भीलूडा गांव में रक्षाबंधन पर परंपरागत रूप से खेले जाने वाले शौर्य प्रदर्शन के खेल "हरिया" का हुआ आयोजन
डूंगरपुर। प्रदेश के जनजाति बाहुल्य डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा उपखण्ड के भीलूडा गांव में रक्षाबंधन पर्व पर परंपरागत रूप से खेले जाने वाले शौर्य प्रदर्शन के खेल "हरिया" को सोमवार को हजारों लोगों ने खेल कर प्रथा को निभाया तथा इस प्रथा को निभाते हुए आने वाले वर्ष के मौसम की भविष्यवाणी को किसानों ने जाना डूंगरपुर जिले का भीलूडा गांव जो की माही नदी के तट पर बसा हुआ है। इस गांव में हर त्यौहार से एक अनुठी परंपरा जुडी हुई है। इसी तरह रक्षाबंधन पर्व पर भी यहां एक ऐसी परम्परा को निभाया जाता है जिसमें किसान वर्ग आने वाले वर्ष के मौसम की भविष्यवाणी को जानता है। पूर्व उपप्रधान नरेन्द पंड्या ने बताया कि रक्षाबंधन पर्व की संध्या को भीलूड़ा गांव के रघुनाथ मंदिर में गाँव के सभी वर्ग के हजारों की संख्या में लोग शामिल होते है और "टी" आकार का एक लकडी का हरिया बनाकर मंदिर के प्रागंण में गाढा जाता है और लोग उस टी आकार के हरिया की पुजा करते है। वहीं, विष्णु मंडल के सदस्य पानी के मटके भरकर लाते है जिस पर बरसात के महीनों के नाम लिखे होते है। गांव के ही आदिवासी बरंडा परिवार का एक सदस्य इस हरिया के चारों ओर लोक नृत्य करता है और लोक नृत्य के बाद उस गाढे हुए हरिया को निकालता है तथा वहाँ पर हजारों की तादात में जमा भीड को सौप देता है। उस हरिया को लेने के लिए लोग छिना-जपटी करते है। सैकडो वर्षो से चली आ रही इस हरिया प्रथा में यह छिना-जपटी का खेल करीब दो घंटो तक चलता है और इस खेल में हर साल कई लोग घायल होते है। फिर भी इस परम्परा को लोग निभाते आ रहे है। अंतिम में जाकर इस हरिया को उस बरंडा परिवार के सदस्य को दे दिया जाता है और वह हरिया से मिट्टी के मटके को फोड़ता है जिसके बाद लोक नृत्य करते हुए गांव के लक्ष्मीनारायण मंदिर के शिखर में बनी गुफा में इस हरिया को डालता है। हरिया के गुफा में गिरने की दिशा के अनुसार किसान आने वाले वर्ष के मौसम का हाल जानते है और सैंकडों वर्षो से चली आ रही परम्परा का निर्वहन करते है।
समाजसेवी सुनील कुमार ने बताया कि भीलूड़ा गांव में वनवासी बंधुओ व गांव के युवाओं व वरिष्ठजनों के मध्य वर्षों से हरिया परंपरा चली आ रही है। इस परंपरा के तहत विष्णु मण्डक द्वारा पानी से भरे मटके के चारों तरफ बरसात के महीने लिखे जाते हैं तथा उन मटकों के चारों ओर हरिया लेकर परिक्रमा करते हैं फिर उसे फोड़ा जाता है। फिर टूटे हुए मटकों के टुकड़ों को एकत्रित कर जिस खंड में जितना भाग रहता है उसके अनुसार एक अनुमान लगाया जाता है कि इतना आने वाले समय में बरसात होगी। उन्होंने बताया कि इस वर्ष जो इन्होंने अनुमान लगाया है जिसमें 30 दिन के आषाढ़ वाले समय में दो भाग यानी 20 दिन बरसात है तथा एक भाग यानी 10 दिन सूखा माना गया है। वहीं, श्रावण मास में एक भाग मतलब 10 दिन बरसात मानी गई है तथा बाकी के 20 दिन सूखा है। वहीं, भाद्रपद में पहले 10 दिन गिला है तथा बाकी के 20 दिन सूखा है वहीं, अश्विन मास में पहला 20 दिन गिला है और 10 दिन सूखा है। इस तरीके से मौसम के पूर्वानुमान की यह परिकल्पना लंबे समय से चली आ रही है। उन्होंने कहा कि कहीं-कहीं भाग में मौसम का पूर्वानुमान सटीक पाया गया है और आने वाले समय में यहां की वर्षा कैसी हो, फसल कैसी हो और क्षेत्र में खुशहाली हो इसके लिए वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन निर्बाध रूप से अभी तक चलता आ रहा है और जनजाति समाज के लोग, गांव के युवा एवं वरिष्ठजन मिलकर शोहार्दपूर्ण भाव से इस परंपरा का निर्वाह करते आ रहे हैं।
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