लौकी और कद्दू के पूरे रेट पा रहे किसान
लखनऊ। लखनऊ में सीतापुर रोड स्थित नवीन मंडी में लौकी और कद्दू की जोरदार मांग है।किसान अपने पैदावार लौकी और कद्दू के पूरे रेट पा रहे है। मंडी में लौकी का रेट 12 सौ रुपये प्रति कुंटल है तो कद्दू के रेट में भी ज्यादा फर्क नहीं है। कद्दू का रेट 1250 रुपये प्रति कुंटल प्रत्येक किसान को मिल रहा है।बाराबंकी से नवीन मंडी पहुंचें किसान संतोष वर्मा और उनके साथी ने कहा कि सामूहिक प्रयास से लौकी और कद्दू उगाया जा रहा है। बहुतायत में उगने वाली यह सब्जियां उपयोग में लाने के बाद मंडी में बेच दी जाती हैं।
मेहनत लागत के अलावा भाड़ा जोड़कर जो रेट मंडी में मिल रहा है, उससे वह संतुष्ट है। उन्होंने कद्दू को मंडी में 12 सौ रुपये के रेट से बेचा है, जबकि कुछ घंटे के बाद पचास रुपये रेट अधिक हो गया है।उन्होंने कहा कि किसान को उसके पैदावार को पूरा रेट मिलने पर बेहद खुशी होती है। कद्दू की मांग गर्मी के मौसम में पूरे समय बनी रहती है। वैसे भी कद्दू और लौकी की खपत शहरी क्षेत्र में ज्यादा होती है। लखनऊ तो लौकी और कद्दू का बहुत बड़ा बाजार है। जिससे आसपास के जनपदों के किसानों को बड़ी राहत रहती है।
बाजार में लौकी, कद्दू 20 रुपये प्रति किलो-
नवीन मंडी से होलसेल रेट पर सब्जियां खरीदकर फुटकर में बेचने वाले नौशाद ने बताया कि लखनऊ शहर में लोगों को लौकी बेहद पसंद है। पूरे वर्ष लौकी की मांग बनी ही रहती है। गर्मियों के मौसम में मांग बढ़ जाती है। उन्होंने मंडी से 14 सौ रुपये कुंटल के रेट से कद्दू खरीदा है, जिसे फुटकर में 20 रुपये प्रति किलो की दर से वह बेचने वाला है।उन्होंने बताया कि दो सौ रुपये मंडी का टैक्स देना पड़ता है। किसान से पैदावार खरीदने वाले मंडी दुकानदार अपना दो सौ रुपये प्रति कुंटल रखकर ही हमें सब्जी बेचने को देते हैं। इस कारण किसान से मंडी आने वाले सब्जी दो सौ रुपये ज्यादा मूल्य पर उन्हें मिलती है। इसके बाद छह सौ रुपये प्रति कुंटल की कमाई वे नहीं करेंगे तो उनका परिवार कैसे चलेगा।
शादी के मौसम में खरीदी ही जाती है लौकी-
वैवाहिक लॉन में बिजली की सजावट और कैटरिंग का कार्य करने वाले आशीष ने बताया कि शादी के मौसम में कोफ्ता और रायता बनाने के लिए लौकी खरीदी ही जाती है। कद्दू को तो विशेष रुप से बनाते है। काबली चना के साथ कद्दू, कद्दू का हलवा वैवाहिक कार्यक्रमों में देखा जाता है। लौकी और कद्दू तो भोज भंडारा में सबसे पहले बनता ही रहा है।
टिप्पणियां