राजनीति की गंदी चाशनी में लिपटी ‘इमरती नगरी’, वोटर हैरान!

जौनपुर संसदीय सीट पर हर पल बदलते राजनीतिक चाल, चरित्र और चित्र को देखकर छायी मायूसी

राजनीति की गंदी चाशनी में लिपटी ‘इमरती नगरी’, वोटर हैरान!

रवि गुप्ता

  • लोकतंत्र के महापर्व में भागीदार बनने वाले खासकर सैकड़ों युवा वोटरों में बढ़ी बेचैनी
  • संसदीय सीट पर अधिकांश प्रत्याशी अपनी मूल पार्टी को छोड़ दूसरे दल का दामन थामे बैठे
  • कृपाशंकर सिंह कांग्रेसी रहे अब भाजपा में, बाबूसिंह कुशवाहा पूर्व में रहे बसपाई अब बने सपाई
  • धनंजय सिंह का बसपा-जदयू से रहा नाता फिर हुए निर्दल, टिकट दोबारा मिला तो श्याम सिंह बने रहे बसपाई

लखनऊ। 2024 के लोकसभा चुनाव का कारवां अब धीरे-धीरे करके पश्चिमी यूपी से बढ़ता हुआ और अवध क्षेत्र को पार करता हुआ पूर्वांचल की ओर बढ़ता दिख रहा। हालांकि अभी देखा जाये तो कहीं चौथे फेज में पूर्वांचल और उसके आसपास के क्षेत्रों में वोटिंग होगी, मगर हालिया राजनीतिक समीकरण यह है कि खासकर जौनपुर संसदीय सीट ने इस हीट वेव वाले मौसम में सूबे का ‘पॉलिटिकल टेम्परेचर’ एकदम से बढ़ा रखा है। गौर हो कि इससे पहले अभी तक देवीपाटन मंडल के कैसरगंज सीट ने दिल्ली से लेकर लखनऊ तक राजनीतिक हलचल मचा रखी थी, लेकिन यहां से बाद में सस्पेंस खत्म होते हुए जब ब्रजभूषण शरण सिंह के बेटे करनभूषण का टिकट फाइनल कर दिया, तो पूरे मामले का पटाक्षेप हो गया।

जबकि पीएम मोदी के वाराणसी मंडल और इस संसदीय सीट के कोर जिलों के ग्रुप में अहम स्थान रखने वाले जौनपुर लोकसभा क्षेत्र ने अपने हर दिन और हर रात यकायक बदलते राजनीतिक गुणा-गणित से सबको चौंका रखा है। देर रात जो बाहुबली धनंजय सिंह जेल से निकलने के बाद बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं अपनी धर्मपत्नी श्रीकला सिंह की राजनीतिक गतिविधियों और अपने चुनावी रणनीति के अलावा जनपद के विकास और मुद्दों को लेकर बड़ी ही बेबाकी के साथ इंटरव्यू देते नजÞर आये थे...उन्हीं का देर रात्रि का लोक कथन दूसरे दिन अलसुबह उल्टा पड़ जाता है और पता चलता है कि बसपा हाईकमान ने उनकी पत्नी का टिकट काटकर, बसपा के निवर्तमान सांसद रहे श्याम सिंह यादव को दोबारा अपने सिंबल पर चुनावी मैदान में उतार दिया। देखते-देखते एक ही रात या यूं कहे कि चंद घंटे के अंदर जौनपुर की सियासत पूरी तरह बदलती दिखायी दी, हर पल बदलते वहां के राजनीतिक समीकरण ने वहां के हर खासोआम जन को झकझोरने का काम किया।

यही नहीं देखा जाये तो यहां से अभी जो भी प्रत्याशी खड़े हैं, वो पहले किसी दूसरी पार्टी में थे और अब किसी दल से जुड़ गये। कृपाशंकर सिंह शुरू से कांग्रेसी रहे, अब भाजपा में आ गये तो वहीं बाबू सिंह कुशवाहा बसपाई रहे और अब सपाई हो गये, धनंजय सिंह बसपा व जदयू में रहे फिर फिजा बदलती है तो निर्दल हो जाते हैं और जबकि इधर-उधर हाथ मारने पर आखिरी समय में श्याम सिंह यादव को दोबारा बसपा हाईकमान ने टिकट दे दिया तो खुद चौंक गये...यानी जौनपुर जनपद में जो भी उम्मीदवार हैं, उन सबके अपने अलग-अलग राग हैं। वहीं जब इस बदलाव को लेकर तरूणमित्र टीम ने कुछ युवाओं से बात की तो खासकर उनमें नाराजगी भी दिखी और आक्रोश भी...उनका यही मत रहा कि जब कुछ पल में नेता बदल जाते हैं, दलबदलू यहां-वहां चल देते हैं तो ऐसे में जनपद के हम जनता-जनार्दन किस पर भरोसा करें और क्यों।

जबकि जनपद के कुछ बुजुर्गवार मतदाताओं का एकस्वर में कहना रहा कि सियार की तरह रंग बदलने वाले मौजूदा सियासतदां...जब हमारे जौनपुर के गंगा-गोमती वाले भाईचारे की संस्कृति, विश्व प्रसिद्ध इमरती और इत्र की खुश्बू, खेत-खलिहानों में उगने वाले हमारी मोटी-प्रसिद्ध मूली और दिल्ली की सत्ता से लेकर यूपी के शासन-प्रशासन को चलाने वाले हमारी माटी से निकले तमाम मेधावी ब्यूरोक्रेट्स (नौकरशाह) की बेदाग सभ्यता को अपने क्षणिक कायदे-फायदे के चक्कर में इस्तेमाल करने लगे, तो समझिये अब यहां का मतदाता भी इस सीट पर हर पल चल रहे खेला को महसूस करते हुए यहां के राजनीतिक नब्ज को टटोल रहा जिसके आगामी चुनावी परिणाम काफी चौंकाने वाले हो सकते हैं...क्यूंकि भारतीय लोकतंत्र के इस सबसे बडेÞ महात्यौहार में केवल और केवल वोटर यानी मतदाता ही सबसे अधिक सर्वशक्तिमान होता है।

कर्तव्य निष्ठा में फंसे कार्यकर्ता, मन मसोस रहे समर्थक!

जौनपुर के बदलते चुनावी समीकरण पर वहां के निवासी श्रीप्रकाश वर्मा ने तरूणमित्र टीम से अपने मन की बात साझा करते हए कहा कि राजनीति में नीति रीति सिद्धांत के मायने सब अवसर वादी सरीखे हो चले हैं। न मतदताओं न कार्यकर्ताओं और न ही समर्थकों की भावनाओं का ख्याल रखा जाना राजनीति के निम्न होते स्तर का प्रमाण बनता जा रहा है। विकास और जाति धर्म के मुद्दे अब राजनीति में प्रमुख एजेंडा बन गए हैं बाकी देशहित और देश वासियों की सुरक्षा, जीवन स्तर में सुधार, महंगाई, बेरोजगारी, सामाजिक अपराध जैसे मुद्दे गौड़ होते जा रहे हैं।

सालों साल तक राजनीतिक पार्टी के सिद्धांतो पर भरोसा जताते हुए जनता के बीच, नीतियों का बखान कर डुगडुगी बजाने वाले जनप्रतिनिधि एक झटके में पाला बदलकर इधर से उधर चले जा रहे हैं। ऐसे लोगों को न तो अपने समर्थकों की भावना से कुछ लेना देना है और न ही अपने सिद्धांतों के प्रति जवाबदेही रह गई है। पार्टी कार्यकर्ता जीवन भर पार्टी का झंडा डंडा लिए अपनी कर्तव्य निष्ठा को दर्शाता रहता है तो वही समर्थक मन मसोस कर इस दल से इस दल में नेताजी के साथ जयकारा लगाने में मशगूल हो जाता है।

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