एकल परिवारों की 68.4 फीसदी लड़कियां हो रही गुम, 13 से 17 वर्ष की उम्र में छोड़ रही घर

  एकल परिवारों की 68.4 फीसदी लड़कियां हो रही गुम, 13 से 17 वर्ष की उम्र में छोड़ रही घर

इंदौर । शहर में पांच साल में गुम हुईं 13 से 17 वर्ष आयु की 68.4 प्रतिशत लड़कियां उन एकल परिवारों की हैं, जिनमें माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं। हालांकि संभ्रांत परिवारों के मुकाबले मजदूर व कामकाजी वर्ग के परिवारों की लड़कियों के गुम होने की संख्या ज्यादा हैं। यह चौंकाने वाला खुलासा शनिवार को इंदौर पुलिस द्वारा शहर से गुम हुई लड़कियों की रिपोर्ट का अध्ययन कर आईआईएम इंदौर ने किया है।

इंदौर पुलिस और आईआईएम के प्रयासों से तैयार की गई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कम उम्र की लड़कियां किडनैपिंग या बाहरी चकाचौंध से प्रभावित नहीं हो रही हैं बल्कि अधिकतर मामलों में मुख्य कारण परिवार में होने वाली रोक-टोक, झगड़े और समस्याएं हैं। इस स्टडी में पांच साल का डेटा का एनालिसिस किया गया है।

आईआईएम ने इस रिपोर्ट के साथ स्कूली पाठ्यक्रम में कक्षा आठवीं से 12वीं के छात्रों के लिए सेक्स एजुकेशन आवश्यक करने की सिफारिश भी की है। प्रबंधन का दावा है कि इससे नाबालिगों के गायब होने की संख्या में कमी आएगी। गौरतलब है कि इंदौर पुलिस ने पांच जुलाई 2023 को आईआईएम इंदौर के साथ एमओयू साइन किया था। इसके बाद पुलिस ने इंदौर में पिछले पांच वर्षों में गुम लड़कियों की रिपोर्ट आईआईएम प्रबंधन को सौंपी थी। छह माह में रिपोर्ट के अध्ययन के बाद आईआईएम इंदौर ने शनिवार को पुलिस आयुक्त मकरंद देउस्कर को इसकी रिपोर्ट सौंपी।


13 से 17 साल की लड़कियां हो रही हैं गायब

आईआईएम के डायरेक्टर हिमांशु राय ने बताया कि स्टडी में पता चला है कि गुमशुदगी वाले बच्चों में 13 से 17 साल की लड़कियां सबसे ज्यादा होती है। इसमें हमें इंदौर के कई क्षेत्र भी पता चले हैं, जहां से लड़कियां ज्यादा गायब होती हैं। इनमें चंदन नगर, आजाद नगर, लसूड़िया, द्वारकापुरी और भंवरकुआं शामिल हैं। यह सभी वह क्षेत्र हैं जिनके आसपास अर्बन स्लम एरिया है। जो बच्चे गुम होते हैं उनमें 75 प्रतिशत लड़कियां होती हैं।

वापस नहीं लौटना चाहती लड़कियां

रिपोर्ट यह भी कहती है कि घर से गायब होने वाली हर दूसरी लड़की अब वापस घर नहीं लौटना चाहतीं। उन्हें ये भी लगता है कि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है। लड़कियां जिन लड़कों के साथ जाती हैं उनमें से अधिकतर लड़कों की उम्र 18 से 23 साल है। इनमें भी ज्यादातर मामलों में लड़के इन लड़कियों के परिचित, रिश्तेदार या आस पड़ोस के रहने वाले ही होते हैं। रिसर्च के दौरान 70 से ज्यादा केस को देखा गया। इनमें सभी पक्षों के इंटरव्यू लिए गए। 50 सवालों के जवाब अलग अलग लोगों से लिए गए।

रिपोर्ट के मुताबिक गुम होने वाले नाबालिगों में 68.4 प्रतिशत लड़कियां एकल परिवारों की हैं। हैरानी की बात यह कि 40 प्रतिशत को लगता है कि उन्होंने कोई गलती नहीं की है। 43 प्रतिशत लड़कियां ऐसी भी हैं, जो माता-पिता के पास लौटना ही नहीं चाहतीं। आईआईएम ने कहा कि लड़कियां शहरी चकाचौंध नहीं बल्कि बहकावे और अंदरूनी कारणों से अपना घर छोड़कर जाती है।

रिपोर्ट में दिए ये सुझाव

- प्रोफेसर राय ने पुलिस को बताया कि पीड़ित लड़कियों ने घरेलू हिंसा, कम उम्र में शादी का दबाव और माता-पिता की डांट-फटकार के कारण भी घर छोड़ा है। इसके लिए स्वजन की भी ट्रेनिंग आवश्यक हो।

- ऊर्जा डेस्क और काउंसलर को भी प्रशिक्षण की आवश्यकता है। थाने में आने वाले प्रकरणों में उपदेश, आदेश, सवाल न करें, बल्कि बच्चों की काउंसिलिंग करें।

- बच्चियां इंस्टाग्राम के जरिए ही लड़कों के संपर्क में आती हैं। इंस्टाग्राम के माध्यम से उन्हें कानून के बारे में बताया जाए।

- पाक्सो एक्ट और दुष्कर्म की धारा की जानकारी दें। लड़कियां घर छोड़ने के बाद सिनेमा हाल भी जाती है। सिनेमा हाल में शार्ट मूवी के जरिए भी शिक्षित किया जा सकता है।

सेक्स एजुकेशन आवश्यक

- आईआईएम ने इन्फार्मेशन एजुकेशन एंड कम्यूनिकेशन (आइइसी) स्टेटजी का निर्माण किया है। सेक्स एजुकेशन को भी आवश्यक बताया है। कहा कि फिजिकल परेशानियों के बारे में बताया जाना चाहिए। राज्य सरकार से भी सिफारिश करना आवश्यक है। टीम ने गुम बच्चे-बच्चियों के मामलों की जांच करने वाले पुलिसकर्मियों से भी बात की। पुलिसकर्मियों ने बताया कि विवेचना के दौरान जेब से रुपये खर्च होते हैं। आईआईएम ने ऐसे पुलिसकर्मियों को भत्ता, पुरस्कार, सराहना और फैमिली काउंसिलिंग सेल के गठन की सलाह दी है।

पूरे राष्ट्र को लाभ मिलेगा

आईआईएम इंदौर ने 20 केस स्टडी भी तैयार की है। इस रिपोर्ट से राज्य ही नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र को लाभ मिलेगा। यह एक गंभीर मामला है। आइआइएम पुलिस को प्रशिक्षण देने के लिए तैयार है। - प्रो.हिमांशु राय, डायरेक्टर आईआईएम इंदौर

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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है। 

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