नीली क्रांति में गोपालगंज उभरता सितारा, हर साल बढ़ रहा मछली का उत्पादन
गोपालगंज। बिहार का गोपालगंज जिला आज मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर होने की दिशा में अग्रसर है। मछली उत्पादक किसानों की संख्या में वृद्धि और मछली उत्पादन में उल्लेखनीय इजाफा इस बात का प्रमाण है कि जिला मत्स्य पालन के क्षेत्र में एक नया अध्याय लिख रहा है। गंडक नदी यहां के मछुआरों की तकदीर ही बदल दिया है। सरकार की योजना धरातल पर देखने को मिल रहा है। शहर से लेकर ग्रामीण चौक चौराहों पर जिले के पोखर, तालाब और गंडक नदी से निकले मछली आज बिक रहे है। जिला मत्स्य विभाग के अनुसार जिले में लगभग 15 हजार एमटी मछली का उत्पादन किया जा रहा, जबकि जिले को 16.800 एमटी मछली की जरूरत है।
सरकार की घोषणा का जिला प्रशासन ने अमल में लाया और जिले के सरकारी जलकर पर दबंगों के कब्जा से मुक्त करकर मत्स्य विभाग को सौंपा। जिस पर मत्स्य विभाग ने अपने मछुआरों को आवंटन का मछली उत्पादन के लिए प्रेरित किया। बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में जिले में 1351 सरकारी जलकर था। इन जलकरों के लगभग 1500 सौ हेक्टेयर जल क्षेत्रों में 15 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता था। अब सरकारी और निजी जलकर बढ़ 2000 हो गया है। पांच सौ से अधिक निजी तालाबों में मछली का उत्पादन होता था। अब यह आंकड़ा बढ़ गया है। जो जिला की खुशहाली का एक बेहतर संकेत है। वर्ष 2021-22 एवं 2022-23 की तुलना में 15 हजार एमटी मछली का उत्पादन हो रहा है।यहां के करीब 70 फीसदी लोग मछली के शौकीन हैं। यानी इस आबादी के लिए प्रतिवर्ष 16.80 हजार एमटी मछली की जरूरत है। फिलहाल उत्पादन एवं संभावित खपत की बात करें, तो वह दिन दूर नहीं जब मछली खपत का शत प्रतिशत उत्पादन जिला में ही होने लगेगा और बाहर से मछली मंगवाने की नौबत नहीं आयेगी।
जिला मत्स्य पदाधिकारी मनोरंजन कुमार सिंह ने बताया कि वर्तमान में लगभग 2100 हेक्टेयर जल क्षेत्रों में मुख्य रूप से रोहू, नैनी, ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प और पंगेसियस समेत अन्य प्रजाति की मछलियों का उत्पादन 15 हजार एम टी किया जा रहा है। मत्स्य पालन को बढ़ावा देकर किसानों के आय में वृद्धि करने को लेकर केंद्र और राज्य सरकार कई योजनाएं संचालित कर रखी है। जैसे चौर विकास योजना, तालाब निर्माण के लिए ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग के लिए विशेष सहायता योजना, उन्नत इनपुट योजना, बोरिंग और पंपसेट अधिष्ठापन योजना शामिल है।वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के आकंडा को देखा जाए तो भारत के लोगों को साल में 11 किलो मछली खाना चाहिए। लेकिन लोग महज 8 किलो ही मछली खाते है। जिले में लगभग 15 हजार एमटी मछली का उत्पादन किया जा रहा। जबकि जिले को 16.800 एमटी मछली की जरूरत है।मछली के उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने नई नई योजनाएं धरातल पर उतार रही है। जिससे मछली के बढ़ते उत्पादन से मछुअारों की आर्थिक स्थित समृद्व हो सके।
टिप्पणियां