क्षेत्रीय दलों की अहमियत : सिकंदर यादव
गाजियाबाद। ( तरूणमित्र )
2024 का लोकसभा चुनाव कई मायनों में अभूतपूर्व रहा, भाजपा के साथ-साथ राजनीतिक पंडितों को भी परिणामों ने चौंकाया भाजपा ने जहां राम मंदिर के निर्माण को मुद्दा बनाकर राष्ट्रीयता की लहर पैदा करने की कोशिश की, जिस प्रकार 2019 में बाला कोट को केंद्र में रखकर की गई थी, परंतु उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश के मतदाताओं ने उसे नकार कर क्षेत्रीय पार्टियों पर अपना विश्वास जताया, जिस उत्तर प्रदेश से भाजपा को सबसे ज्यादा उम्मीद थी वहीं पर अखिलेश जी व राहुल जी की जोड़ी ने कमाल का प्रदर्शन किया, भाजपा को सबसे बड़ा झटका सपा, कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग से लगा जिस कारण गठबंधन को 43 सीटें जीतने में मदद मिली, इसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी यहां तक की अयोध्या की सीट भी बीजेपी हार गई और मेरठ भी जैसे तैसे अंत में जीत पाई, सपा ने जो पी.डी.ए का नारा दिया था उसे कोई गंभीरता से नहीं ले रहा था परंतु जनता ने अभूतपूर्व समर्थन देकर सत्ता के खिलाफ अपना मत दिया। सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं तमिलनाडु से लेकर बंगाल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बिहार आदि में भी जहां भी क्षेत्रीय पार्टी मजबूत हैं वहां पर लोगों ने उनका साथ दिया। हालांकि बीजेपी हमेशा राष्ट्रवाद की बात करती है परंतु लोगों के मत ने ये साबित कर दिया कि बिना क्षेत्रीय विचार के राष्ट्रवाद की बात निराधार होगी क्योंकि भारत एक विविधता वाला राष्ट्र है इन विभिन्नताओं का नेतृत्व क्षेत्रीय पार्टी करती है और बिना क्षेत्रीय पार्टियों को साथ लिए आप ज्यादा समय तक भारत में, सत्ता में नहीं रह सकते। ये चुनाव परिणाम से सिद्ध हो गया आज जो एन.डी.ए की सरकार बनने जा रही है वो इन्हीं क्षेत्रीय पार्टियों के बलबूते ही सरकार बन रही है और यदि भाजपा को अपनी सरकार लंबे समय तक स्थिर रखनी है तो उसे इन क्षेत्रीय दलों का सम्मान करना पड़ेगा। पूर्व में कांग्रेस के 10 वर्ष यू.पी.ए सरकार में भी मिली जुली सरकार सफलतापूर्वक कार्य कर सकी है यानी राष्ट्रीय अस्मिता क्षेत्रीय विचार के बिना नहीं चल सकती।
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