माकूल वक़्त है, बाँट दीजिए उप्र को मोदी जी
अब अपरिहार्य हो गया है उप्र का बंटवारा!
* बड़े प्रदेश राजनीतिक, आर्थिक, प्रशासनिक हर दृष्टि से गैर जरूरी * सपा, बसपा की ताकत कम करनी है तो उप्र तोड़ना जरुरी * संघ पहले से ही छोटे राज्यों का समर्थक * महाराष्ट्र चुनाव से पहले विदर्भ की भी हो सकती है घोष
(अजय शर्मा)
लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव परिणामों में उप्र के परिणामों ने सबको आश्चर्यचकित कर दिया है। प्रदेश की 80 सीटों पर शतप्रतिशत सफलता हासिल करने का दावा कर रही भाजपा को यहाँ समाजवादी पार्टी -कांग्रेस के संयुक्त इंडिया गठबंधन ने तगड़ा झटका देकर 43 सीटें हथिया लीं। इनमें से 37 सपा तो 6 कांग्रेस ने आपस में बाँट लीं। भाजपा के पास केवल 33 सीटें हाथ आईं। इन परिणामों ने भाजपा के केन्द्र में निर्विघ्न तीसरी बार सरकार बनाने के सपने को तो तोड़ ही दिया, बल्कि सत्ता के लिए उसे एनडीए के बाकी घटकों का मोहताज बना दिया। उप्र के इन परिणामों ने एक बार फिर भाजपा नेतृत्व को उप्र जैसे विराट राज्य को छोटा करने को सोचने को विवश किया है। बता दें भाजपा का मातृ संगठन संघ पहले ही उप्र को सांगठनिक दृष्टि से रुहेलखण्ड, बुंदेलखंड जैसे पांच भागों में बांटे हुए है। भाजपा भी छोटे राज्यों की समर्थक है और उसके अनेक नेता भी उप्र जैसे बड़े राज्य को छोटा किये जाने के पक्ष में हैं। एक समय भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्याक्ष उमा भारती ने तो तीन साल के अंदर उप्र को तोड़कर तीन साल में बुंदेलखंड राज्य बनवाने का वादा भी बुंदेलखंड की जनता से किया था। उस समय वे झाँसी से लोकसभा उम्मीदवार थीं और ज़ब वे ये बात कह रहीं थीं तो प्रधानमंत्री मोदी भी उस मंच पर मौजूद थे और खुद रक्षामंत्री राजनाथ सिंह उमा भारती को प्रोत्साहित भी कर रहे थे। बहरहाल, 207-2012 तक के अपने कार्यकाल में बहुजन समाज पार्टी की मुखिया तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती उप्र को चार राज्यों में बांटने का प्रस्ताव उप्र विधानसभा में पास कराकर केन्द्र को भेज चुकी हैं। हाल के लोकसभा चुनाव में भी पच्छिम उप्र व बुंदेलखंड की सभाओ में उन्होंने उप्र को तोड़कर हरित प्रदेश और बुंदेलखंड को राज्य बनाने की खुलकर वकालत की। भाजपा के इस समय सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकदल के दिवंगत नेता अजित सिंह ने अलग हरित प्रदेश के लिए खुलकर आंदोलन चलाया। इससे पूर्व भी चौधरी चरणसिंह उप्र को बांटने के पक्षधर थे तो बाबा साहेब अम्बेडकर ने न सिर्फ़ संविधान में नए राज्यों के गठन का रास्ता आसान किया बल्कि उप्र को बाँटने के वे भी पक्षधर रहे। किन्तु जवाहरलाल नेहरु की हठधार्मिता के चलते 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग के जबरदस्त रिकमंडेशन के बावजूद उप्र बँटने से रह गया। बहरहाल, जिस तरह के परिणाम उप्र ने हाल के लोकसभा चुनाव में दिए हैं उसने फिर एक बार यह सिद्ध किया है कि उप्र जैसे बड़े राज्य विकास के रास्ते में रोड़ा तो हैं ही, राजनीतिक दलों के लिए भी छोटे छोटे राज्य अपेक्षाकृत बेहतर होते हैं। हिमाचल, उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़, झारखण्ड जैसे छोटे राज्यों में भाजपा को जैसी एकतरफा सफलता मिली है, वह बंटे हुए उप्र अर्थात बुंदेलखंड, पच्छिम या हरित प्रदेश और पूर्वांचल राज्यों में भी मिल सकती थी।
इतना ही नहीं बुंदेलखंड, पूर्वांचल जैसे राज्यों में भरपूर पैसा देने के बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री मोदी की किसी योजना ने न तो इन क्षेत्रों का विकास किया और न कर सकती हैं। चाहें पूर्वांचल एक्सप्रेस हो या बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे, डिफेन्स कॉरिडोर हो या बीडा अर्थात बुंदेलखंड औद्योगिक विकास प्राधिकरण, जिसे नोएडा की तर्ज पर बसाने का असफल प्रयास किया जा रहा है। इनमें से कोई योजना संदर्भित क्षेत्रों के लिए अब तक प्रभावी नहीं हुई हैं और न ही किसी नागरिक को अब तक इनसे कोई लाभ मिला है। अब तो केन्द्र में कमजोर सत्ता के कारण यह गारंटी भी नहीं है कि इन योजनाओं के लिए पूर्व की भांति मुख्यमंत्री योगी को निर्विघ्न फंड मिल भी पाएंगे। ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि प्रधानमंत्री उप्र को बांटने की तैयारी करें ताकि भविष्य में अपनी 80 सीटों के बल पर उप्र किसी बड़े राजनीतिक दल को आंख दिखाने की कोशिश न कर पाए।
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भाजपा को जिस तरह उप्र में सीटों का नुकसान झेलना पड़ा, वह इस बात का गवाह है कि राजनीतिक दृष्टि से बड़े राज्य नुकसानदायक हैं। विदर्भ, बुंदेलखंड, पूर्वांचल का निर्माण अब अपरिहार्य है और संघ, भाजपा में इसके लिए पृष्ठभूमि पहले ही तैयार है। प्रधानमंत्री मोदी साहसिक निर्णयों के लिए जाने भी जाते हैं। समय है उन्हें उप्र को छोटा करने की पहल करनी चाहिए।
राजा बुंदेला
उपाध्यक्ष
बुंदेलखंड विकास बोर्ड
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उप्र के बंटवारे के मुद्दे पर हो काम
उप्र का बंटवारा राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक हर दृष्टि से आवश्यक है। केन्द्र सरकार को जल्द से जल्द उप्र को बांटकर बुंदेलखंड राज्य बनाना चाहिए। वैसे भी गठबंधन सरकार में अब केन्द्र के प्राथमिक एजेंडे पीओके की वापसी, मथुरा, काशी मंदिर, यूसीसी आदि मुद्दे भाजपा को ठंडे बस्ते में डालने होंगे। तब बुंदेलखंड राज्य और उप्र के बंटवारे पर काम होना ही चाहिए।
हरिमोहन विश्वकर्मा
अध्यक्ष
बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा
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भाजपा तमाम प्रयासों के बावजूद उप्र में औधे मुंह गिरी है। न मोदी का जादू चला, न योगी का बुलडोजर काम आया। बल्कि यहां तो बुलडोजर जैसे भाजपा के वोटों पर चल गया। अब वक़्त आ गया है, ज़ब सरकार को पूर्वांचल बनाने पर विचार करना चाहिए। छोटे राज्य ही भाजपा को पुनः सशक्त बना सकते हैं और देश को भी
अनुज राही हिंदुस्तानी
संयोजक
पूर्वांचल राज्य जनांदोलन
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चौधरी अजित सिंह आखिरी सांस तक हरित प्रदेश के लिए लड़ते रहे। अब सरकार में उनके पुत्र जयंत चौधरी भागीदार हैं तो उनका दायित्व है कि चौधरी साहब की आत्मा की शांति के लिए पश्चिमी उप्र को राज्य बनवाने को पहल करें। यह भाजपा, एनडीए, देश और प्रदेश के लिए इस समय सर्वाधिक उपयुक्त रहेगा।
सुधीर कुमार
राष्ट्रीय महासचिव
पच्छिम प्रदेश निर्माण मोर्चा
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