पाण्डुलिपि कागज, छाल, धातु, ताड़ के पत्ते आदि पर संयोजित: गुलाम सरवर
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प्रयागराज। विश्व धरोहर सप्ताह के समापन दिवस पर प्रतिभागियों को कलात्मक, चित्रात्मक व दुर्लभ मूल पाण्डुलिपियों के विषय में जानकारी देते हुए पाण्डुलिपि अधिकारी गुलाम सरवर ने बताया कि पाण्डुलिपि कागज, छाल, धातु, ताड़ के पत्ते अथवा किसी अन्य सामग्री पर कम से कम 75 वर्ष पहले हस्तलिखित संयोजन को कहते हैं। जिसका वैज्ञानिक, ऐतिहासिक अथवा सौंन्दर्यपरक महत्व हो।ईश्वर शरण पीजी कालेज के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा डॉ जमील अहमद व डॉ रागिनी राय के नेतृत्व में संस्कृति विभाग, उप्र के अधीन राजकीय पाण्डुलिपि पुस्तकालय का स्नातक-परास्नातक व शोध छात्रों को शैक्षणिक भ्रमण कराया गया।
इतिहास में पाण्डुलिपियों का महत्व बताते हुए डॉ जमील अहमद ने कहा हस्तलिखित साहित्य का संरक्षण से हमारी संस्कृति तथा सभ्यता की प्रचीनता प्रमाणित होती है। उन्होने पाण्डुलिपियों को संरक्षित करने, रोजगार से जोड़ने के साथ सर्वसुलभता हेतु इनके प्रकाशन तथा डिजिटाइजेशन किये जाने पर बल दिया। इस दौरान प्रतिभाग कर रहे विद्यार्थियों को मूल व दुर्लभ पाण्डुलिपियोें को देखने व समझने का मौका मिला।कार्यक्रम के दूसरे चरण में पाण्डुलिपि अधिकारी गुलाम सरवर ने संग्रहीत पन्नालाल की डायरी मे लिपिबद्ध भगवान रामचन्द्र तथा कौरवों की पारिवारिक विस्तृत वंशावली का दिग्दर्शन कराया।
इसके अतिरिक्त उन्होनें इस पुस्तकालय में विशेष रूप से संग्रहीत अध्यात्म रामायण (1868ई0), बाल्मीकि रामायण, बहारे दानिश (1650ई0), श्रीरामचरित मानस (1794ई0) तथा रामजन्म, सीतापत्तास, भरतमिलाप आदि उच्चस्तरीय व बेहद महत्वपूर्ण पाण्डुलिपि के विषय मे शोधपरक जानकारी भी दी।पाण्डुलिपि अधिकारी सरवर ने सामवेद संहित (सम्वत् 1895), वाजसनेयी संहिता (शाके 1742), विष्णु पुराण (सम्वत् 1897), हरिवंश पुराण (सम्वत् 1697), मेघदूतम् (शाके 1635), चाणक्य नीति के विषय मे रुचिपूर्ण, ज्ञानवर्धक जानकारी दी। उन्होंने उर्दू, अरबी और फारसी मे लिपिबद्ध दो दर्जन से अधिक महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियों के विषय में भी विस्तार से इतिहासपरक जानकारी दी।
औरंगजेब काल मे सुजान राय भण्डारी द्वारा लिखित खुलासतुत्तवारीख जिसमे कौरवों एवं पाण्डवों से प्रारम्भ कर औरंगजेब काल तक का इतिहास समाहित है, बताया।अंत में पाण्डुलिपि पुस्तकालय के हरिश्चन्द्र दुबे व शैलेन्द्र यादव ने प्रतिभागियों को विभिन्न प्रकार की पाण्डुलिपियों के परिक्षण व संरक्षण की परम्परागत व आधुनिक विधियों के विषय मे उपयोगी जानकारी प्रदान करने के साथ-साथ पांडुलिपियों के परिरक्षण, संरक्षण तथा उचित रख-रखाव का प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया।
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