OMG: इतिहास का दुनिया का दूसरा सबसे गर्म महीना रहा मार्च

OMG: इतिहास का दुनिया का दूसरा सबसे गर्म महीना रहा मार्च

नई दिल्ली। लगातार बढ़ते तापमान के बीच मार्च 2025 ने फिर एक गंभीर संकेत दिया है कि पृथ्वी पर जलवायु संकट गहराता जा रहा है। यूरोपीय संस्था कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) की रिपोर्ट में बीता मार्च जलवायु इतिहास का दुनिया का दूसरा सबसे गर्म महीना रहा।
 
इस साल मार्च का वैश्विक औसत तापमान 14.06 डिग्री सेल्सियस रहा, जो औद्योगिक युग से पहले की तुलना में 1.6 डिग्री अधिक था। इस तरह फिर एक बार तापमान ने 1.5 डिग्री की चेतावनी रेखा को पार किया। 1991 से 2020 के औसत की तुलना में यह वृद्धि 0.65 डिग्री रही। मार्च 2024 अब तक का सबसे गर्म मार्च था और इस बार का अंतर उससे मात्र 0.08 डिग्री रहा। 2016 के मुकाबले भी इस बार तापमान 0.02 डिग्री अधिक  रहा। बीते 21 महीनों में से 20 में तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.5 डिग्री से ज्यादा रहा। अप्रैल 2024 से मार्च 2025 तक का औसत तापमान 1.59 डिग्री अधिक रहा, जबकि 1991 से 2020 की तुलना में यह अंतर 0.71 डिग्री दर्ज किया गया।
 
समुद्र भी दे रहे चेतावनी
मार्च 2025 में समुद्र की सतह का औसत तापमान 20.96 डिग्री दर्ज हुआ, जो इस महीने को अब तक का दूसरा सबसे गर्म मार्च बनाता है। भूमध्य सागर और उत्तरी अटलांटिक के कई हिस्से अत्यधिक गर्म रहे।दुनिया भर के समुद्र इसलिए गर्म हो रहे हैं क्योंकि मानवीय गतिविधियों से वायुमंडल में बढ़ी ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी को गर्म कर रही हैं, इससे समुद्रों का तापमान बढ़ रहा है और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल द्वारा 2021 में किए गए  एक अध्ययन में पाया गया है कि 1982 और 2016 के बीच समुद्री उष्ण तरंग की आवृत्ति दोगुनी हो गई है और 1980 के दशक के बाद से ये अधिक लंबी और तीव्र हो गई हैं ।
 
भारत समेत दुनियाभर में गहरा असर
क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2025 के अनुसार बीते 30 वर्षों में भारत में हर साल औसतन 4.66 करोड़ लोग जलवायु आपदाओं से प्रभावित हुए हैं। औसतन हर साल 2,675 जानें गई हैं और 2,000 करोड़ डॉलर से अधिक की आर्थिक हानि हुई है जो जीडीपी का लगभग 0.31 फीसदी है। इस सूची में भारत छठे स्थान पर है, जबकि डॉमिनिका पहले और चीन दूसरे स्थान पर है। पिछले 30 वर्षों में, चरम मौसमी घटनाओं के चलते दुनियाभर में करीब आठ लाख लोगों की मौत हुई है।
 
इतना ही नहीं इन आपदाओं से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 4,20,000 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है। इस दौरान दुनिया ने 9,400 से भी ज्यादा चरम मौसमी आपदाओं का सामना किया है।
 
गर्मी बढ़ने से बिजली की मांग एक तिहाई बढ़ी
नई दिल्ली। भीषण गर्मी वाले महीनों के दौरान भारत की बिजली की मांग पिछले वर्ष की तुलना में 10.4 प्रतिशत बढ़ गई है। ग्लोबल एनर्जी थिंक टैंक एम्बर की नई रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ। रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल से जून 2024 के दौरान देश में बिजली की खपत वृद्धि में 30 प्रतिशत योगदान लू का रहा। रिपोर्ट के छठे संस्करण ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी रिव्यू 2024 में कहा गया है कि इस साल गर्मी की वजह से वैश्विक स्तर पर बिजली की मांग में 1.4% की वृद्धि हुई है, जिससे जीवाश्म ईंधन से बिजली उत्पादन बढ़ा और कार्बन उत्सर्जन में 1.6 प्रतिशत (22.3 करोड़ टन सीओ2) का इजाफा हुआ। गर्मी से संबंधित मांग के बिना जीवाश्म उत्पादन में केवल 0.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई होती।

 

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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है। 

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