जनजातीय कला और स्वाद से गुलज़ार हुआ 'परी बाजार'
गौहर महल में आयोजित चार दिवसीय ‘परी बाजार’ में जनजातीय कार्य विभाग के ‘वन्या’ द्वारा लगाए गए सात स्टॉल्स
भोपाल। गौहर महल में आयोजित चार दिवसीय ‘परी बाजार’ का उद्घाटन गुरुवार को राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने किया। इसमें जनजातीय कार्य विभाग द्वारा संचालित ‘वन्या’ के सात स्टॉल्स लगे हैं। बेगम ऑफ भोपाल क्लब की ओर से आयोजित इस चौथे ‘परी बाजार’ में प्रदेश के जनजातीय अंचलों से आए कलाकार भी अपनी गोंड, भील और बैगा पेंटिंग्स व हस्तशिल्प का प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं, वन्या द्वारा जनजातीय व्यंजनों का एक स्टॉल भी लगाया गया है। जनजातीय कार्य विभाग की उपसचिव एवं वन्या की प्रबंध संचालक मीनाक्षी सिंह ने बताया कि इन स्टॉल्स में जनजातीय कला-संस्कृति, हस्तशिल्प और उनकी सृजनात्मक विरासत देखने को मिलेगी। आगंतुक यहां 14 जनवरी तक दोपहर 2 से रात 10 बजे तक स्टॉल्स पर जनजातीय पेंटिग और अन्य हस्तशिल्प की शॉपिंग के साथ स्वादिष्ट व सेहतमंद जनजातीय व्यंजनों का स्वाद भी चख सकेंगे। गुरुवार शाम हुई सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में वन्या की ओर से गोंड जनजाति के पारंपरिक अहीर समूह नृत्य की प्रस्तुति दी गई।
डिंडौरी के बैगा व्यंजनों का देहाती स्वाद
डिंडौरी से आए लखनलाल उदरिया और दयाराम रठौड़िया जनजातीय बैगा समुदाय के पारंपरिक व्यंजन यहां के स्टॉल नंबर 46 में परोस रहे हैं। दोनों ने बताया कि वे यहां मोटे अनाज यानी मिलेट्स (श्रीअन्न) के व्यंजन बना रहे हैं जिसमें सावा की खीर, कांग कुदई, कोदो और कुटकी शामिल है। वहीं, बैगा समुदाय में लोकप्रिय बांस के व्यंजन में बांस करील और बांस पिहरी परोसी जा रही है। इसे सावन व आषाढ़ में उगने वाले बांस के फूलों और कोमल डालियों को सुखाकर तैयार किया जाता है। साथ ही राई की भाजी और चैच की भाजी भी उनके मेनू में शामिल है।
सुहाग की निशानी अलीराजपुर वाली बांस की बोलनी टोकरी
अलीराजपुर निवासी मीना डोडवा अपने पति कैलाश के साथ वहां के विशेष बांस हस्तशिल्प लेकर यहां आई हैं। वे जनजातीय समुदाय में शादी की रस्मों में शगुन के रूप में दूल्हे द्वारा दुल्हन को दी जाने वाली बांस की बोलनी टोकरी लेकर आए हैं। इस टोकरी में दुल्हन को दूल्हे द्वारा शृंगार भेंट किया जाता है जिसे दुल्हन सुहाग की निशानी की तरह संभालकर रखती है। इस टोकरी को चटकीले रंगों, दर्पण और चमकदार वर्क से सजाया जाता है। इनके स्टॉल नंबर 19 पर यह दंपत्ति बांस से बने हाथ पंखे, सूपड़ा, रोटी की टोकरी, पूजा टोकरी, झाड़ू, बांस की टोपी और टोपली जैसे बांस हस्तशिल्प लेकर आए हैं।
भील चित्रकला में समाए प्रकृति के रंग
यहां लगे स्टॉल नंबर 19 व 20 में झाबुआ की कमनी भाबौर, बड़वानी की सरीता डुडवे भील और ग्लोरिया भाबौर भील पेंटिंग्स और हस्तशिल्प लेकर आईं हैं। कमनी ने छोटे कार्ड्स से लेकर ए-3 साइज की भील पेंटिंग्स में बाहरसिंगा, बतख, पेड़, घोड़ा, मोर, हिरण, घर और गांव के रूप में प्राकृतिक रंग दिखाए हैं। उनके पास 50 रुपये से लेकर दो हजार रुपये तक की भील पेंटिंग्स हैं। वहीं, सरीता ने बताया कि उन्होंने भील पेंटिंग के साथ कई हस्तशिल्प में फ्यूजन किया है। इसमें उन्होंने बांस और लकड़ी की कलाकृतियों पर भील पेंटिंग की हैं। साथ ही डायरी, शो पीस और वॉल हैंगिंग पर भील पेंटिंग उकेरी है। इन्होंने हैंडमेड पेपर और कैनवास पर ए-5 से लेकर ए-3 और 1 बाय 3 साइज में भी पेंटिंग्स तैयार की हैं जिनकी कीमत 3500 रुपये तक है।
पारंपरिक बैगा चित्रकला का फ्यूजन और गोंड पेंटिंग के रंग
उमरिया से आईं रिंकू बाई बैगा ने अपनी पारंपरिक बैगा पेंटिंग्स में देवी-देवता और जीव-जंतुओं का चित्रण के साथ कई फ्यूजन भी किए हैं। उन्होंने बांस के पेन स्टैंड पर बैगा पेंटिंग की है। सूखी बांस मशरूम पर बैगा पेंटिंग कर वॉल हैंगिंग तैयार की है। वहीं, सूखी तुरई पर बैगा पेंटिंग कर वॉल हैंगिंग और पेपरमेशी प्लेट पर बैगा पेंटिंग कर वॉल हैंगिंग तैयार की है। साथ ही वे अपने साथ खमेर की लकड़ी के मुखौटे भी लाई हैं। वहीं, वर्षा टेकाम और बोदनी परस्ते विभिन्न आकार की गोंड पेंटिंग लेकर आई हैं। उन्होंने पारंपरिक चटक रंगों में ए-4 और ए-3 साइज की पेपर पर पेंटिंग बनाई हैं। वही, उन्होंने कैनवास में 2 बाय 3 से लेकर 5 बाय 5 आकार की गोंड पेंटिंग तैयार की है जिसकी कीमत 2 हजार से लेकर 35 हजार तक है। साथ ही बैगा शृंगार के पारंपरिक आभूषण बीरन माला, हार, खनगा, माला और कमर करघन भी खरीदे जा सकते हैं।
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