लखनऊ के ‘नूर’ ने रामलला को याद कर 100 रु. में दे दी सारी सब्जी!
सब्जी बेचने वाले नूर आलम को याद रहे रामलला, अयोध्या नहीं, अब प्रयागराज बना भाजपा का मुद्दा
रवि गुप्ता
- एक साल पूर्व 22 जनवरी को अयोध्या में हुआ था श्रीरामलला प्राण प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन
- लखनऊ में जगह-जगह लोगों ने किये भंडारे व सुंदरकांड पाठ और भजन-कीर्तन
- भाजपा कार्यालय, सरकार, संगठन की नहीं दिखी दिलचस्पी, कहीं बस चर्चा भी कर दी
लखनऊ। अब इसे शहर-ए-लखनऊ के कौमी एकता की मिसाल कहें या फिर आपसी भाईचारे की भावना, 14-15 साल के बिना पढ़ें-लिखे सब्जी बेचने वाले नूर आलम को तो यह याद रहा कि आज 22 जनवरी के ही दिन, एक साल पहले अयोध्या में रामलला का प्राण प्रतिष्ठा समारोह मनाया गया था...मगर जिस राम के नाम पर अपने को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाली भाजपा बीते एक दशक से केंद्र में दिल्ली और राज्य में यूपी से लेकर अन्य कई राज्यों में सत्तासीन बनी हुई है, अब उस ‘न्यू बीजेपी’ के प्रधान सेवक से लेकर न तो उनके दल के किसी राज्य सरकार और न ही माननीयों और न ही कार्यकर्ताओं ने 22 जनवरी के दिन को याद किया। राजधानी लखनऊ में तो आलम यह रहा कि इस अति महत्वपूर्ण दिवस को लेकर कहीं किसी प्रकार का आयोजन नहीं दिखा।
वहीं रोजाना सब्जी बेचकर अपने परिवार का पेट पालने वाले नन्हें नूर ने इंदिरानगर तकरोही क्षेत्र के शांतीनगर कॉलोनी वासियों के उत्साह को देखकर रामलला के नाम पर अपनी ठेलियां पर रखी 500 की सब्जी को महज 100 रुपये में दे दी और बोला कि भंडारा खाये अइबै बाबू जी।
इस मुद्दे पर जब कुछ लखनऊ वासियों से बात की गई तो उनका साफ तौर पर यही कहना रहा कि भाई जी, हम सबको तो सुबह से याद था, उम्मीद थी कि सरकार और पार्टी के लोग भी जगह-जगह कार्यक्रम करेंगे, मगर कहीं पर भी ऐसा कुछ नहीं दिखा। वहीं कुछ बुद्धिजीवियों का कहना रहा कि, दरअसल अब अयोध्या न्यू बीजेपी के लिये बीते दिनों की बातें हो गईं, अब तो उनका सारा फोकस प्रयागराज और महाकुम्भ पर टिका हुआ है...जिसके सहारे 2027 के चुनावी वैतरणी को पार करने का पथ तैयार किया जा रहा है।
वहीं अयोध्या नगर के ही कुछ नागरिकों का कहना रहा कि, आज से एक साल पहले इसी दिन जब विगत 22 जनवरी को कंपकपाती ठंडक थी, बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों का बाहर निकलना मुश्किल था तो फिर इसके बाद भी मोदी जी ने योगी जी के साथ मिलकर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन करा दिया था। वहीं कुछ जानकारों का यह भी मत रहा कि उस दौरान कई संत व मठ समुदायों से यह बातें भी उठी थी कि अभी रामलला का मंदिर अर्धनिर्मित है, ऐसे में प्राण प्रतिष्ठा कराना तर्कसंगत और धर्मसंवत नहीं है...तब तो कोई खास तारीख, कोई खास तिथि नहीं देखी गई।
जबकि उस दौरान यह भी चर्चा थी कि यदि प्राण प्रतिष्ठा समारोह करनी ही है, तो आगे रामनवमी या नवरात्रि पर्व पर करते। जबकि इधर देखा जाये तो 22 जनवरी के बजाये गत 11 जनवरी को ही प्राण प्रतिष्ठा समारोह का वार्षिकोत्सव मनाया गया। इसके पीछे यही तर्क दिया गया कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित हुआ था, और जिस दिन पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी का दिन था जोकि अबकी बार 11 जनवरी को पड़ रहा था तो ऐसे में वार्षिकोत्सव मनाया गया।
इस बात पर कुछ राजनीतिक जानकारों का मत रहा कि क्या महज एक समुदाय के खास कैलेंडर के सहारे लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई किसी दल की कोई सरकार चलती है और उसका कार्यक्रम चलता है। जब अंग्रेजी कैलेंडर हमारे दैनिक जीवनयापन से लेकर सरकार, संगठन, समाज, नागरिक, तीज-त्यौहार-अवकाश और हर किसी के जीवनपहलू से जुड़ा हुआ है तो फिर श्रीरामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह के एक साल पूरे होने के दौरान इस तथ्य को क्यों भुला दिया गया।
वहीं इस मुद्दे पर सपा नेता रविदास मेहरोत्रा ने कहा कि भाजपा अवसरवादी पार्टी है, ऐसे में जब अयोध्या में हार गये तो अब राम को भूल गये और सारा फोकस प्रयागराज पर टिका दिया। आगे ये लोग मिल्कीपुर में भी उपचुनाव हारेंगे और जनता-जनार्दन सब देखेगी।
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