सीताबाड़ी में खोदाई में मिला था ढाई हजार साल पुराना कुआं

सीताबाड़ी में खोदाई में मिला था ढाई हजार साल पुराना कुआं

धमतरी।राजिम कुंभ कल्प मेला का आयोजन रामोत्सव के थीम पर किया जा रहा है। आयोजन को लेकर राजिम सहित आसपास के क्षेत्रों के प्रकाश से सजाया गया है। वहीं राजिम मेला क्षेत्र के पैरी नदी किनारे सीताबाड़ी में लोगों की भीड़ बढ़ रही है। सीताबाड़ी का ऐतिहासिक महत्व है। पुरातत्व विभाग द्वारा पिछले वर्षों में खोदाई की गई थी। खोदाई के दौरान मौर्यकाल तक के अवशेष मिले थे। अवशेष के आधार पर पुरातत्ववेत्ता के अनुसार इस जगह पर किसी समय में बंदरगाह होने की पुष्टि मिलती है। अनुमान लगाया जा रहा है कि किसी समय में इस बंदरगाह से व्यापार किया जाता रहा होगा। उल्लेखनीय है कि कुछ साल पहले सीताबाड़ी में पुरातत्व विभाग द्वारा खोदाई की गई थी। खोदाई के दौरान मौर्य काल तक के अवशेष मिले थे। तत्तकालीन सीताबाड़ी खोदाई के प्रभारी रहे डा अरुण शर्मा ने बताया था कि सिरपुर के उत्खनन में करीब 2600 वर्ष पहले के अवशेष प्राप्त हुए थे। लेकिन राजिम में उत्खनन के सबसे नीचे की सतह में करीब 2800 वर्ष पूर्व की तराशे हुए पत्थरों से निर्मित दीवारें मिली थी, जिनसे बड़े-बड़े कमरे बनते थे।

नदी किनारे सभ्यता फली-फूली
प्राचीन काल में नगरीय सभ्यता का विकास नदी के किनारे ही हुआ है और सभ्यताएं यही से निकली है। पहले के लोग घुमंतू होते थे और जीवन की तलाश में हमेशा ऐसी जगह को प्राथमिकता देते थे, जहां पानी, भोजन की पर्याप्त व्यवस्था हाे। महानदी तट पर विकसित सभ्यता के साथ व्यापारिक आदान-प्रदान के लिये उपयोगी जलमार्ग के कारण यहां बंदरगाह के अवशेष पाये जाना तर्क संगत हो सकता है। वैसे भी राजिम को तेल व्यवसाय का बड़ा और मुख्य केन्द्र माना जाता है। संभवतः तेल का व्यवसाय करने वाली जाति की आज भी इस क्षेत्र में काफी बाहुल्यता है। राजिम की किंवदंतियों में तेली समाज की अहम भूमिका भी सुनने को मिली है। एक किंवदंतियों यह भी है कि राजिम तेलिन बाई नामक भक्तिन माता के नाम ही इसका नाम राजिम पड़ा जो कालांतर में कमलक्षेत्र ,पद्मावतीपुरी के नाम से प्रख्यात था।आज राजिम प्रदेश के विकसित नगरों में से एक है यहां की प्राचीन धरोहरो के अवशेष राजिम की महानदी घाटी की सभ्यता का सशक्त द्योतक है। जिसकी प्रमाणिकता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा हुआ है।

महानदी घाटी की सभ्यता विकसित और समृद्धशाली थी
राजिम के साहित्यकार और भागवताचार्य संत कृष्णारंजन तिवारी ने अपनी पुस्तक महानदी घाटी की सभ्यता में राजिम के विभिन्न बिन्दुओें का तार्किक ढ़ंग से व्याख्या की है, जिसमें उन्होने सिंधु घाटी की सभ्यता की तरह महानदी घाटी की सभ्यता को भी काफी विकसित और समृद्धशाली बताया है। शासन द्वारा राजिम माघी पुन्नी मेला को कुंभ कल्प का स्वरूप दिया गया है। इससे राजिम को कला, संस्कृति और सभ्यता ही नहीं, बल्कि यहां की ख्याति भी देश-दुनिया तक फैली है। जिसका मुख्य कारण राजिम में आयोजित होने वाला कुंभ कल्प ही है।

 

 

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