कानून को बलाए ताक पर रखकर मजिस्ट्रेट ने किया आदेश
आबादी की भूमि पर है सार्वजनिक गली, संक्रमणीय बताकर खारिज कर दी रिपोर्ट
नायब तहसीलदार ने सार्वजनिक गली से अतिक्रमण हटाने के लिए भेजी थी रिपोर्ट
चंदौली/वाराणसी। कार्यपालक मजिस्ट्रेट (अपर पुलिस उपायुक्त कमिश्नरेट) ममता रानी की कोर्ट ने 133 सीआरपीसी के मुकदमे में एक ऐसा तुगलकी फरमान सुना दिया है कि न्याय प्रणाली ही शर्मसार होने लगी है। कोर्ट के इस फैसले से एक तरफ जहां पीडि़त न्याय से वंचित है,वहीं दूसरी तरफ कार्यपालक मजिस्ट्रेट के ऊपर भी तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं। पुलिस अफसर ने इस तरीके से भूमि की नवैयत बदल कर फैसला कैसे और किन परिस्थितियों में सुनाया यह एक पहेली बन गई है।
बताते चले कि राजातालाब तहसील की तत्कालीन नायब तहसीलदार प्राची केसरवानी ने पिछले वर्ष यानी 4-8- 2023 को तत्कालीन एसडीएम राजातालाब को 133 सीआरपीसी के तहत इस आशय की रिपोर्ट भेजी थी कि ग्राम पंचायत बसवरिया में आबादी की भूमि से घनश्याम पाठक के घर तक जाने वाली सार्वजनिक गली पर गांव के ही श्याम सुंदर पाठक व आशुतोष पांडेय द्वारा जबरन बांस बल्ली व काट रखकर मार्ग को अवरुद्ध कर दिया गया है,उक्त अतिक्रमण को हटाने के लिए जंसा पुलिस बल के साथ प्रयास किया गया,परंतु उपरोक्त आरोपियों के विरोध के चलते अतिक्रमण को हटाया नहीं जा सका। एसडीएम ने उक्त रिपोर्ट को तत्कालीन एसीपी राजातालाब को भेज दिया।
एसीपी ने उक्त 133 सीआरपीसी की रिपोर्ट अपर पुलिस उपायुक्त की कोर्ट को सुपुर्द कर दिया। अपर पुलिस उपायुक्त ममता रानी सिंह ने मामले को संज्ञान में लेते हुए दोनों पक्षों को नोटिस जारी कर कोर्ट में अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया। निर्देश के क्रम में दोनों पक्ष कोर्ट में पेश होकर अपने साक्ष्य और सबूत भी रखें। अपर पुलिस उपायुक्त कमिश्नरेट ममता रानी सिंह खुद पिछले वर्ष दिसंबर के अंतिम सप्ताह मे मौके पर पहुंचकर मौका मुआयना भी किया। परंतु जब उन्होंने 12 जनवरी 24 को अपना आदेश जारी किया तो उसमें उन्होंने आबादी की भूमि पर सार्वजनिक गली से अतिक्रमण हटवाने का आदेश पारित करने के बजाय उसे सक्रमणीय भूमि से जोड़कर हाईकोर्ट के रूलिंग का हवाला देते हुए यह कह कर नायब तहसीलदार द्वारा भेजी गई 133 सीआरपीसी के तहत जारी प्रारंभिक रिपोर्ट 15-9-23 को खारिज कर दिया कि संक्रमणय भूमि पर सरकार या सरकारी एजेंसी किसी रास्ते का निर्माण नहीं करवा सकती है।
कोर्ट का हास्यास्पद आदेश तो यह है कि जिस सार्वजनिक मार्ग से अतिक्रमण हटाने के लिए रिपोर्ट भेजी गई थी वह संक्रमणीय नहीं बल्कि आबादी की भूमि है। ऐसे में अपर पुलिस आयुक्त द्वारा अतिक्रमणकारियो को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से भूमि की नवैयत बदलकर आदेश पारित किया जाना निश्चित तौर से गलत प्रतीत होता है। जग जाहिर है कि कानून संभावनाओं पर नहीं बल्कि पुख्ता सबूतों पर चलता है। इसके बावजूद भी कार्यपालक मजिस्ट्रेट ममता रानी ने कानून से हटकर गलत आदेश पारित किया है। इस मामले में कार्यपालक मजिस्ट्रेट ममता रानी से बातचीत करने का प्रयास किया गया परंतु उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया।
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