लखनऊ के प्रसिद्ध देवी मंदिर, नवरात्रि में यहां दर्शन करने से पूर्ण होती हैं कामनाएं

लखनऊ के प्रसिद्ध देवी मंदिर, नवरात्रि में यहां दर्शन करने से पूर्ण होती हैं कामनाएं

लखनऊ। वासंतिक नवरात्र का आरंभ भारतीय नव वर्ष के प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है और रामनवमी को समापन किया जाता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा इस बार 9 अप्रैल को पड़ रही है। मान्यता है कि, नवरात्र में मां के दर्शन और पूजन से विशेष फल मिलता है। लखनऊ में देवियों के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। जहां श्रद्धालु शीश नवा कर मां से आशीर्वाद पाते हैं।

चंद्रिका देवी मंदिर, बक्शी का तालाब-
बख्शी का तालाब के कठवारा गांव के अंतर्गत गोमती नदी के तट पर स्थित पौराणिक तीर्थ मां चंद्रिका देवी का दरबार नवरात्र भर घंटों और मां भगवती के जयकारों से गुंजायमान रहता है। इस तीर्थ के इतिहास के संबंध में स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है। महाराज युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को मां भगवती के भक्त सुधन्वा द्वारा रोक लिया गया था। किवदंती है कि महराज दक्ष के श्रप से भगवान चंद्रमा को भी सुधन्वा कुंड में स्नान करने से क्षय रोग से मुक्ति मिली थी।

बड़ी काली जी मंदिर, चौक-
बड़ी काली मंदिर का इतिहास सात सौ साल पुराना है। बताया जाता है कि शंकराचार्य ने माता की मूर्ति की स्थापना की थी, जिस काली मां को हम पूजते हैं असल में वह लक्ष्मी-विष्णु की मूर्ति है। मुगलों ने जब इस मंदिर पर धावा बोला था तो यहां के पंडितों ने यहां स्थापित मूर्ति को बचाने के लिए उसे एक कुएं में फेंक दिया था। इस कारण से आस्था की धरोहर तो बच गई, लेकिन देवी की मूर्ति की जगह लक्ष्मी-विष्णु की विग्रह मूर्ति की स्थापना की गई। नवरात्र में इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

कालीबाड़ी मंदिर, कैसरबाग-
कैसरबाग घसियारीमंडी स्थित कालीबाड़ी मंदिर 155 वर्ष पुराना है। कहते हैं कि मधुसूदन बनर्जी ने सपने में मिले मां भगवती के आदेश का पालन करते हुए खुद मिट्टी की प्रतिमा तैयार कर स्थापित की थी। यहां मां बंगाली परंपरा के अनुसार अगस्त, 1863 से सिद्ध पीठ के रूप में विराजमान हैं। पांच जीवों के मुंडों की आधारशिला पर मां की स्थापना हुई है। यहां शारदीय नवरात्र में महिषासुर मर्दिनी का विशेष पाठ होता है।

चौक में चूड़ी वाली गली की लंबी-

ढलान खत्म होने के बाद आखिरी छोर पर जैन मंदिर के सामने वाली सड़क पर छोटी काली जी का प्राचीन मंदिर है। श्रद्धालु बताते हैं कि मंदिर करीब 400 साल से ज्यादा पुराना है। यहां स्थापित प्रतिमा मंदिर परिसर में ही स्थित एक पुराने कुएं से निकली बताई जाती है, जिसे यहां स्थापित किया गया। मंदिर में काली मां के साथ ही राम दरबार, राधा-कृष्ण, शिवाली, गणोश जी समेत तमाम इष्टदेव विराजे हैं।

सन्दोहन देवी मंदिर, चौक
श्री सन्दोहन देवी मंदिर जो चौक के तंग गली चौपटियां में स्थित है। यह मंदिर शहर के प्रमुख देवी मंदिरों में से एक है और यहां भक्त दूर दराज से माता के दर्शन करने को आते हैं। मां श्री सन्दोहन देवी जिन्हें सन्देहहरणी देवी के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर लगभग 500 साल पुराना है यहां माता पिंडी रूप में विराजमान है। नवरात्रि के समय माता की विशेष पूजा अर्चना होती है और प्रतिदिन अलग अलग रूप में माता का श्रृंगार किया जाता है।

मनसा देवी मंदिर, सराय माली खां-
बंगाल और बिहार में मनसा देवी की पूजा-अर्चना का अधिक प्रचलन है। नागकुल की अधिष्ठात्री होने के कारण मनसा देवी रहस्यमयी व्यक्तित्व की स्वामिनी रही हैं। सराय माली खां में माहूलाल की चढ़ाई के पास मनसा देवी का प्राचीन मंदिर है। मंदिर के पास ऐतिहासिक जियालाल फाटक है, जो लखौरी ईंटों की दक्ष चुनाई के लिए दर्शनीय है।

शीतला मंदिर, मेंहदीगंज-
मेहंदीगंज में शीतला देवी का प्राचीन मंदिर है। कहते हैं कि लवकुश ने इस मंदिर की स्थापना की थी। तब यह गोमती इस मंदिर के पास से बहती थी। जल धारा का प्राचीन मार्ग यही था, जिसका प्रमाण दरियापुर मोहल्ला है यहां की प्रमुख प्रतिमा मध्य-काल के आक्रांताओं द्वारा भग्न है। यहां उसी की पिंडी की पूजा होती रही है। मंदिर के परिक्रमा पथ में दसवीं सदी की उमा महेश्वर की भग्न प्रतिमा है। इस मंदिर का पुनर्निर्माण बंजारों ने एक मठ के रूप में किया। बाद में कश्मीरी ब्राह्मण परिवारों ने इन्हें अपनी देवी मान लिया।

मसानी देवी, सआदतगंज-
सआदगंज में मसानी माता का प्राचीन मंदिर है। मध्यकाल में भगवती की यह गुप्तकालीन प्रतिमा कदम के नीचे कुएं से मिली थी। साल 1883 में पुजारी मंसादीन माली ने इस मंदिर की नई रूपरेखा तैयार की। यहां पीतल के प्रवेश द्वार पर कलात्मक गणपति और राजलक्ष्मी उकेरे गए हैं तो गंगा भी अपने वाहन मगर के साथ विराजमान हैं। इसके दूसरी ओर बना है- अवध का शाही मोनोग्राम-जलपरियों के हाथों में मुकुट। यहां बुधवार पूजा का दिन है। यहां लोग मनोकामना की चौकी भरते हैं और सात बुध जाकर उनकी चौखट पर फूल, पान, लौंग, बताशा और कौड़ी चावल से सजानी होती है।

संकटा देवी, रानी कटरा-
रानी कटरा के बड़ा शिवाला प्रांगण में बंदी माता की अत्यंत प्राचीन मूर्ति है। वंदनीय माता कही जाने वाली इस प्रतिभा के लोग प्रयत्न लाघव में वंदी माता कहने लगे। यहां संकटा देवी हैं और कश्मीरी ब्राह्मणों की ईष्ट देवी आद्या देवी की मूर्तियां भी। अवध में संकटा देवी हर क्षेत्र में मिलती हैं। यहां तक कि जब किसी मनोरथ के साथ सात सुहागिनों को बुलाया जाता है और खिलाया जाता है तो उस आयोजन को 'संकटा की पिन्नी' कहा जाता है।

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