परियोजना पर चर्चा के दौरान डॉ सिंह ने बताया कि "मानवाधिकार और साहित्य एक दूसरे से काफी जुड़े हुए हैं। साहित्य का कोई भी पाठ मानवीय संवेदनाओं की खोज करता है, और मानव समाज को जीने, संकट और कठोर वास्तविकताओं को सहने और जीवन के मूल्यों का आनंद लेने के लिए एक सुंदर दृष्टिकोण प्रदान करता है। जब हम मानवाधिकार, कानून और साहित्य की बात करते हैं, तो हम एक अंत:विषय अध्ययन का उल्लेख करते हैं। यह संबंधित दोनों क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों और पैटर्न की जांच करता है। समकालीन शैक्षणिक वातावरण में, कानूनी अध्ययन के उन्नत स्तर पर, मानवाधिकार और साहित्य के बीच का संबंध महत्वपूर्ण है और पाठ्यक्रम निर्माण के दौरान संबंधित विषयों में इसे उचित स्थान दिया जाना चाहिए।
डॉ अलका सिंह ने कहा कि उत्कृष्टता केंद्र की वर्तमान रिपोर्ट मानवाधिकारों के परिप्रेक्ष्य से अंग्रेजी अध्ययन की विभिन्न शैलियों का अध्ययन करने पर एक नोट प्रस्तुत करती है। केंद्र के तहत मानवाधिकार और अंग्रेजी साहित्यिक अध्ययन के परिप्रेक्ष्य से चुनिंदा ग्रंथों की एक एनोटेटेड ग्रंथ सूची तैयार की जा रही है। यह एक अनूठी शोध परियोजना है क्योंकि इस संबंध में पूरे भारत में कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं किया गया है। इस शोध पर काम करते समय, यह देखा गया कि यह एनईपी 2020 के सिद्धांतों को छूता है, जहां शिक्षण और अनुसंधान में अंत:विषय परिप्रेक्ष्य विकसित करने पर प्रमुख ध्यान दिया गया है। एनईपी 2020 के तहत, शोध कानूनी शिक्षा और मानविकी से संबंधित ग्रंथों की व्याख्या करते समय मानवीय मूल्यों और मानवीय दृष्टिकोणों को समझने के मामले में अंग्रेजी का अध्ययन करने वाले, कानून और साहित्य के छात्रों के कौशल को प्रशिक्षित और तेज करने के लिए एक महत्वपूर्ण अंत:विषय क्षेत्र बनाता है। इस शोध में यह उल्लेख किया गया है कि इस अध्ययन के दायरे में आने वाले सभी साहित्य में एक समान सूत्र है, जो गरिमा, न्याय और समानता के लिए मानव संघर्ष का चित्रण है। हालाँकि, अधिकारों के उल्लंघन की विशिष्ट प्रकृति चाहे वह जाति, नस्ल, लिंग या राजनीतिक उत्पीड़न के कारण हो, संस्कृतियों में भिन्न होती है।
भारतीय साहित्य सामाजिक स्तरीकरण पर जोर देता है; ब्रिटिश साहित्य राजनीतिक नियंत्रण और पितृसत्ता की आलोचना करता है; अमेरिकी साहित्य नस्लीय अन्याय और नैतिक जिम्मेदारी को सामने रखता है; अफ्रीकी साहित्य औपनिवेशिक आघात और पहचान को पुन: प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करता है। पिछले छह महीनों की शोध रिपोर्ट से पता चलता है कि साहित्य न केवल सामाजिक मुद्दों के लिए एक दर्पण के रूप में कार्य करता है, बल्कि पाठकों को सहानुभूति, न्याय और सुधार की ओर मार्गदर्शन करने वाले नैतिक कम्पास के रूप में भी कार्य करता है। यह तुलनात्मक दृष्टिकोण मानवाधिकारों की चिंताओं की सार्वभौमिकता और साहित्य द्वारा विशिष्ट ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भों में उन्हें व्यक्त करने के अनूठे तरीकों को रेखांकित करता है।
इस शोध के तहत प्रस्तावित एनोटेट ग्रंथ सूची विभिन्न शैलियों में अंग्रेजी साहित्य अध्ययन में मानवाधिकारों का व्यापक अवलोकन प्रदान करती है।
गद्य, कविता, नाटक और उपन्यासों की जांच करके, ग्रंथ सूची साहित्य में मानवाधिकारों के प्रतिनिधित्व को समझने के लिए एक समृद्ध संसाधन प्रदान करती है। "मानवाधिकार और अंग्रेजी साहित्यिक अध्ययन (एक एनोटेटेड ग्रंथ सूची बनाना)" पर उत्कृष्टता केंद्र साहित्यिक अध्ययनों के माध्यम से मानवाधिकारों पर आगे के शोध और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए इस ग्रंथ सूची का उपयोग कर सकता है। जबकि शोध व्यापक है, शेष भाग और उसी के बारे में शोध प्रगति पर है। सेंटर ऑफ एक्सीलेंस अपना काम लगन से जारी रखे हुए है और इसका लक्ष्य पर्याप्त प्रगति करना और शोध अवधि के अंत तक संभावित निष्कर्ष स्थापित करना है।
डॉ अपर्णा सिंह द्वारा संचालित सेंटर ऑफ एक्सीलेंस मानवाधिकार शिक्षा की दिशा में उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक पहल साबित होगी। डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की इस प्रगतिशील परियोजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश राज्य में माध्यमिक शिक्षण संस्थानों में मानवाधिकार शिक्षा की स्थिति को दर्शाता है, राज्य के शिक्षा क्षेत्र में ये शोध एक ऐतिहासिक हस्तक्षेप के रूप में उभर रही है। इस महत्त्वपूर्ण परियोजना का नेतृत्व प्रतिष्ठित शिक्षाविद् डॉ. अपर्णा सिंह का कहना है कि परियोजना को उत्तर प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त है। यह शोध कार्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के मूलभूत उद्देश्यों तथा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार शिक्षा कार्यक्रम की वैश्विक प्रतिबद्धताओं के अनुरूप माध्यमिक विद्यालयों में मानवाधिकार शिक्षा को संस्थागत रूप से समाविष्ट करने की दिशा में प्रयासरत है।
अब तक प्रदेश के 13 चयनित जिलों-जैसे लखनऊ, प्रयागराज, कानपुर, बाराबंकी, और बहराईच—में गहन फील्ड सर्वेक्षण संपन्न हुआ है, जिसमें कुल 640 प्रतिभागियों (492 विद्यार्थी, 84 शिक्षक, 56 प्रशासनिक अधिकारी से संवाद किया गया। तथ्य सामने आया है कि अधिकांश विद्यालयों में मानवाधिकार शिक्षा केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित है और शिक्षक प्रशिक्षण की गंभीर कमी है। राज्य बोर्ड से सम्बद्ध विद्यालयों की तुलना में उइरए और कउरए बोर्ड से जुड़े संस्थानों में इस विषय का बेहतर समावेश पाया गया। विशेष रूप से यह देखा गया कि जिन विद्यार्थियों से व्यवस्थित रूप से अवगत कराया गया, उनमें आत्मविश्वास और अभिव्यक्ति की क्षमता अधिक विकसित हुई।
अब तक परियोजना के चार अध्याय पूर्ण किए जा चुके हैं, जिनमें भारतीय दार्शनिक दृष्टिकोण से प्रेरित मानवाधिकार शिक्षा की रूपरेखा, उत्तर प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा की समीक्षा, वर्तमान शैक्षणिक व्यवस्था में मानवाधिकार शिक्षा की स्थिति, तथा विभिन्न बोर्डों हेतु विशेष रूप से प्रस्तावित पाठ्यक्रम ढाँचा शामिल हैं। शेष अध्यायों-डाटा विश्लेषण एवं निष्कर्ष-का कार्य प्रगति पर है। डॉ. अपर्णा सिंह का कहना है कि मानवाधिकार शिक्षा केवल एक विषय नहीं, बल्कि संवेदनशील, जागरूक और न्याय-संपन्न नागरिकों के निर्माण की प्रक्रिया है। यह परियोजना शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाने की दिशा में एक सशक्त कदम है। यह परियोजना न केवल शिक्षा व्यवस्था में मूल्यपरक बदलाव का संकेत है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में अग्रणी भूमिका निभाने को तत्पर है।
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