हरियाणा  में सरकार पर खतरा बढ़ गया ?

हरियाणा  में सरकार पर खतरा बढ़ गया ?

नई दिल्ली: हरियाणा  में बीजेपी की सरकार पर खतरा बढ़ गया है. 2 निर्दलीय विधायकों ने नायब सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया है. 90 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा  में अभी 88 विधायक हैं. बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा 45 है. बीजेपी के 40 विधायक हैं. 6 निर्दलीय विधायकों का समर्थन उन्हें हासिल था हालांकि 3 विधायकों के सरकार से अलग हो जाने के कारण अब बीजेपी समर्थक विधायकों की संख्या 44 ही रह गयी है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने सरकार पर जोरदार हमला बोला है. कांग्रेस की तरफ से कहा गया है कि नायब सिंह को पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना चाहिए.  

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि "निर्दलीय विधायकों ने भाजपा सरकार से अपना समर्थन वापस लिया है और कांग्रेस को समर्थन करने का फैसला किया है। उन्होंने जनभावनाओं के तहत यह फैसला लिया है... सरकार का नैतिक अधिकार खत्म हो गया है, उन्हें(नायब सिंह सैनी) पद छोड़कर इस्तीफा दे देना चाहिए और यहां राष्ट्रपति शासन लागू करना चाहिए ताकि निष्पक्ष चुनाव हो सके..."

तीन निर्दलीय विधायकों ने बदला पाला
तीन निर्दलीय विधायकों ने मंगलवार को घोषणा की कि उन्होंने राज्य में नायब सिंह सैनी के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है. तीन विधायकों-सोमबीर सांगवान, रणधीर गोलन और धर्मपाल गोंदर ने यह भी कहा कि उन्होंने चुनाव के दौरान कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया है.तीनों विधायकों ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस प्रमुख उदय भान की मौजूदगी में रोहतक में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में यह घोषणा की.

नायब सिंह की सरकार पर नहीं है खतरा
अल्पमत में आने के बाद भी हरियाणा की नायब सिंह की सरकार पर खतरा नहीं है. किसी भी सरकार को तब तक अल्पमत में नहीं माना जाता है जब तक सदन में अविश्वास प्रस्ताव में उसकी हार नहीं हो जाती है. ऐसे में मीडिया में निर्दलीय विधायकों के द्वारा समर्थन वापसी से सरकार अल्पमत में है यह साबित नहीं होता है. इसके लिए विपक्षी दलों को सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाना होगा. हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस पार्टी की तरफ से मार्च के महीने में  अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. ऐसे में तकनीकी तौर पर अभी विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव सरकार के खिलाफ नहीं लाया जा सकता है. 
दो अविश्वास प्रस्ताव के बीच कम से कम 180 दिन का गेप होना जरूरी है. यानी बीजेपी सरकार के खिलाफ हरियाणा में अगला अविश्वास प्रस्ताव अगले कम से कम 6 महीने के भीतर नहीं लाया सकता है. मार्च में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के तहत अब अगला अविश्वास प्रस्ताव सितंबर महीने में ही लाया जा सकता है.

कांग्रेस के सामने क्या है विकल्प
विपक्षी दलों की तरफ से अभी अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है. हालांकि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इसके लिए राज्यपाल से निवेदन कर सकते हैं. राज्यपाल के कहने पर मुख्यमंत्री को बहुमत साबित करना पड़ सकता है.

भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार अगस्त 1963 में जे.बी. कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के खिलाफ रखे गए इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े और विरोध में 347 वोट पड़े थे. 

संविधान के अनुसार क्या है अविश्वास प्रस्ताव
अविश्वास प्रस्ताव का सार भारत के संविधान के अनुच्छेद 75 में निहित है. कोई भी सदस्य मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है. ऐसा करने के लिए, उन्हें सदन के अध्यक्ष को एक लिखित नोटिस देना होगा. यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तो संपूर्ण मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना पड़ता है.  

हरियाणा सरकार पर कैसे आया संकट?
हरियाणा में हाल के दिनों भारी उथल पुथल देखने को मिला है. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने राज्य में मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह को राज्य का सीएम बना दिया. वहीं इस बीच राज्य बीजेपी और जजपा का गठबंधन भी टूट गया. राज्य में जजपा के 10 विधायक हैं. हालांकि 6 निर्दलीय विधायकों के समर्थन की वजह से बीजेपी की सरकार बच गयी. अब एक बार फिर निर्दलीय विधायकों के विद्रोह के बाद सरकार के पास बहुमत की कमी दिख रही है. हालांकि संवेधानिक नियमों के अनुसार नायब सिंह की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है. 

कुछ निर्दलीय विधायकों द्वारा कांग्रेस का समर्थन करने पर हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा है कि विधायकों की कुछ इच्छाएं होती हैं, कांग्रेस आजकल इच्छाएं पूरी करने में लगी हुई है. लोग सब जानते हैं कि किसकी क्या इच्छा है. कांग्रेस को जनता की इच्छाओं से मतलब नहीं है. 

इस साल के अंत में हरियाणा में होने वाले हैं चुनाव
हरियाणा में इस साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं. चुनाव आयोग की तरफ से सितंबर और अक्टूबर के महीने में चुनाव की घोषणा की जा सकती है. ऐसे में अब नायब सिंह की सरकार के अल्पमत में आने की कोई संभावना नहीं है. हालांकि कांग्रेस पार्टी की तरफ से नैतिकता के आधार पर राज्य सरकार से इस्तीफा मांगा जा रहा है. 

 

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