राजस्थान हाइकोर्ट: प्रशिक्षु रेजिडेंट डॉक्टर को सेवारत चिकित्सक मानकर किए एपीओ आदेश पर रोक

राजस्थान हाइकोर्ट: प्रशिक्षु रेजिडेंट डॉक्टर को सेवारत चिकित्सक मानकर किए एपीओ आदेश पर रोक

जोधपुर। राजस्थान उच्च न्यायालय ने प्रशिक्षु रेजिडेंट डॉक्टर को सेवारत चिकित्सक मानकर किए एपीओ आदेश पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। राजस्थान हाइकोर्ट ने डॉ. कावद अंकित जेरामभाई की रिट याचिका की प्रारंभिक सुनवाई करते हुए आदेश दिया गया। रेजिडेंट चिकित्सक की ओर से अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने पैरवी की। भावनगर, गुजरात निवासी डॉ. कावद अंकित जेरामभाई की ओर से अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने रिट याचिका दायर कर बताया कि याची ने वर्ष 2021 में एमबीबीएस करने के बाद नीट पीजी प्रवेश परीक्षा 2023 में भाग लिया और इसमें उसके उत्तीर्ण होने के बाद माह अगस्त 2023 में नागौर के राजकीय मेडिकल कॉलेज के अंतर्गत जेएलएन ज़िला अस्पताल आवंटित किया गया। जिसमें उसने प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में डिप्लोमा स्नातकोत्तर रेजिडेंट डॉक्टर के रूप में 14 अगस्त 2023 को जॉइन किया।

नियमाानुसार मेडिकल स्नातक डिग्री हासिल करने के बाद दो वर्षीय पीजी स्नातकोत्तर डिप्लोमा में एडमिशन होने पर प्रशिक्षु रेजिडेंट डॉक्टर कहलाता है जो राजस्थान सेवा नियम 1951 के प्रावधानों के अनुसार गवर्नमेंट अधिकारी/ राजकीय सेवक की परिभाषा में नहीं आता है। आर.एस.आर. के नियम अनुसार एपीओ आदेशों की प्रतीक्षा में केवल राजकीय कर्मचारियों और अधिकारियों को ही किया जा सकता है।। जबकि याची एक दो वर्षीय पीजी स्नातकोत्तर डिप्लोमा का विद्यार्थी हैं जिसे कोई मासिक सैलरी नही मिलती हैं।। 10 मई 2024 की रात्रि में रात्रि ड्यूटी पर होने के कारण अस्पताल के इंचार्ज द्वारा उसे केवल इस कारण एपीओ कर दिया गया कि ईलाज के दौरान एक प्रसूता की मृत्यु हो गई।। वस्तुत: रात्रिकालीन ड्यूटी पर केजुयल्टी मेडिकल ऑफिसर और अन्य चिकित्सक मौजूद रहते हैं जिनके दिशानिर्देशों के अनुसार ही एक शिक्षार्थी के रूप में रेजिडेंट डॉक्टर कार्य करता है।

याची की ओर से बताया गया कि एपीओ करने से अब याची का दो वर्षीय डिप्लोमा कोर्स कैसे पूर्ण होगा क्योंकि निदेशालय में भेजने से याची के प्रशिक्षण के लिए स्वास्थ्य भवन में कोई मेडिकल कॉलेज अस्तित्व में नहीं है, ऐसे में ज़िला अस्पताल, नागौर के प्रमुख चिकित्सा अधिकारी का आदेश तुगलकी फ़रमान जैसा हैं। एमसीआई के प्रावधानों अनुसार एक रेजिडेंट डॉक्टर एक साल में केवल 20 छुट्टियां ही ले सकता हैं। बिना कोई जांच किये और बिना सुनवाई का मौका दिए, याची को बलि का बकरा बनाया गया और जयपुर पदस्थापना की प्रतीक्षा में करना हास्यास्पद है। मामले की प्रारंभिक सुनवाई करते हुए जस्टिस अरुण मोंगा की एकलपीठ ने 11 मई के एपीओ आदेश पर रोक लगाते हुए याची को उसी आवंटित अस्पताल में रेजीडेंसी पूर्ण करवाने के अंतरिम आदेश दिए औऱ राज्य सरकार सहित अन्य को जवाब तलब किया। अगली सुनवाई 14 अगस्त को नियत की।

 

 

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