‘कांग्रेस का गढ़’ पार्टी को दे पायेगा राजनीतिक संजीवनी!

रायबरेली से अंतत: राहुल गांधी के प्रत्याशी बनाये जाने पर उठने लगा अहम सवाल

‘कांग्रेस का गढ़’ पार्टी को दे पायेगा राजनीतिक संजीवनी!

रवि गुप्ता

  • अब तक यूपी में यही एक मात्र सीट रही, जिसने कांग्रेस को शून्य पर नहीं जाने दिया
  • फिरोज गांधी, इंदिरा गांधी, अरुण नेहरू, शीला कौल, सतीश शर्मा से लेकर सोनिया गांधी चुनी गईं
  • जनता पार्टी से राजनारायण और बीजेपी से अशोक सिंह अब तक केवल एक-एक बार जीत सके
  • चुनावी समर में राहुल गांधी, दिनेश प्रताप सिंह भाजपा व ठाकुर प्रसाद यादव बसपा के बीच मुकाबला
  • पूर्व में अमेठी से वॉयनाड को वॉकओवर, फिर वहां से रायबरेली को कॅमबैक के हैं कई सियासी मायने

लखनऊ। कहने को तो देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य यानी उत्तर प्रदेश में रिकॉर्ड 80 लोकसभा सीटें हैं, मगर इस बार 2024 लोकसभा के चुनावी समर में जब सत्ताधारी से लेकर विपक्षी खेमे की पार्टियों के बीच अलग-अलग सीटों पर टिकटों के बंटवारे की बारी आयी तो इन सबमें पहले देवीपाटन मंडल की कैसरगंज सीट तो उसके बाद अवध क्षेत्र की रायबरेली सीट सबसे हॉट सीट नज़र आयी। रायबरेली सीट पर जिस तरीके से कांग्रेस आलाकमान ने आखिरी समय तक सस्पेंस बना रखा था, तो उसकी वजह से भाजपा खेमे में भी काफी खलबली मच गई थी। अंतत: देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी यानी कांग्रेस हाईकमान ने यूपी में अपने चिर-परिचित और अति विश्वसनीय गढ़ यानी रायबरेली को चुना और यहां से हमेशा की ही तरह गांधी परिवार से ताल्लुक रखने वाले उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा। राहुल गांधी के रायबरेली सीट से नामांकन दाखिल करने के साथ ही अब यहां का चुनावी पारा यकायक चढ़ गया है। बता दें कि पूर्व की तरह इस बार भी बीजेपी ने इस सीट से दिनेश प्रताप सिंह को खड़ा किया है जोकि पिछले लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी से पराजित हो गये थे।

बहरहाल, राहुल गांधी के पहले यूपी के अमेठी से केरल के वॉयनाड को वॉकओवर करने और फिर लम्बे समय बाद रायबरेली सीट से कॅमबैक करने के पहल को कई प्रकार के सियासी चश्मे से देखा जा रहा है। राजनीतिक जानकारों की माने तो एक तरह से कांग्रेस हाईकमान ने संभवत: इस लोस चुनाव में अब तक का सबसे बड़ा दांव खेला है, जिसके तहत राहुल गांधी को अमेठी से न उतारकर ठीक बगल की अपनी परंपरागत रायबरेली सीट पर उतारा है। उनका यह भी मत है कि यदि गाहे-बगाहे कांग्रेस का यह रायबरेली दांव काम कर गया तो एक प्रकार से यूपी में जो बीते कई दशक से पार्टी राजनीतिक वनवास झेल रही है, उससे कहीं न कहीं मुक्ति मिल जायेगी। यही नहीं इस लहर में आसपास की सीटों पर भी कांग्रेस के पक्ष में कहीं चौंकाने वाले परिणाम भी आ सकते हैं, क्योंकि क्षेत्रीय राजनीतिक जानकारों की राय है कि इस बार के चुनावी लहर में मोदी लहर कम या फिर कुछ सीमित क्षेत्रों तक ही सिमट सकता है जबकि कहीं न कहीं कुछ और अलग तरह की लहरें या अंडरकरंट काम करती प्रतीत हो रही।

वैसे भी रायबरेली सीट पर जब से राहुल गांधी की इंट्री हुई तब से वहां पर राजनीतिक हलचल बढ़ती जा रही है। यह देखना भी दिलचस्प रहा कि यहां के फुर्सतगंज एयरपोर्ट पर जो अब तक सन्नाटा छाया रहा करता था, वहां राहुल गांधी के नाम का ऐलान होने के साथ ही सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, प्रियंका गांधी व राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत समेत तमाम बड़े राजनेताओं की चहलकदमी से वहां पर अधिकारियों की टीम को सबसे मैनेज करने के लिये फुर्सत तक नहीं मिल पा रही।

वहीं दूसरी तरफ बीजेपी उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह जिनका स्थानीय प्रभाव रायबरेली क्षेत्र में काफी पुराना रहा है, मगर बदले हुए राजनीतिक समीकरण में वो राष्ट्रीय स्तर के एक राजनेता को कहां तक और किस प्रकार चुनावी दंगल में चुनौती दे पायेंगे, यह देखने वाली बात होगी। वैसे बता दें कि अभी तक रायबरेली सीट पर केवल एक-एक बार क्रमश: जनता पार्टी से राजनारायण और बीजेपी से अशोक सिंह जीत दर्ज कर सके...बाकी सभी बार के चुनावों में कांग्रेसियों का ही परचम इस सीट पर फहराया जाता रहा, जिसकी शुरूआत सबसे पहले फिरोज गांधी, फिर इंदिरा गांधी, अरुण नेहरू, शीला कौल, सतीश शर्मा से लेकर फिर सोनिया गांधी ने लम्बे कार्यकाल तक रायबरेली सीट पर पंजे की मजबूत पकड़ को बरकरार रखा।

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