लोकसभा 2024: दो सीएम दिये, फिर भी बदायूं को दर्द ही मिलता रहा!

गंगा-रामगंगा नदी के बीच बसे बदायूं में अभी तक नहीं बही विकास की गंगा

लोकसभा 2024: दो सीएम दिये, फिर भी बदायूं को दर्द ही मिलता रहा!

शारिक नसीरी

  • शकील बदायूंनी ने शायरी, तो मम्मन खां के पेड़े की मिठास ने बढ़ाई इलाके की पहचान

लखनऊ, बदायूं। ‘ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया, जाने क्यूं आज तिरे नाम पे रोना आया...शायरी के शहंशाह शकील बदायूंनी ने वैसे तो अर्से पहले अपने दिल के अल्फाज़ से निकले इन शब्दों को शेरो-शायरी के तौर पर कह डाला, मगर उन्हें भी इसका तनिक भी अंदाज न रहा होगा कि, मौजूदा राजनीतिक चुनावी समर में उनकी ये पंक्तियां बदायूं वासियों के दर्द-ए-दास्तां को बरबस ही उकेर कर रख देंगी।

गंगा-रामगंगा नदी के बीच बसा बदायूं संसदीय क्षेत्र छोटे-बड़े सरकार की प्रसिद्ध दरगाह की वजह से पूरी दुनिया में मशहूर है और रुहेलखंड के मध्य में होने के कारण बदायूं इसका दिल कहलाता है। यहां की ऐतिहासिक खूबसूरत इमारतें अपनी ओर आकर्षित करती हैं। वहीं दूसरी ओर साहित्य के क्षेत्र में भी बदायूं की अलग पहचान है। शकील बदायूंनी, दिलावर फिगार बदायूंनी, फानी बदायूंनी, बृजेंद्र अवस्थी, उर्मिलेश शंखधार जैसे शायरों व कवियों ने जनपद का नाम विश्व में रोशन किया। यहां की राजनैतिक पहचान की बात करें तो यहां से पूर्व मुख्यमंत्री स्व. मुलायम सिंह यादव और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती चुनाव जीतकर सूबे मुखिया की कुर्सी तक पहुंचे मगर फिर भी यह क्षेत्र विकास के मामले में पिछड़ा ही रहा।

वैसे यहां के मम्मन खां के पेड़े की मिठास हिंदुस्तान के अलावा विदेशों में भी मशहूर है, लेकिन यहां के जनप्रतिनिधियों ने विकास न कराकर उस मिठास में भी कड़वाहट पैदा करने का काम कर डाला। बताते चलें कि लोकसभा सीट पर 1996 से लगातार सपा का कब्जा रहा है। सपा से सलीम इकबाल शेरवानी सबसे ज्यादा लगातार पांच बार यहां से सांसद रहे उसके बाद दो बार सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के चेचेरे भाई धर्मेंद्र यादव यहां से सांसद चुने गए।

2019 में भाजपा की डॉ संघमित्रा मौर्य ने सपा से यह सीट छीन ली परंतु पिछले पांच वर्षों में विकास के नाम पर कुछ ऐसा देखने को नहीं मिल सका जिसकी चर्चा की जाये। पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव ने यहां जाम से निजात दिलाते हुए ओवर ब्रिज, बेहतर इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज, रेलवे बड़ी लाइन, बाईपास और बदायूं बरेली फोर लाइन रोड और राजकीय महिला महाविद्यालय दिया। इसी कार्य का फल वोट के रूप में आज सपा प्रत्याशी को मिलता नजर आ रहा है।

विकास के मुद्दे वोटिंग हुई, तो चौंकाने वाला होगा बदलाव...!

बात करें सबसे ज्यादा बार यहां से सांसद रहे सलीम इकबाल शेरवानी के कार्यों की तो एक शरीफ और ईमानदार नेता की शख्सियत के अलावा विकास को लेकर कोई खास कार्य नहीं रहा। यहां के मतदाताओं ने हमेशा बाहरी प्रत्याशी को सम्मान देते हुए जिताने का कार्य किया। शायद यही वजह रही कि क्षेत्र आज भी पिछड़ा हुआ है जबकि सांसद सलीम इकबाल शेरवानी विदेश मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री जैसे पदों पर काबिज रहते हुए भी क्षेत्र के लिए कुछ खास नहीं कर सके।

इसी बदायूं सीट से शरद यादव जीतकर संसद पहुंचे और केंद्र सरकार में कपड़ा मंत्री बने मगर बदायूं की तरफ पलट कर नहीं देखा। यही वजह है कि क्षेत्र में कोई बड़ा इंस्टीट्यूट या कॉलेज न होने से शिक्षा का अभाव है युवक-युवतियों को गैर जनपद का मुंह देखना पढ़ता है। स्वास्थ्य सेवा भी यहां बदहाल स्थिति में है। जिला चिकित्सालय हो या मेडिकल कॉलेज दोनों जगह डॉक्टर्स का अभाव होने से रोगी भगवान भरोसे ही रहते हैं। यही हाल महिला अस्पताल का है जहां समस्याओं का अंबार है लेकिन सुनने वाला कोई नहीं। जांच के नाम पर खाना पूर्ति कर दी जाती है।

अबकी बार के चुनाव में सपा, अपने कद्दावर नेता शिवपाल सिंह यादव के पुत्र आदित्य यादव को उतारकर अपनी खोई हुई सीट के लिए जद्दोजहद करती नजर आ रही है। भाजपा से दुर्विजय सिंह शाक्य भी पहली बार चुनाव मैदान में हैं। जबकि बसपा ने मुस्लिम कार्ड खेलते हुए पूर्व विधायक मुस्लिम खां पर दांव खेला है। अब देखना ये है कि सपा के गढ़ में ऊंट किस करवट बैठता है। बरहाल सपा-भाजपा की टक्कर में बसपा के मुस्लिम खान के आने से चुनाव दिलचस्प हो गया है। यदि मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण होता है तो निश्चित रूप से भाजपा को फायदा होगा और गर मुस्लिम वोटर एक तरफा वोटिंग करता है तो भाजपा की राह आसान नहीं होगी। यहां के मतदाताओं ने धर्म जाति, पार्टी से ऊपर उठकर क्षेत्र के विकास के नाम पर वोट किया तो निश्चित रूप से कोई चौंकाने वाला बदलाव देखने को मिलेगा।

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