शुभ संकेत

संपादकीय

 शुभ संकेत

मिजोरम का जनादेश आने के बाद अब जनता ने पांचो राज्यों के लिए अपना अंतिम निर्णय दे दिया है। इसके साथ ही यह स्पष्ट हो गया है कि जनता ने मप्र छोड़कर बाकी चारों राज्यों में सत्ता के खिलाफ जनादेश दिया है। उन राज्यों में भी, जहां बदलाव के कोई आसार मतगणना शुरू होने के पहले तक नहीं थे, नतीजों ने अच्छे -अच्छे राजनीतिक पंडितों को हैरान कर दिया है। ख़ासकर छत्तीसगढ़ में एग्जिट पोल के तमाम सर्वे सहित राजनीतिक पंडित कांग्रेस सरकार के लौटने को लेकर निश्चित थे। लेकिन परिणामों ने सबको हैरान कर दिया। राज्यों के विधानसभा चुनावों के जनादेश प्रमुख तौर पर भाजपा के नाम ही रहे। हैरानी की बात है कि मप्र में उसे 163 सीटों का प्रचंड बहुमत मिला है। राजस्थान में भी 115 सीटें कमतर नहीं है। इसे भाजपा के पक्ष में सत्ता की लहर माना जा सकता है, क्योंकि ये जनादेश अनपेक्षित और अप्रत्याशित हैं। यह जनादेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कमल और पार्टी कैडर के नाम भी रहा, क्योंकि दोनों ही राज्यों में भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा पेश नहीं किया था, बल्कि संगठन ने एकजुट होकर चुनाव लड़े थे। राजस्थान में सत्ता का रिवाज नहीं बदला जा सका और कांग्रेस की गारंटियां भी जनता ने खारिज कर दीं तो वहीं सांप्रदायिक रक्तपात और ‘सर तन से जुदा..’ सरीखे मुद्दों ने भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण को गति दी और तुष्टिकरण के खिलाफ वोट पड़े।
 
नतीजतन मेवाड़, मारवाड़, जयपुर आदि क्षेत्रों में भाजपा ने शानदार जीत हासिल की। छत्तीसगढ़ का जनादेश सबसे ज्यादा चौंकाने वाला रहा। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने माना है कि इतने व्यापक अंडर करंट का एहसास भाजपा को भी नहीं था। बहरहाल छत्तीसगढ़ में सत्ता-परिवर्तन हो रहा है और भाजपा की सरकार बनना लगभग तय है।  भाजपा को 54  सीटें मिली हैं, जबकि बहुमत का आंकड़ा 46 है। 2018 के जनादेश की तुलना में कांग्रेस आधी से भी कम हो गई है। यह बेहद गंभीर पराजय है। जनता के इस मूड को कोई भी एग्जिट पोल और विश्लेषण भांप नहीं पाया। देश में सबसे ज्यादा आदिवासी छत्तीसगढ़ में रहते हैं और मप्र में इनकी 21 फीसदी आबादी है। दोनों ही राज्यों में भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल की है। मप्र और राजस्थान के जनादेश इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि वहां लोकसभा की क्रमश: 29 और 25 सीटें हैं। जनादेश से स्पष्ट है कि कम से कम उत्तर भारत में 2024 के आम चुनाव की लहर भाजपा के पक्ष में बह रही है। मप्र में बीते 18 साल से भाजपा सत्तारूढ़ है।
 
उसके बावजूद दो-तिहाई बहुमत हासिल हुआ है। यह 2018 के हैंग जनादेश की तुलना में जनता का बहुत बड़ा फैसला है। यह अच्छा है कि सभी राज्यों  में जनता ने अपना स्पष्ट निर्णय देकर सरकारें बनवाई हैं, इस कारण "हॉर्स ट्रेडिंग" जैसी गलत चीजों से बचा जा सका है। पूर्ण जनादेश चाहे वह किसी भी दल को मिले, हमेशा जनहित में होता है। ऐसा लगता है कि जनता भी गठबंधन सरकारों के खेल से ऊब चुकी है। यहां तक कि मिजोरम में त्रिकोणीय समझे जाने वाले मुकाबले में जनता ने जेडपीएम पर भरोसा दिखाया है। खुद मिजोरम के मुख्यमंत्री तक चुनाव हार गए हैं। जबकि जेडपीएम का जन्म ही चार साल पहले हुआ था। यह लोकतंत्र के लिए अति शुभ संकेत हैं कि मतदाता मच्योर निर्णय लेने में सक्षम हो रहे हैं और खिचड़ी सरकारों का युग जा रहा है।
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