राजनाथ के राजनीतिक पथ पर दो बार काटे गये ‘टंडन’!

2009 में लालजी टंडन उर्फ बाबूजी का टिकट काटकर राजनाथ सिंह को दी गई लखनऊ सीट

राजनाथ के राजनीतिक पथ पर दो बार काटे गये ‘टंडन’!

रवि गुप्ता

  • लखनऊ पूर्वी उपचुनाव में एक बार फिर कटा टंडन परिवार का टिकट, अमित टंडन थे दावेदार
  • वरिष्ठ नेताओं का कहना, टंडन जी चाहते थे लड़ना चुनाव, नहीं साध पाये केंद्रीय नेतृत्व
  • लखनऊ पूर्व विस चुनाव में टंडन परिवार को टिकट देने की थी चर्चा, राजनाथ के करीबी ने मारी बाजी
  • टंडन परिवार का टिकट कटने के साथ ही लखनऊ से बाबूजी की राजनीतिक मौजूदगी हुई गुम
लखनऊ। कहते हैं कि राजनीति की दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं होता, अब चाहे वो संगठन हो, पार्टी हो या फिर कोई भी राजनेता...राजनीतिक पंडितों का तो इस मसले पर यही मत है कि जिसको जहां और जैसा मौका मिला, और जिसने समय रहते उसे भुना लिया उसी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी हो पाती है, या फिर वो तमाम रोक-रुकावट के बाद भी अपने राजनीतिक पथ पर आगे बढ़ता चला जाता है। कुछ ऐसा ही राजनीतिक परिदृश्य कहीं न कहीं सूबे की राजधानी लखनऊ संसदीय सीट और इसमें निहित एक विधानसभा सीट में देखने को मिलती प्रतीत हो रही।

डेढ़ दशक पूर्व के लोकसभा चुनाव का समय शुरू होने वाला था। टिकटों का बंटवारा चल रहा था और बारी आई लखनऊ सीट पर दावेदारी की और उस दौरान यहां से कभी अटल जी की खड़ाऊ लेकर सांसद बने लालजी टंडन यानी बाबू जी को लेकर यह मान लिया गया था कि उनके ही नाम पर फिर से मुहर लगेगी। मगर पार्टी जानकारों की मानें तो कहीं न कहीं बाबूजी उस दौरान के केंद्रीय आलाकमान को नहीं साध पाये और कुल मिलाकर राजनाथ सिंह के नाम पर अंतिम मुहर लग गई। टंडन जी से जुड़े पुराने कार्यकर्ताओं को उस दौरान काफी धक्का लगा था, मगर बाबूजी उस समय की राजनीतिक परिस्थितियों को भांप गये और चुप्पी साध गये। हालांकि कहा जाता है कि अपने बेटे आशुतोष टंडन उर्फ गोपाल जी के राजनीतिक प्रवेश को लेकर बाबूजी चिंतित थे और संभवत: यही सबसे बड़ा कारण रहा जिसने उन्हें समझौता करने पर विवश कर दिया।
 
खैर, गोपाल जी को लखनऊ पूर्वी सीट से टिकट मिला और वो चुने गये। लेकिन बीच में लगातार गिरते स्वास्थ्य के चलते गोपाल जी लम्बे समय से अपनी पूर्वी सीट क्षेत्र से दूर होते गये और अंतत: गोलोकगमन हो गये। अब चूंकि आगामी 20 मई को लखनऊ के लोकसभा और यहां की पूर्वी सीट के विस उपचुनाव होने हैं, तो ऐसे में बीजेपी ने एक नये चेहरे ओपी श्रीवास्तव को मैदान में लाकर एक बार फिर से टंडन परिवार को लेकर टिकट बंटवारे की चर्चा को गर्म कर दिया है। चुनावी पंडितों के अनुसार दरअसल, ओपी श्रीवास्तव संगठन के चेहरे के तौर पर सक्रिय रहें, मगर अभी पब्लिक इमेज नहीं बन पाये हैं जिसकी चर्चा अभी भी हो रही।
 
चर्चायें तो यह भी चल रही हैं कि ओपी, नीरज सिंह के संपर्क में पहले से ही थे तो ऐसे में उनके टिकट पर राजनाथ की मुहर लगने में कोई खास दिक्कत नहीं हुई। जबकि लखनऊ के तमाम क्षेत्रों में यह बात तेजी से चल रही थी कि पूर्वी सीट क्योंकि गोपाल टंडन जी के देहावसान होने के बाद रिक्त हुई है, तो ऐसे में उनके ही परिवार को टिकट मिलेगा और इसको लेकर उनके छोटे भाई अमित टंडन का भी नाम चला। मगर कुलमिलाकर लखनऊ की इस राजनीति की नियति कुछ और ही लिखी गई थी, और एक दशक पूर्व लालजी टंडन का टिकट कटा था, तो और अब फिर से लखनऊ पूर्वी सीट पर उनके परिवार को टिकट नहीं दिये जाने से लखनऊ की राजनीतिक आबोहवा से कहीं न कहीं टंडन परिवार की खास मौजूदगी गुम हो गई।
 
क्या बोले राजनीतिक जानकार...!

इस मुद्दे पर राजधानी के वरिष्ठ पत्रकार बिश्वजीत बनर्जी का कहना है कि चूंकि राजनाथ सिंह मौजूदा एमपी हैं, तो ऐसे में किसी भी विस सीट पर उनकी पूर्व सहमति जरूरी है। बोले कि पूर्वी सीट पर गोपाल टंडन चुने गये मगर वो चौक में रहते थे, तो ऐसे में इस बार यही रणनीति रही कि क्षेत्रवासी को ही प्राथमिकता दी जाये, हालांकि ओपी श्रीवास्तव क्षेत्र में कोई जाना-पहचाना चेहरा नहीं है। हां यह माना जा सकता है कि, 2009 में बाबूजी की इच्छा तो लखनऊ से लड़ने की थी, पर राजनीतिक समीकरण उनके हिसाब से नहीं बन पाये।
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