नवजात बच्चों के लिए कारगर साबित होगी बबल सीपैप मशीन: पार्थ सारथी
बबल सीपैप से नवजात बच्चों के लिए वेंटीलेटर की निर्भरता होगी कम
By Harshit
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लखनऊ। सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट में कार्यरत बालरोग विशेषज्ञों, चिकित्सा अधिकारियों एवं स्टाफ नर्सों को बबल सीपीएपी के उपयोग के संदर्भ में शनिवार को एक दिवसीय दो बैचों में राज्य स्तरीय 38 प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण का समापन केजीएमयू के बाल रोग विभाग के स्टेट रिसोर्स सेन्टर में हुआ। कार्यशाला के अवसर पर प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पार्थ सारथी सेन शर्मा ने प्रशिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि कहा कि नवजात शिशु मृत्यु दर में सुधार लाने व स्वास्थ्य सूचकांकों में आशातीत सकारात्मक परिवर्तन के लिए स्वास्थ्य विभाग निरंतर प्रयास कर रहा है। इसी दिशा में एसएनसीयू में भर्ती शिशुओं को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने के लिए एसएनसीयू में बबल सीपैप की उपलब्धता के साथ कार्यरत चिकित्सकों व स्टॉफ नर्स को बबल सीपैप के प्रयोग के लिए निरंतर प्रशिक्षित किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चिकित्सकों के लिए देश-विदेश में हो रहे शोध और इलाज के तरीकों को जानने-समझने का प्रयास करना चाहिए ताकि जानकारी का लाभ मरीजों को प्राप्त कराया जा सके।
केजीएमयू की वाइस चांसलर डॉ. सोनिया नित्यानंद ने बताया कि कई बार देखने में आता है कि किन्हीं कारणों से नवजात को सांस लेने में दिक्कत होती है। इस स्थिति में नियोनेटल इन्टेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में भर्ती कर उसे तुरंत वेंटीलेटर पर रखा जाता है, जिसमें ट्रैकिया में ट्यूब डालकर सांस दी जाती है लेकिन बबल सीपैप मशीन से बिना किसी ट्यूब को अंदर डाले, नाक की सहायता से ही हल्के प्रेशर से ऑक्सीजन या हवा दी जाती है। हल्के प्रेशर से लगातार दबाव बनाने से यह होता है कि फेफड़े एक बार फूलने के बाद वापस पिचकते नहीं है. जिससे सांस लेना आसान हो जाता है। महानिदेशक (चिकित्सा एवं स्वास्थ), डॉ. बृजेश राठौर ने कहा कि जिन बच्चों के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं, उनके इलाज के लिए बबल सीपैप मशीन का प्रयोग किया जाता है। इस मशीन से धीरे-धीरे बच्चे के नाक में हवा दी जाती है, जो उसके फेफड़े को बढ़ने में मदद करती है। बबल सीपैप मशीन से सांस देने की एक खासियत यह भी है कि इसे सांस की बीमारियों से जन्मे नवजात शिशु के जन्म के तुरंत बाद प्रसव कक्ष में स्थित एनबीसीसी कार्नर में भी उपयोगित किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि नवजात शिशुओं और प्री मेच्योर बेबी में सांस न ले पाने की परेशानी के मामले अक्सर देखने में आते हैं, जिसके निवारण हेतु बबल सीपैप (लगातार सकारात्मक वायुमार्ग दबाव मशीन) के माध्यम से नवजात को सांस देने की तकनीक काफी कारगर साबित हो रही है। जहां यह नॉन इन्वेसिव होने के कारण वेंटीलेटर की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित है वहीं इसमें खर्च भी कम आता है। महानिदेशक (परिवार कल्याण), डॉ. शैलेश श्रीवास्तव ने कहा कि नवजात में सांस की समस्या के समाधान में बबल सीपैप काफी असरदार है। इसके इस्तेमाल से 80-90 प्रतिशत नवजात को वेंटिलेटर पर निर्भरता समाप्त हो जाती है। विभागाध्यक्ष बाल रोग, केजीएमयू प्रोफेसर माला ने कहा कि बबल सीपैप के कुशल उपयोग के संदर्भ में एसएनसीयू अंतर्गत मेडिकल प्रोफेशनल्स को प्रशिक्षित किए जाने हेतु देश में इस तरह का पहला प्रशिक्षण माड्यूल तैयार कर प्रथम प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण का आयोजन किया जाना दशार्ता है प्रदेश में बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए वृहद स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। डॉ. सुषमा नांगिया, न्यू नेटोलोजी फोरम की नेशनल चेयरमेन ने कहा कि उ०प्र० में बबल सीपैप को चिकित्सा इकाइयों में चरणबद्ध ठोस रणनीति से बढाया जा रहा है जो कि सराहनीय है। प्रशिक्षण के दूसरे दिन शनिवार को प्रशिक्षण में बबल सीपैप पर विशेषज्ञों ने अपने अनुभव साझा किए व कार्यशाला में बतौर प्रशिक्षक नवजात के सांस रोग से संबंधित समस्याओं और उनके निवारण में बबल सीपैप की भूमिका व इसके संचालन की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया।
इस अवसर पर डा. शालिनी त्रिपाठी, डा. एस.एन. सिंह. डा. अर्पिता, अधिशासी निदेशक. यूपीटीएसयू जॉन एंथोनी, महाप्रबंधक (बाल स्वास्थ्य) डॉ. सूयार्शू ओझा, सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर, बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन सुश्री गुंजन तनेजा, एवं प्रोग्राम मैनेजर, यूनीसेफ से डॉ. अमित मेहरोत्रा एवं हेल्थ स्पेशिलिस्ट डॉ. कनुप्रिया ने प्रशिक्षण में नवजात शिशुओं में सांस रोग से संबंधित समस्याओं और उनके निवारण में बबल सीपैप की भूमिका व इसके प्रयोग की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।
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