जिसके कार्टून से हिल जाती थीं सरकारें, तब नाराज हो गए थे लालू यादव

जिसके कार्टून से हिल जाती थीं सरकारें, तब नाराज हो गए थे लालू यादव

पटना : आज वर्ल्ड कार्टूनिस्ट डे है. आज का दिन कार्टून बनाने वालों के नाम समर्पित है. आज हम बिहार के सबसे चर्चित और प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट पवन टून्स से मिलवाने जा रहे हैं. पवन टून्स ने काफी छोटी उम्र से ही कार्टून बनाने शुरू कर दिए. एक समय उन्हें कार्टून बनाने के लिए घर में पीटा भी जाता था लेकिन, बाद में पवन टून्स ने कार्टून बनाने में जो प्रसिद्धि हासिल की उसके बाद जब भी अखबारों को अपना सर्कुलेशन बढ़ाना होता था तो पवन टून्स को बुलाया जाता था और उनसे कार्टून बनवा जाते थे. 

सरकार पवन से नाराज हो जाती थी
बिहार और बिहार के बाहर पवन टून्स का अपने क्षेत्र में बड़ा नाम है. पवन लगातार कार्टून बनाते रहे हैं पवन की ख्याति भी इसी क्षेत्र में है. कई अखबारों से जुड़े रहते हैं और जब भी अखबारों को अपना सर्कुलेशन बढ़ता होता है तो पवन टून्स को उसके लिए हायर किया जाता है. कार्टून के जरिए पवन ने कई गंभीर बातें इतने हल्के फुल्के अंदाज में लिखा, जिसका असर यह होता था कि उसे समय की तत्कालीन सरकार पवन से नाराज हो जाती थी.

पवन ने बदला 'कार्टून' का नजरिया
पवन बताते हैं कि एक बार जब उन्होंने लालू यादव के खिलाफ कार्टून बनाने शुरू किए थे, लालू यादव उस समय बिहार के मुख्यमंत्री थे, तो लालू यादव ने वकीलों का एक बड़ा पैनल बुलाया था और यह कहा गया था कि पवन टून्स कैसे करना है. लेकिन कार्टून के बारे में यह माना जाता है कि यह समाज का ही एक आइना होता है. इसे गुदगुदाने हंसने के लिए प्रयोग में लाया जाता है. पवन बताते हैं कि बाद में जब लालू यादव ने इसका राज खोला तो लालू यादव के साथ उन्होंने इस विषय पर बात की थी. लालू यादव को बताया था कि आलोचना अपने पास रखिएगा तो आपकी प्रसिद्धि और बढ़ेगी. उसके बाद लालू यादव ने कभी पवन टून्स को कार्टून बनाने से नहीं रोका.

कार्टून के लिए घर में पिटाई
कार्टूनिस्ट डे पर पवन टून्स बताते हैं कि वह जब बहुत छोटे थे तभी से उन्होंने कार्टून बनाना शुरू कर दिया था. घर में छुप-छुप कर वह कार्टून बनाया करते थे और जब कभी पकडे जाते थे तो उन्हें मार लगती थी. उनकी पिटाई इसलिए होती थी कि वह चित्र नहीं बनाते थे वह कार्टून बनाते थे और चेहरा किसी का भी सीधा नही होता था. चेहरा आड़ा तिरछा बनाया करते थे ऐसे में उनके परिवार वाले यह कहते थे कि वह चित्र भी बना रहे हैं तो आड़ा तिरछा बना रहे हैं. इसकी वजह से उन्हें मार लगती थी लेकिन, पवन पर धुन सवार थी कार्टूनिस्ट बनने की.

बाद में जब पवन टून्स सिक्स क्लास में गए तो उनकी पहली कार्टून 1984 में जनसत्ता में छपी थी. उसके बाद परिवार के लोगों ने पवन को गंभीरता से लेना शुरू किया. जब पवन ने पहली बार लालू यादव पर कार्टून बनाया था तो उनके समर्थकों ने संबंधित  अखबार के दफ्तर पर हमला कर दिया था और तोड़ फोड़ की थी.

राष्ट्रपति का भी कार्टून बनाया
पवन टून्स बताते हैं कि एक बार उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन का कार्टून बनाकर राष्ट्रपति भवन भेजा था. उसके बाद राष्ट्रपति भवन से पवन के लिए सराहना पत्र आया था. यह बात जब उनके मोहल्ले वालों को पता चला तो मोहल्ले में भी उन्हें काफी गंभीरता से लिया जाने लगा था. उसके बाद पवन टून्स ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. बाद के दिनों में तो पवन ने लालू यादव और राबड़ी देवी को लेकर उनकी प्रेम कहानी पर एनिमेशन फिल्म भी बनाई थी. जिसे लालू यादव ने काफी पसंद किया था.

सीएम हाउस में सीधी एंट्री थी
ब पवन से यह पूछा गया कि आपके संबंध लालू यादव से काफी बेहतर हैं तो उन्होंने बताया कि जब भी कोई सत्ता में रहता है तो वह उनके लिए कैरेक्टर हो जाता है. जब मैं कार्टून शुरू कर रहा था तो लालू यादव मुख्यमंत्री बन चुके थे और लालू यादव के कैरेक्टर को जानने के लिए वह प्रतिदिन लालू यादव के सामने दो घंटा बैठा करते थे. पवन बताते हैं कि वह इसलिए ऐसे करते थे कि वह लालू यादव के कैरेक्टर को समझ सकें और उनकी बातों को लिख सके. तात्कालिक मुख्यमंत्री लालू यादव ने अपने सिक्योरिटी को कहा था कि इसे गेट पर नहीं रोकना है. सीएम हाउस में सीधी एंट्री थी.

बिहार और बिहारिपन के लिए है बिहार
पवन बताते हैं कि उन्हें बाहर के राज्यों से या फिर दिल्ली से कई बार बड़े अखबार, बड़े मैगजीन के ऑफर जरूर आए लेकिन, वह नहीं गए उनका मानना है कि बिहार में रहकर बिहार की बातों को कहना उनकी बड़ी सफलता है. वह कहते हैं यहां रहकर यहां के चार लोगों को अपनी बातों से अवगत करा लेते हैं तो उनका कार्टून सफल माना जाता है. यही वजह है कि उन्होंने कभी बिहार को नहीं छोड़ा और अपने कार्टून में बिहारीपन को नहीं छोड़ा. वह कहते हैं उनका मन दूसरी जगह लग ही नहीं सकता है.

 

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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है। 

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