बिन बादल बरखा की प्यास बुझा जाओ, प्रीति की रीति ओ साजन आज निभा जाओ
मेला महोत्सव में कविता रस की बही रसधार,झूम उठे श्रोता
महोली-सीतापुर
- बिन बादल बरखा की प्यास बुझा जाओ, प्रीति की रीति ओ साजन आज निभा जाओ
- जंगल में लोकतंत्र के लिए होंगे चुनाव, सुनकर हाथी घोड़े कुत्ते झूमने लगे
- धरती से अम्बर को जोड़कर चला गया, काल चक्र का भी रथ मोड़कर चला गया, तोप के मुहाने मोड़ मोड़ कर चला गया, अंत में तिरंगे को वो ओढ़ के चला गया जैसे गीतो पर झूमें श्रोता...
गुजिया लाइन के मैदान पर चल रहे कृष्ण जन्मोत्सव मेला पर आयोजित मेले मे रविवार की रात कविताओं से गुलजार रही। जहां कवियों ने छंदो सवैइया से सामाजिक, राजनैतिक वर्तमान परिवेश को शब्दों मे पिरोकर काव्य गंगा बहायी।इस दौरान तमाम ठहाकों व तालियों की गड़गड़ाहट ने माहौल को रंगीन बना दिया।
जन्माष्टमी मेला महोत्सव कवि सम्मेलन का उद्घाटन मुख्य अतिथि विधायक शशांक त्रिवेदी ने दीप प्रज्वलित करके किया।कवि राज कुमार तिवारी की अध्यक्षता में देर रात तक चले इस साहित्यिक आयोजन में कवियों ने अपने काव्यपाठ से श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर दिया।ख्यातिलब्ध कवि जगजीवन मिश्र ने वाणी वन्दना के पश्चात कविता पाठ करते हुए मुक्तक पढ़ा- "बिन बादल बरखा की प्यास बुझा जाओ, प्रीति की रीति ओ साजन आज निभा जाओ लड़ते लड़ते मेरा सर ये कट जाए तो, माँ के चरणों में सर ये चढ़ा देना तुम।" हरदोई से पधारे हास्य कवि अजीत शुक्ल ने कहा "जंगल में लोकतंत्र के लिए होंगे चुनाव, सुनकर हाथी घोड़े कुत्ते झूमने लगे, एक बार हमको जिता दो कह कह कर सिंह मेमनों के भी चरण चूमने लगे।" वीर रस के सुप्रसिद्ध कवि योगेश चौहान ने ओजस्वी काव्यपाठ करते हुए कहा-"मृत्यु आई शौर्य सिद्ध करने से पूर्व यदि, भारती के लाल मौत को ही मार डालेंगे।" आगरा से पधारे भगवान सहाय ने कहा-"धरती से अम्बर को जोड़कर चला गया, काल चक्र का भी रथ मोड़कर चला गया, तोप के मुहाने मोड़ मोड़ कर चला गया, अंत में तिरंगे को वो ओढ़ के चला गया।" हास्यकवि सौरभ जायसवाल ने खूब हँसाया, उन्होंने कहा-"इत्ती जरा सी बात पर हुआ बवाल प्रचण्ड ताऊ ने कमला कहा हमने कहा पसन्द।" ओज के सशक्त हस्ताक्षर
बाराबंकी के जगदीप शुक्ल 'अंचल' ने सुनाया-"करता है मातृभूमि का स्वच्छंद गुणगान,भारती का कौशल्या सा राम वन्देमातरम,सैनिकों के शौर्य व पराक्रम का है प्रतीक,
जननी को पुत्र का प्रणाम वन्देमातरम।" पीलीभीत की कवयित्री सरोज सरगम ने शृंगार की रचना पढ़ी-"बिन बादल बरखा की प्यास बुझा जाओ, प्रीति की रीति ओ साजन आज निभा जाओ,नैन बिछाए राह तिहारी देखूँ मैं,डोली लेकर मेरे घर आजाओ।" ब्रहमावली के ब्रजकान्त बाजपेई कहा-"देशभक्त दो चार मिलेंगे, वीर सपूत हजार मिलेंगे,लेकिन भारत की धरती पर गली-गली गद्दार मिलेंगे।" कार्यक्रम का उत्कृष्ट संचालन करते हुए रायबरेली से आए नीरज पाण्डेय 'शून्य' ने कविता पाठ करते हुए कहा-"शान्तिदूत बनने से जब कोई हल नहीं निकलता है, तब मेरी कविता का अक्षर-अक्षर आग उगलता है।" गीतकार राज कुमार तिवारी ने अपने अध्यक्षीय काव्यपाठ में कहा-"कमतर कोई नहीं आँकना भारत माँ के वीरों को,अलक्षेन्द्र भी झेल न पाया,इनके बरछी-तीरों को,दुश्मन की छाती पर चढ़कर विजय ध्वजा फहराते हैं,ये पौरुष के बल से बदलें, विधि की लिखी लकीरों को।"कविताएँ सुनकर भाव विभोर होते श्रोताओं ने कवियों का तालियाँ बजाकर व जोशीले नारे लगाकर खूब उत्साह वर्धन किया।
इस अवसर पर मेला व्यवस्थापक अशोक दीक्षित, कोतवाल विनोद मिश्र,अशोक तिवारी,सुरेन्द्र अवस्थी,मनोज मिश्र,डा.विशाका विश्वास,लवकुश शुक्ला पत्रकार गण तथा भारी संख्या में क्षेत्रीय लोग उपस्थित रहे।
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