बौनी हो गयी सियासत,एकजुटता ने दिलाया दिवंगत पत्रकार के परिजनों को सम्मान 

सियासी खेल को फेल कर गये रविंद्र मिश्रा, सियासी वादे हुऐ फुस्स

बौनी हो गयी सियासत,एकजुटता ने दिलाया दिवंगत पत्रकार के परिजनों को सम्मान 

-ऐप्जा की सक्रियता लाई रंग, परिजनों में बंधी नई आस

रोहित मिश्रा

सीतापुर। "गैर परों पर उड़ सकते हैं हद से हद तक दीवारों तक,

अंबर पर वही उडेंगे जिनके अपने पर होंगे"...! यह पंक्तिया राघवेन्द्र हत्याकांड के बाद उपजे माहौल पर सटीक बैठती हैं।

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मुख्यमंत्री से मिलते परिजन साथ रवीन्द्र मिश्र

        बीते दिनो खाकी और खादी ने दिवंगत पत्रकार राघवेन्द्र बाजपेई के चाल चरित्र का जितना मान मर्दन किया उतना शायद किसी ने सोचा भी नही था।

पत्रकार राघवेन्द्र बाजपेई की हत्या पर खूब तमाशा हुआ जिसने जैसे चाहा वैसे खेला। उपजे विरोध के बाद सियासतदानों ने अपने हिसाब से सियासी लटकों झटकों से आहत परिजनों से लेकर जनमानस को खूब गुमराह किया। इस दौरान तफ्तीश जैसी अहम जिम्मेदारी संभाल रही पुलिस ने भी दिवंगत पत्रकार के चाल चरित्र पर खूब कीचड़ उछाल कर खबरे प्रकाशित करायी। समूचे प्रदेश में पत्रकार की हत्या का जमकर विरोध होना शुरू हो गया तब जाकर जिले के जागरूक नागरिको व्यापारियों किसान संगठनों ने पूर्व चेयरमैन आशीष मिश्रा के नेतृत्व में विरोध दर्ज कराकर पीड़ित परिजनों को आर्थिक सहायता प्रदान करने का बीड़ा उठाया।

       दिन पर दिन बढ़ते आक्रोश के बीच पुलिस के आलाधिकारियों पर दबाब बढ़ा तो जांच का दायरा बढ़ने लगा। इसी दौरान सैकड़ो लोग पुलिस के रडार पर आये और रातों रात घरों से उठाये जाने लगे। पुलिस ने ऐसे लोगों को अपनी हिरासत में कई दिनों तक रखा जिनका हत्या जैसी घटना से दूर दूर तक वास्ता साबित न हो सका ।

     बावजूद इसके स्थानीय स्तर से लेकर जिले की सत्ता में बैठे लोगों के होठों पर ताला लगा रहा। इतना ही नही दिवंगत पत्रकार के पीड़ित परिजन बड़ी आस लगाये बैठे रहे कि कोई हमदर्द आयेगा जो उनके दर्द को सूबे के मुखिया तक ले जाकर उनके आसूओं को पोछने का काम कर सकेगा लेकिन बेशर्म सियासत की आंखे गीली नही हुई।

     विधायक ज्ञान तिवारी एवं सांसद आनन्द भदौरिया ने जहां मृतक के परिजनों को आर्थिक सहायता पहुँचाई तो वहीं विधायक शशांक त्रिवेदी ने बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा उठाने का वायदा किया। इसी बीच पुलिस ने तमाम मनगढंत कहानियों का ट्रायल करने के बाद घटना का अनावरण कर दिया। जिसमें महोली इलाके के एक मंदिर पर रह रहे तथाकथित बाबा शिवानंद तथा उसके दो सूत्रधार एवं दो शूटर को नामजद कर पुलिस ने इतिश्र कर ली।

       पुलिस का खुलासा न तो लोगो के गले उतरा और न ही राघवेन्द्र के परिजनों के। इसको लेकर सवाल उठने शुरू तो हुऐ लेकिन खामोशी ने पुलिस को बल दे दिया।

       इस दौरान ऐप्जा के चेयरमैन रवीन्द्र मिश्रा ने मोर्चा संभाला और पुलिस के खुलासे के विरूद्ध आगाज कर दिया। सधी सधाई रणनीत के तहत रवीन्द मिश्रा की टीम ने जोरदार प्रदर्शन कर राघवेन्द्र हत्याकांड के खुलासे पर सवाल उठाते हुऐ सीबीआई जांच की मांग करते हुऐ बेवा पत्नी को सरकारी नौकरी व आर्थिक सहायता की मांग की। हालांकि रवीन्द्र मिश्रा की रणनीति को सियासतदान भी भाप न सके। रवीन्द्र मिश्रा ने इसी दौरान सूबे के मुखिया से समय लेकर राघवेन्द्र के परिजनो को ले जाकर मिलवा दिया। नतीजन यूपी सीएम ने मृतक परिवार को दस लाख की आर्थिक सहायता देते हुऐ मृतक की पत्नी को नौकरी दिये जाने का आश्वासन दिया है। कुछ भी हो पत्रकार संगठन तथा ऐप्जा के चेयरमैन रवीन्द्र मिश्रा तथा क्वाडिर्नेटर अनुराग सारथी सहित समूचे पत्रकारों की रणनीत मौजूदा सियासत पर भारी पड़ गयी वही पीड़ित परिजनों को आश्वासन के कोरे सियासी वादे जमींदोज होते देखे गये। लोगो ने खादी पर सवाल उठाने शुरू कर दिये तो वही ऐप्जा चेयरमैन की रणनीति की सराहना की जाने लगी।

     फिलवक्त देश के मशहूर कवि गोपालदास नीरज की यह पंक्तिया..."खुद कुशी करती है आपस की सियासत कैसे,हमने यह फिल्म नई इधर खूब देखी है.. वर्तमान सियासत पर सटीक बैठती है।

 

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