जनता दरबार: दिखता अनुशासन, झलकता सिस्टम...अंतत: भीड़तंत्र!
एक ही दिन में तीन अलग-अलग फोटो में नज़र आता विभिन्न नज़रिया
रवि गुप्ता
- गोरखपुर में सीएम व लखनऊ में सरकारी आवासों पर क्रमश: दोनों डिप्टी सीएम
- यूपी में चौधरी चरण सिंह व मायावती सीएम रहते, औचक दौरे पर निकल पड़ते थे
लखनऊ। कुछ समय पहले बॉलीवुड सिल्वरस्क्रीन पर एक फिल्म नायक काफी चर्चित रही, जिसमें अभिनेता अनिल कपूर कुछ तात्कालिक परिस्थितियों के मद्देनजर महाराष्ट्र राज्य का एक दिन का सीएम बनता है और फिर 24 घंटे के अंदर वो ताबड़तोड़ जमीनी दौरा, मौके पर ही समस्याओं का निस्तारण और विभागीय जिम्मेदारी में लापरवाही बरतने वाले अफसरों का वहीं पर सस्पेंशन करना...बहरहाल, फिल्म ने आर्थिक तौर पर तो बहुत कमाई नहीं की, लेकिन सरकार-सिस्टम-जनता के बीच जिस तानेबाने को बेहतरीन ढंग से फिल्माया गया था तो लोगों ने इसे काफी पसंद किया।
देश-प्रदेश के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में बीते सात सालों से निरंतर सूबे के मुखिया का पदभार संभाल रहे योगी आदित्यनाथ चुनावी प्रचार के नज़रिये से केवल फॉयर ब्रांड राजनेता ही नहीं बल्कि हर खासोआम पब्लिक के बीच उनकी छवि एक अनुशासित, कड़क, सादगीपूर्ण और त्वरित निर्णयन क्षमता वाले शासक या फिर मुख्यमंत्री की बनकर उभरी है। तभी तो 2017 जब से उन्होंने यूपी की सत्ता संभाली है, तभी से नये सिरे से जनता दरबार की नींव रखी और अपने अति व्यस्ततम कार्यक्रमों के बीच वो जब भी प्रदेश में रहते हैं तो चाहे गोरखपुर या फिर राजधानी लखनऊ सरकारी आवास पर बड़े ही अनुशासित ढंग से जनता दरबार में लोगों की जनसमस्यायें सुनते रहते हैं।
वैसे, यह भी सही है कि अभी तक यूपी में किसी भी सीएम ने जनता दरबार की कोई अवधारणा नहीं रखी थी। जबकि वरिष्ठ राजनीतिक जानकार शिवबली विश्वकर्मा की माने तो बतौर यूपी सीएम रहते चौधरी चरण सिंह या फिर बहन मायावती का काफिला यकायक औचक दौरे पर निकल पड़ता था ताकि वो सरकारी तंत्र की खामियों और जनता से सीधे तौर पर रूबरू हो सके।
सोमवार को इसे एक राजनीतिक संयोग ही कहेंगे कि एक ओर जहां सीएम योगी गोरखनाथ मंदिर परिसर में हर बार की तरह बड़े ही तल्लीनता के साथ जनता दरबार में लोगों की समस्यायें सुनते दिखे, तो वहीं लखनऊ सरकारी आवास पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी बड़े ही सहजता से जनता दरबार में समस्यायें सुनते नज़र आये जबकि इनसे इतर जो तीसरी फोटो दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक की नज़र आयी, उसमें अनुशासन कम, सहजता की जगह भीड़तंत्र सा दिखा। वैसे सत्ता-शासन से जुड़े राजनीतिक जानकारों के अनुसार यह कोई नयी बात नहीं है, बल्कि योगी का जनता दरबार तो संयमित रहता है, केशव प्रसाद भी जनता दरबार में नियम-कायदे के साथ मिलते हैं और वहीं ब्रजेश पाठक के जनता दरबार का हाल ऐसे ही होता है जिसमें हो-हल्ला ज्यादा, भीड़भाड़ अधिक और निष्कर्ष कम ही बार निकलकर आता है।
कुछ अन्य सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारियों की माने तो सीएम के जनता दरबार का तो असर संबंधित मंडल व जनपदीय ब्यूरोक्रेसी पर तो त्वरित गति से पड़ता है, उसकी जवाबदेही भी तय होती है और बकायदा मॉनीटरिंग भी होती रहती है...जबकि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद के जनता दरबार में चूंकि चिन्हित व चयनित लोग पहुंचते हैं तो ऐसे में वहां पर भी समस्या निस्तारण कराने में सहजता रहती है, मगर डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के जनता दरबार में जो असीमित भीड़ होती है तो ऐसे में जनसमस्या सही फोरम तक नहीं पहुंच पाती है और फिर केवल खानापूरी होकर रह जाती है।
जनता दरबार की भी होनी चाहिये समीक्षा: हेमेंद्र तोमर
यूपी में कुछ अर्से से चल रहे जनता दरबार पर वरिष्ठ पत्रकार हेमेंद्र प्रताप तोमर का मत इससे अलग ही है, वो तो इस अवधारणा को एक सिरे से खारिज़ करते हैं। कहते हैं कि जब जिलों, तहसीलों, मंडलों, कस्बों, गांवों व पंचायतों आदि में संबंधित प्रशासनिक टीम जनसमस्याओं से किनारा करती है तो तभी कोई भी जन 300 से 400 किमी दूर कहीं लखनऊ तो कहीं गोरखपुर के जनता दरबार की दौड़ लगाता है।
हालांकि यह भी कहते हैं कि सीएम योगी के जनता दरबार का तो जहां तक उनके पास फीडबैक रहता है, उसका तो कोई परिणाम निकलता है, मगर उनके दोनों डिप्टी सीएम के जनता दरबार की हकीकत क्या है, इसकी भी बराबर समीक्षा होनी चाहिये। आगे बोले कि इसी सरकार में प्रभारी मंत्री बनाये गये, थाना दिवस व तहसील समाधान आदि दिवस होते हैं, फिर भी समस्यायें का अंबार लगा रहता है, इस पर भी प्रदेश सरकार को मंथन करना चाहिये।
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