जनाब, कहीं आप तो नहीं ले रहें नकली चाय की चुस्कियां!

फैजुल्लागंज में पकड़ी गई नकली चाय की फैक्ट्री के बाद उठे कई सवाल

जनाब, कहीं आप तो नहीं ले रहें नकली चाय की चुस्कियां!

रवि गुप्ता/शुभम कश्यप

  • अगस्त 2022 में भी ठाकुरगंज इलाके में धरी गई थी नकली चायपत्ती की खेप
  • टी स्टॉलों व उन्हें चायपत्ती सप्लाई करने वालों के संदेह वाले तार को ढूंढना जरूरी
  • स्वाद व खास कलर से तय होता क्वालिटी व रेट, ग्रीन टी व डिप चाय भी जोरों पर
  • चाय तलब बढ़ाने को इस्तेमाल होता पोस्ता, अफीम, भांग व डोडा पाउडर के अंश

लखनऊ। एक समय था जब रोज चार-पांच कटिंग पी लेता था, यूं तो 'लखनऊ' में तनाव था पर चाय के सहारे जी लेता था, चाय मतलब मोहब्बत का पैमाना, कोई मेहमान आए, लड़का-लड़की दिखाई जाए, या दोस्ती-दुश्मनी, चाय से हर बात सुलझाई जा सकती है, चाय के होटल पर कश्मीर, मस्जिद-मंदिर जैसे मुद्दे पर लोग लड़ जाते हैं, व्यापार, मकान, ज्ञान, पहलवान कभी प्यार में पड़ जाते हैं...जी हां, कहने को तो चाय यह महज दो शब्दों से बना है मगर उक्त पंक्तियों पर गौर करें तो इसके मायने बहुत निकाले जा सकते हैं। अब तो बीते एक दशक से देश-प्रदेश में वैसे भी चाय की महत्ता इस कदर बढ़ गई है कि पहले जहां बड़ी महफ़िलों में कॉफी का असर होता रहा, वहीं अब इससे इतर ‘चाय पे चर्चा’ ने हरखासो आम के बीच अपनी मजबूत जगह बना ली।

बहरहाल, चाय पर किस्से-कहानियां तो बहुत है...मगर बीते मंगलवार को ठीक मकर संक्रान्ति पर्व के रोज़ जिस तरह से राजधानी लखनऊ के फैजुल्लागंज जैसे घनी आबादी के बीच अघोषित तौर पर नकली चायपत्ती तैयार करने वाली अवैध फैक्ट्री का खुलासा और एक-दो नहीं 11 कुंतल से अधिक नकली माल बरामद हुआ, 13 लाख की चीजें मिली और पता चला कि उक्त कारोबारी लखनऊ से सीधे 18 जिलों में नकली चायपत्ती की सप्लाई करता रहा...वो भी बिना किसी जीएसटी नंबर और फूड लाइसेंस के फैक्ट्री दौड़ रही थी। इससे पहले अगस्त 2022 में ठाकुरगंज इलाके में भी इसी तरह नकली चाय पत्ती की बड़ी खेप पकड़ी गई थी...उसके बाद यह यूपी एसटीएफ और लखनऊ एफएसडीए टीम की बड़ी संयुक्त कार्रवाई मानी जा रही।

3 से 4 हजार चाय गुमटी, टी स्टॉल-प्वाइंट...कैसे सैंपलिंग!
बीते एक दशक से अधिक समय से चाय की गुमटी चला रहे कुछ अस्थाई और फुटपाथी चायवालों से बात की गई तो उनका यही कहना रहा कि अकेले लखनऊ शहर में तकरीबन तीन से चार हजार ऐसे खुले टी स्टॉल होंगे और इन पर रोजाना बड़ी संख्या में चाय की खपत होती है। जबकि स्थाई फूड स्टॉल, होटलों, ढाबों, रेस्टोरेंट पर भी चाय मिलती है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि कहीं जनाब, आप भी तो कड़ाके की ठंडक में नकली चाय की चुस्कियां तो नहीं ले रहें।

फूड सेफ्टी टीम के अधिकारियों के अनुसार चायपत्ती की सैंपलिंग की जाती है, मगर इतनी बड़ी संख्या में जब चाय की दुकानें हैं तो क्या यह संभव है कि उक्त टीमें क्रमवार इनके यहां चायपत्तियों की सैंपलिंग कर पाती होंगी या नहीं। वहीं चाय वैराइटी के कुछ जानकारों का दबे जुबां यह कहना रहा कि कभी-कभार चाय की खुश्बू बढ़ाने और कलर लाने के लिये उसमें पोस्ता-अफीम, भांग, डोडा पाउडर के भी कुछ अंश डाले जाते हैं जिससे लोगों के चाय की तलब उनकी दुकानों की ओर ज्यादा बढ़े...हालांकि अभी तक तथ्य और बात की आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पाई है।

शेयर के तर्ज पर चायपत्ती में उतार-चढ़ाव!
याहियागंज व्यापार मंडल से जुड़े और रकाबगंज में बीते तीन दशक से थोक चायपत्ती का उद्यम कर रहे एक प्रमुख कारोबारी के अनुसार जैसे शेयर का भाव हर पल बदलता है, वैसे ही चाय पत्ती की भी खरीद-फरोख्त होती है और वो भी देश में कुछ छह अधिकृत टी बोर्ड ऑक्शन कमेटी है जिनकी कमेटी से जुड़े ब्रोकर के जरिये होलसेल चायपत्ती का कारोबार चलता है। कोलकाता, सिलीगुड़ी, गुवाहटी, कुन्नूर, कोयम्बटूर, कोचीन (तमिलनाडु) से ही पूरे देश में चायपत्ती बाजारों में पहुंचती है।

जबकि लखनऊ में अमीनाबाद, रकाबगंज, नटखेड़ा रोड, तालकटोरा चायपत्ती के होलसेल मार्केट हैं जहां से हरदोई, सीतापुर, बाराबंकी, रायबरेली, सुल्तानपुर, लखीमपुर, बहराईच, गोंडा, अयोध्या, शाहजहांपुर और बरेली तक चायपत्ती का माल जाता है।

ऐसे में बताया गया कि 120 से लेकर एक हजार रुपये प्रति किलो की चायपत्ती की बिकवाली रोजाना होती है, जबकि आजकल डिप-डिप चाय व ग्रीन टीन भी जोरों पर चल रहा है जिनमें चायपत्ती का डस्ट यानी चूरे का इस्तेमाल होता है...तो यह जरूरी नहीं कि जिसमें पत्ती दिख रही हो वही क्वालिटी वाली चाय है...चाय के स्वाद और उसके रंग पर उसकी पूरी क्वालिटी निर्भर करती है और फिर ऑनलाइन टी-बोर्ड के जरिये ट्रेडिंग शुरू होती है।

बहराइच-नानपारा तो नहीं कलर वाली चाय का गढ़!
फैजुल्लागंज में जो नकली चायपत्ती फैक्ट्री पकड़ी गई, बताया गया कि उसके धंधे के तार कहीं न कहीं प्रमुखता के साथ बहराइच से भी जुड़े हैं। जबकि इस कारोबार से जुड़े कुछ लोगों की माने तो नानपारा कहीं न कहीं कलर वाली चाय का गढ़ है, जहां का नेटवर्क प्रदेश के कई जिलों में फैला हुआ है। वहीं लखनऊ के ही थोक चायपत्ती कारोबारियों की माने तो इन कलर वाली या फिर मिलावटी चाय बनाने वाले लोगों के चलते उनके पुराने चायपत्ती के विश्वसनीय धंधे पर नकारात्मक असर तो पड़ता ही है।

लिवर-किडनी प्रॉब्लम, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम!
-प्रो. डॉ. आकाश माथुर, पूर्व प्रोफेसर पीजीआई गैस्ट्रोएंटरोलॉजी ने कहा कि नकली चाय पत्ती का सेवन पेट और संपूर्ण स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। इसमें मौजूद हानिकारक रसायन कृत्रिम रंग और हानिकारक पदार्थ, पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं। नकली चाय पत्ती पेट में जलन, गैस, एसिडिटी और अपच जैसी समस्याओं को बढ़ा सकती है।

हानिकारक केमिकल्स लिवर और किडनी पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। लंबे समय तक इसका सेवन करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो सकती है। डॉ. विवेक वर्मा, एमडी मेडिसन बोले कि चाय में यदि लकड़ी बुरादा, सैंडस्टोन, डोडा या पोस्ता पाउडर, सूखी पत्ती जैसे स्तेमाल किया जा रहा है। पेट, हार्ट, गुर्दा, पेशाब करने में दिक्कत हो सकती है।  

डॉ. एसपी सिंह, चेस्ट फिजिशियन सीएमएस, ठाकुरगंज संयुक्त टीबी अस्पताल ने कहा कि बुजुर्ग हो या युवा पीढ़ी सभी को चाय की चुस्की लेना पसंद है। हालांकि हद से ज्यादा चाय हो या कोई खादपदार्थ वो नुकसानदायक ही होता है। अब लोग खाने से ज्यादा चाय पर निर्भर हो गये है। यदि उसमें भी मिलावटी हो रही है सभी को पेट, गुर्दा, लीवर,और पेशाब में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

क्या बोला फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट...!
इस मुद्दे पर विजय प्रताप सिंह, सहायक आयुक्त, खाद्य सुरक्षा विभाग लखनऊ बोले कि जो मामला अभी पकड़ा गया है, उसकी ट्रेसिंग हमारी टीमें दो माह पूर्व से कर रही थीं। इसके नेटवर्क बहराइच, नानपारा, नेपाल से तो जुड़े लग रहे हैं, उसको खंगाला जा रहा है। वहीं गोंडा, बलरामपुर, शाहजहांपुर, सीतापुर बेल्ट की भी हमारी विभागीय टीमें सक्रिय कर दी गई हैं, इसीलिये उक्त मामले में एफआईआर दर्ज कराई गई है ताकि रणनीति बनाकर ठोस कार्रवाई की जा सके।

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