महाकुंभ में आस्था का हुआ भरपूर सम्मान, आर्थिकी को भी मिली गति

महाकुंभ में आस्था का हुआ भरपूर सम्मान, आर्थिकी को भी मिली गति

एमपीपीजी कॉलेज में महाकुंभ पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन तकनीकी सत्र में वक्ताओं ने कई आयामों पर की विशद चर्चा

गोरखपुर। महाराणा प्रताप महाविद्यालय, जंगल धूसड़ के कला संकाय के तत्वावधान में ‘महाकुंभ 2025 : परम्परा, अनुष्ठान और महत्ता’ विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन रविवार को समापन सत्र से पहले आयोजित तकनीकी सत्र में महाकुंभ के आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक आयामों पर विशद चर्चा हुई। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि प्रयागराज महाकुंभ में प्रदेश सरकार की तरफ से आस्था का भरपूर सम्मान तो हुआ ही, इस आयोजन से आर्थिकी को भी खूब गति मिली। 

तकनीकी सत्र के मुख्य वक्ता ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज प्रयागराज के प्राचार्य प्रो. आनंद शंकर सिंह ने ऑनलाइन जुड़कर संगोष्ठी को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि करते हुए कहा कि महाकुंभ पर्व भारतवर्ष का एक ऐसा सांस्कृतिक आयोजन है, जिसमें नए केवल भारतवर्ष की जनता बल्कि पूरे विश्व के कोने-कोने से लोग जुड़ते हैं तथा अपने आप को ईश्वर के प्रति समर्पित कर देते हैं। महाकुंभ भारत की अनन्त आध्यात्मिकता का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने कहा कि प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ मेले में स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता हिंदू धर्म में है, इसी वजह से महाकुंभ मेले का महत्व काफी बड़ा है। वैदिक ऋषि कहता है कुंभ मानव कल्याण एवं ज्ञान कुंभ है। प्रो. सिंह ने महाकुंभ की पौराणिकता पर विस्तार से चर्चा करते हुए माघ मास, कल्पवास एवं मत्स्य पुराण में वर्णित महाकुंभ के महात्म्य पर प्रकाश डाला।

विशिष्ट वक्ता रामजी सहाय स्नातकोत्तर महाविद्यालय देवरिया के प्राचार्य प्रो. बृजेश कुमार पाण्डेय ने महाकुंभ के आर्थिक पक्ष का विश्लेषण करते हुए कहा कि विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक आयोजन महाकुंभ 2025 ने व्यापार और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित किया है। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के अनुसार, इस बार का महाकुंभ भारत के सबसे बड़े आर्थिक आयोजनों में से एक बन गया है। यह आयोजन आस्था और अर्थव्यवस्था के गहरे संबंध को दर्शाता है।

विशिष्ट वक्ता श्री गोरखनाथ संस्कृत महाविद्यालय गोरखपुर के दर्शन विभाग के अध्यक्ष डॉ. प्रांगेश मिश्र ने कहा कि राष्ट्रजीवन में बहुत कुछ करणीय है और बहुत कुछ अकरणीय। यहां धर्म, दर्शन, संस्कृति, परंपरा और आस्था राष्ट्रजीवन के नियामक तत्व हैं। ये पांच तत्व राष्ट्रजीवन को ध्येय और शक्ति देते हैं। महाकुंभ मेला इन्हीं पांचों तत्वों की अभिव्यक्ति है। लाखों श्रद्धालुओं का बिना किसी निमंत्रण प्रयाग पहुंचना आश्चर्य पैदा करता है। करोड़ों लोग आस्थावश आए हैं। तमाम जिज्ञासावश आए हैं और लाखों आश्चर्यवश। उन्होंने कहा कि कुंभ शीर्ष आस्था और सांस्कृतिक प्रतीक है। 

तकनीकी सत्र की अध्यक्षता करते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो. विपुला दूबे ने कहा कि आधुनिकता की उन्मत्त गति की विशेषता वाली दुनिया में, कुछ ही आयोजन ऐसे होते हैं जो लाखों लोगों को अपने से बड़े उद्देश्य की खोज में एकजुट करने की क्षमता रखते हैं। महाकुंभ मेला इसका अप्रतिम उदाहरण है। महाकुंभ मेला, दुनिया भर में सबसे बड़ा शांतिपूर्ण सम्मेलन है। उन्होंने कहा कि महाकुंभ 2025 महज एक धार्मिक आयोजन नहीं है। यह भारत का सांस्कृतिक दूत है। इस आयोजन को "ब्रांड यूपी" विजन के साथ जोड़कर, उत्तर प्रदेश सरकार विदेशी निवेश को आकर्षित करने, सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने और स्थायी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अपनी विरासत का लाभ उठा रही है।

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