कभी सुलझ पायेगी माफियाओं के मरने की कहानी

रमजान के महीने में ही ऐसा संयोग क्यों

कभी सुलझ पायेगी माफियाओं के मरने की कहानी

कर्मवीर

  • आज सुबह सुपुर्दे खाक होगा मुख्तार अंसारी का शव

लखनऊ। अब इसे महज संयोग कहे या सियासी नजरिये से कोई प्रयोग, लेकिन आज से तक़रीबन कोई ग्यारह महीने पहले यानि 15 अप्रैल 2023 को रमजान के पाक महीने में ही प्रयागराज में पुलिस की निगरानी में अस्पताल ले जाया जा रहा माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशफाक की तीन लड़को ने गोलियों से हत्या कर दी थी। उसकी हत्या की पहेली आज तक उलझी ही है, जिसकी वजह है प्रशासन का वो बयान जिसमे हत्या के पीछे की वजह नेम और फेम कामना बताया गया था। आज शायद ही कोई जनता हो कि जिस नाम धाम के लिए उन तीन लड़को ने अतीक ब्रदर्स की हत्या की थी उनके केस का क्या हुआ?

इसके साथ ही एक संयोग और है कि अतीक की फरार पत्नी शाईश्ता की ही तरह एक बार फिर मिडिया में ये सवाल भी घूम रहा है कि दरअसल  लंबे समय से फरार माफिया मुख्तार अंसारी की पत्नी अफ्शां अंसारी अंतिम दर्शन के लिए पहुंचेगी या नहीं। मुख्तार की पत्नी अफ्शां अंसारी पर 13 मुकदमे हैं उस पर गाजीपुर जिले की पुलिस ने 50 हजार रुपये का इनाम घोषित किया है, जबकि मऊ की पुलिस ने भी इनाम घोषित किया हुआ है। आफ्शां की धरपकड़ के लिए जनपद से लेकर राजधानी तक की पुलिस लगी है। लेकिन आफ्शां को दबोचने में पुलिस सफल नहीं हो पाई है। हालांकि, पुलिस न्यायालय के नोटिस चस्पा करने के साथ ही डुगडुगी पिटवाकर कुर्की की कार्रवाई कर वापस लौट जाती है, जिसका गवाह माफिया मुख्तार अंसारी का दर्जी मोहल्ला स्थित मकान है।

गाजीपुर के पीजी कॉलेज से स्नातक का छात्र रहा मुख्तार अंसारी की गिनती कभी क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ियों में हुआ करती थी। तकरीबन 18 साल छह माह जेल में रहने के बाद एक बार फिर मंजर ठीक कुछ वैसा ही। बस महीने में मामूली उलट फेर अप्रैल की बजाय मार्च एक बार फिर रमजान का महीना और जगह फिर अस्पताल। एक और जेल में बंद माफिया मुख्तार की मौत की वजह बकौल नौ डाक्टरों के मुताबिक हार्ट अटैक और बकौल मुख्तार फैमली सुनियोजित शाजिस स्लो पॉइजन देने की। बहरहाल वजह जो भी हो लेकिन योगी सरकार के कुल जमा सात साल के कार्यकाल में 9 जुलाई 2018 को बागपत की जिला जेल में मुन्ना बजरंगी की सुनील राठी ने गोली मारकर हत्या कर दी थी ,बीते वर्ष 7 जून को लखनऊ के अदालत परिसर में माफिया संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा की हत्या कर दी गयी थी।

 ये तो महज कुछ बानगी भर है विकास दुबे की गाड़ी पलटने से लेकर ऐसे कई किस्से यूपी की कानून व्यवस्था को अलग-अलग नजरिये से देखने और समझने वाले के जेहन में हैं। किसी हिंदी फिल्म के कहानी की तरह ही मुख्तार अंसारी की राजनीतिक गलियारों में तूती इस कदर बोलती थी कि उसके ऊपर हत्या से लेकर जबरन वसूली तक के आठ राज्यों में 65 से ज्यादा मामले दर्ज थे। शायद ही कोई ऐसा संगीन अपराध की धारा बची हो जो मुख्तार पर न लगी हो, किसी के लिए रॉबिन हुड किसी के लिए लम्बू पहलवान तो सरकार सिस्टम और विरोधियो के लिए माफिया बाहुबली हत्यारा मुख़्तार अंसारी।

जी हाँ इन्ही तमगों से नवाजे जाने वाले मुख्तार ने इसके बाद भी तीन अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के टिकट पर पांच बार विधायक रह चुका था। तीन चुनाव तो उसने जेल के भीतर ही रहकर जीते थे। हालांकि, बहुत ही कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि मुख्तार अपने पिता के अपमान के बाद अपराध की दुनिया में आया था। मुख्तार की गुरूवार रात बाँदा के मेडिकल कालेज में हार्ट अटैक से मौत होने की पुष्टि डाक्टरों के पैनल ने की थी। इसके बाद शुक्रवार को पोस्टमार्टम के बाद देर रात भरी पुलिसिया तामझाम के साथ शव उनके पैतृक कस्बे  गाजीपुर के मोहम्दाबाद लाया गया। जहा आज सुबह उनको सुपुर्दे ख़ाक किया जायेगा। बात अगर मुख्तार के रसूख और रुतबे की करे तो 25 अक्तूबर 2005 को मुख्तार जेल की सलाखों के पीछे गया तो फिर बाहर नहीं निकल पाया।

जेल में भी वह शान से रहता था। मुख्तार अंसारी को पंजाब की रोपड़ जेल से अप्रैल 2021 में यूपी की बांदा जेल शिफ्ट किया गया। इसका असर ये हुआ कि कोई भी जेलर इस जेल का चार्ज लेने के लिए ही तैयार नहीं हुआ। बाद में दो जेल अधिकारियों विजय विक्रम सिंह और एके सिंह को भेजा गया। मुख्तार दो साल से बांदा जेल में बंद था। मार्च, 2023 के आखिरी हफ्ते में इस जेल से एक कैदी छूटकर बाहर आया था। नाम न बताने की शर्त पर उसने बताया कि मुख्तार को स्पेशल हाई सिक्योरिटी सेल में रखा गया था। उसकी बैरक दूसरे कैदियों से अलग थी। ये बैरक जेल के बीच वाले गेट के पास ही बनी है। गेट के पास ही वह हर रोज घंटे-दो घंटे कुर्सी 'डालकर बैठता था। मुख्तार जब तक वहां बैठता था, कोई उस गेट से आ-जा नहीं सकता था। मुझे जब जेल से छूटना था, तब भी मुख्तार उसी गेट पर बैठा था। इस वजह से मेरी रिहाई करीब दो घंटे लेट हुई।

मुख्तार जितनी देर अपनी बैरक से बाहर रहता था, तब तक जेल के उस हिस्से के कैमरे बंद रहते थे!, ताकि वह किससे मिल रहा है, यह किसी को पता न चले। अब जबकि मुख्तार की कहानी उसके दफ़्न होने के बाद भी सोशल मिडिया से लेकर तमाम पुलिस अधिकारियो की जुबान पर एक बार फिर तरोताजा है तब ऐसे में सोचने वाली बात ये भी है कि भले ही उसके मौत की न्यायिक जाँच एक महीने में करने का आदेश हुआ हो जिसमे बांदा कोर्ट के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट भगवान दास गुप्ता ने मुख्तार अंसारी की मौत की न्यायिक जांच के आदेश दिए है। इस मामले की जांच के लिए अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट गरिमा सिंह को जिम्मेदारी दी गई है।

प्रशासन को मुख्तार अंसारी के इलाज से लेकर तमाम जानकारियां तीन दिन में उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं। एक महीने के अंदर जांच रिपोर्ट देनी होगी। लेकिन बीते  कई घटनाक्रम को अगर देखा जाये तो न्यायिक जांच के इस खेल से सिस्टम में रत्ती भर भी बदलाव या सुधार नहीं हुआ वो चाहे विकास दुबे का मामला हो जीवा माहेश्वरी ,मुन्ना बजरंगी या अतीक ब्रदर्स का। अब एक बार फिर न्यायिक जांच के इस खेल तले  कुछ दिन ,महीने तक हो हल्ला होगा और फिर सब ख़त्म हां मुख्तार की मौत के बाद एकबार फिर जेल में बंद आजम खान और उनके परिवार के जान और जहान की चिंता पर सियासत शुरू हो चुकी हैं।  देखना होगा कि इस पुरे घटनाक्रम के बाद अदालतों का क्या रुख होता है। मुख्तार और उसके परिवार की उन चिट्ठियों पर न्यायलय क्या फैसला लेता है?

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