स्वास्थ्य विशेषज्ञोें ने श्वसन संबधित बीमारियों पर की चर्चा
सांस रोगियों को आधुनिक चिकित्सा विधा से इलाज करने को किया फोकस
By Harshit
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लखनऊ। केजीएमयू के रेस्पिरेटरी विभाग में सांस रोगियों के इलाज प्रदान करने के लिए विभिन्न तकनीकि पर चर्चा की गयी। गुरूवार को संस्थान के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन एवं पैलिएटिव केयर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी की गयी। जिसमें पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन श्वसन रोगों के लिए एक आधुनिक चिकित्सा विधा के माध्यम से सिखाया जाता है कि सांस के रोगियों का जीवन दवाओं एवं इन्हेलर्स के बिना किस प्रकार गुणवत्तापूर्ण बनाते हुए रोजमर्रा की परेशानियां को कम किया जा सकता है।
सांस के रोगियों की कार्यक्षमता एवं पोषण को कैसे बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए ही पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन का प्रयोग किया जाता है। ज्ञात हो कि संस्थान के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन केंद्र बनाया गया है। जिसमें अस्थमा, सीओपीडी, इंटरस्टीशियल लंग डिजीज या फिर टीबी के संपूर्ण इलाज के बाद भी जिनकी सांस फूलती है या परेशानी रहती है, ऐसे रोगियों की जीवन की गुणवत्ता और उनकी कार्य करने की क्षमता को बढ़ाने के लिए व्यायाम, पोषण सलाह, काउंसलिंग का सहारा लिया जाता है।
योग, व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान की भी सलाह दी जाती है। पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन केंद्र में रोगियों को डॉक्टर की सलाह पर पंजीकृत किया जाता है। वहीं कार्यक्रम की संरक्षक कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानन्द ने संगोष्ठी के लिए शुभकामनाएं दी। इसी क्रम में पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन सेंटर के प्रभारी डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि देश में करीब 10 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनकी सांस अस्थमा, सीओपीडी, इंटरस्टीशियल लंग डिजीज या टीबी का उपचार पूर्ण होने के पश्चात भी फूलती रहती है । ऐसे रोगियों को दवाओं एवं इन्हेलर से पूरी तरह से आराम नहीं मिल पाता है।
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