रामसखा के परिजनों की आंखों में खुशी के आंसू, बोले-राम से बढ़कर पृथ्वी पर कुछ नहीं

   रामसखा के परिजनों की आंखों में खुशी के आंसू, बोले-राम से बढ़कर पृथ्वी पर कुछ नहीं

बलिया । आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान रामलला के नूतन विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का उत्साह पूरे में देश में सिर चढ़कर बोल रहा है। रामलला के रामसखा के रूप में तीन दशक तक मुकदमे की पैरोकारी करने वाले त्रिलोकीनाथ पाण्डेय के परिजनों के लिए उतनी ही खुशी है। अयोध्या में प्रभु श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा का नाम से सुनते ही उनकी पत्नी समेत सभी के आंखों में खुशी के आंसू बहने लगते हैं।

उल्लेखनीय है कि त्रिलोकी नाथ पांडेय ने जीवनपर्यंत भगवान राम लला के साथ मित्रता निभाई और आजीवन राम मंदिर का सपना जिया। मंदिर निर्माण तो उनकी आंखों के सामने शुरू हो गया,मगर राम मंदिर में रामलला के दर्शन की इच्छा अधूरी रह गई। भगवान राम के प्रति इतना समर्पित रहते थे कि उनकी बेटी की शादी के विदाई के दिन राम मंदिर के मुकदमे की तारीख सुप्रीम कोर्ट में थी, वह अपनी बेटी की विदाई छोड़कर वह दिल्ली चले गए। अपने बेटे की सगाई में भी राममंदिर की तारीख के चलते नहीं आ पाए थे। उनके लिए राम से बढ़कर इस पृथ्वी पर कोई नहीं था। उनका पूरा परिवार रामलला के प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने के लिए निमंत्रण के इंतजार में है। हालांकि,वह न भी जा पाए तब भी इस आयोजन से काफी खुश हैं।

जिले के दयाछपरा निवासी त्रिलोकीनाथ पाण्डेय ने 'रामसखा' के रूप में सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़कर अयोध्या में भव्य राममंदिर की पटकथा लिखने में अहम भूमिका निभाई है। त्रिलोकीनाथ पाण्डेय 1979 में विहिप से जुड़े और उन्हें 1992 में अयोध्या लाया गया। तब से उन्होंने तीन दशक तक राममंदिर के मुकदमे में पैरोकारी की। पांच अगस्त 2020 को जब प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या में राममंदिर की आधारशिला रखी तो वे वहां मौजूद रहे। बीते वर्ष सितम्बर में उनका निधन हो गया।

रुंधे गले से रामलला के रामसखा यानी त्रिलोकीनाथ पाण्डेय की पत्नी विमला देवी कहती हैं कि मंदिर बन जाए,इससे बड़ी खुशी मेरे जीवन के लिए कुछ भी नहीं होगी। अयोध्या के कारसेवकपुरम में रह चुकीं विमला देवी बताती हैं कि त्रिलोकीनाथ पाण्डेय जब आते थे,राममन्दिर के बारे में जरूर चर्चा करते थे। जब भी मुकदमे की तारीख पता चलती थी,फौरन लखनऊ या दिल्ली के लिए निकल जाते थे। चाहे घर में कोई भी बड़ा काम हो,रुकते नहीं थे। वे हम सबको भगवान के सहारे छोड़कर निकल जाते थे। अयोध्या से हमलोगों का आधार कार्ड मांगा गया है। यदि बुलावा आ जाएगा तो चले ही जायेंगे। वहां भीड़ कैसी होगी,इसलिए बिना बुलाए नहीं जाएंगे। जीवित रहते तो जरूर आज इस पल के साक्षी बनते।

वह हमेशा कहते थे कि रामलला का मुकदमा जरूर जीतेंगे

स्व.त्रिलोकीनाथ पांडेय जी की पोती अनिता मिश्रा की मानें तो उनके नाना जी के बाद पूरा परिवार भगवान राम के लिए समर्पित है। वह इस प्राण प्रतिष्ठा से खासा खुश हैं। उन्होंने कहा कि वह आज जीवित होते तो पूरे परिवार को प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन में जाने का मौका मिलता। फिर भी उन्हें इस कार्यकर्म में जाने के लिए निमंत्रण का इंतजार है।

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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है। 

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