भारत-नेपाल के बीच भाव और भावना का संबंध : प्रो. श्रीप्रकाश मणि

अकादमिक विकास से और मजबूत होंगे भारत-नेपाल के आपसी संबंध : प्रो. टंडन

भारत-नेपाल के बीच भाव और भावना का संबंध : प्रो. श्रीप्रकाश मणि

भारत-नेपाल के सांस्कृतिक अंतर्संबंधों पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का समापन*

×गोरखपुर, । भारत और नेपाल के बीच भाव और भावना का संबंध है। ऐसा संबंध राजनीति और आर्थिकी के संबंधों से कहीं अधिक मजबूत और गहरा होता है। दोनों राष्ट्रों के संस्कार और स्वभाव एकसमान हैं। दोनों धार्मिक और आध्यात्मिक दर्शन के मजबूत डोर से बंधे हुए हैं। 

यह बातें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक, मध्य प्रदेश के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने कहीं। प्रो. त्रिपाठी रविवार को महाराणा प्रताप महाविद्यालय जंगल धूसड़ में आयोजित 'भारत-नेपाल सांस्कृतिक अंतर्संबंधों की विकास यात्रा : अतीत से वर्तमान तक' विषयक तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के समापन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय और महाराणा प्रताप महाविद्यालय जंगल धूसड़ के संयुक्त तत्वावधान में हो रहे इस सेमिनार में प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि भारत नेपाल के लिए बड़े भाई की भूमिका में है तो नेपाल, भारत के लिए कवच के समान है। दोनों अपनी इन भूमिकाओं को बखूबी समझते हैं और निर्वहन भी करते हैं। प्राचीनकाल से दोनों राष्ट्रों के बीच अन्योन्याश्रित संबंध हैं। उन्होंने कहा कि नेपाल के शालिग्राम को भारत पूजता ही रहेगा। भगवान श्रीराम और शिवावतार गुरु गोरखनाथ भारत और नेपाल में एक जैसे पूज्य हैं। दोनों देशों के बीच बहुआयामी संबंध है और इसका मूल आधार दोनों की साझी संस्कृति है। 

समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने कहा कि भारत-नेपाल के ऐतिहासिक सांस्कृतिक संबंधों को नई ऊंचाई देने के लिए युवाओं को आगे लाने की आवश्यकता है। इस दिशा में अकादमिक पहल होनी चाहिए। अकादमिक विकास में भारत नेपाल का आपसी सहयोग मील का पत्थर बन सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए गोरखपुर विश्वविद्यालय और नेपाल के विश्वविद्यालयों के बीच करार किया गया है। नेपाल के युवा यहां और यहां के युवा नेपाल जाकर दोनों देशों के बीच रिश्ते को और सशक्त बनाएंगे। प्रो. टंडन ने कहा कि संस्कृति के विस्तार और मजबूती के लिए अकादमिक पक्ष को जोड़ना अपरिहार्य होता है। भारत और उत्तर प्रदेश का वर्तमान नेतृत्व नेपाल के साथ मैत्री संबंध प्रगाढ़ करने के लिए अपने संकल्प को कार्यों में परिलक्षित कर रहा है। महाराणा प्रताप महाविद्यालय की यह पहल दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों को नई दिशा देने वाली साबित होगी। 

*युवाओं के बल पर ठीक रहेंगे भारत-नेपाल के संबंध : नारायण ढकाल*
समापन सत्र के विशिष्ट अतिथि प्राज्ञीक विद्यार्थी परिषद, काठमांडू, नेपाल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री नारायण प्रसाद ढकाल ने कहा कि युवाओं के बल पर भारत-नेपाल संबंध ठीक रहेंगे। उन्होंने आह्वान किया कि नेपाल पर भारत के कुछ युवा शोध करें,  नेपाली भाषा भी जानें। भारत को बड़ा मन बनाकर चलना होगा, साथ ही नेपाल के मन की शंका को भी दूर करना होगा कि भारत उसकी सार्वभौमिकता सुरक्षित रखेगा। श्री ढकाल ने कहा कि नेपाल के लोग चाहते हैं कि भारत शार्क का नेतृत्व करे। विशिष्ट अतिथि नेपाल संस्कृत विश्वविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र के कार्यकारी निदेशक प्रो.  सुधन पौडेल ने कहा कि दोनों देशों के मैत्री संबंधों को मजबूत करने की दिशा में यह अंतरराष्ट्रीय सेमिनार एक नए अध्याय की शुरुआत जैसा है और इसके सुखद परिणाम सामने आएंगे। 

समापन सत्र को त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू, नेपाल के संस्कृत विभाग के आचार्य डॉ. सुबोध शुक्ल और दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा ने भी संबोधित किया। महाराणा प्रताप महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. प्रदीप कुमार राव ने अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के सभी विद्वतजन, प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस सेमिनार से दोनों देशों के सांस्कृतिक-आध्यात्मिक संबंधों को नई ऊर्जा मिली है। दोनों देश इस सिलसिले को निरंतर आगे बढ़ाते रहेंगे। सेमिनार का प्रतिवेदन दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र विभाग के सहायक आचार्य डॉ. अमित कुमार उपाध्याय ने प्रस्तुत किया। समापन सत्र में अतिथियों का स्वागत सेमिनार के संयोजकद्वय डॉ. पद्मजा सिंह और डॉ. सुबोध कुमार मिश्र ने किया। 

*अति महत्वपूर्ण बॉक्स*

*भारत-नेपाल के बीच मैत्री और सहयोग को बढ़ाएगा गोरखपुर घोषणा पत्र*
गोरखपुर। महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, गोरखपुर एवं महाराणा प्रताप महाविद्यालय, जंगल धूसड़ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘भारत नेपाल सांस्कृतिक अंतर्संबंधों की विकास यात्रा : अतीत से वर्तमान तक’ विषयक तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में दोनों देशों के अकादमिक विशेषज्ञों, राजनेताओं, विभिन्न संस्थानों एवं संगठनों के प्रतिनिधियों ने सम्यक विचार विमर्श किया। इस विमर्श से प्राप्त निष्कर्षों को आपसी सहमति से गोरखपुर घोषणा पत्र के रूप में पारित किया गया। सबने इस बात को स्वीकार किया कि गोरखपुर घोषणा पत्र भारत-नेपाल के बीच मैत्री और सहयोग को बढ़ाने में काफी कारगर होगा। 
इस घोषणा पत्र में दोनों देशों के अकादमिक विशेषज्ञों, राजनेताओं, विभिन्न संस्थानों एवं संगठनों के प्रतिनिधियों ने इस बात पर पूर्ण सहमति जताई कि भारत-नेपाल संबंधों के मूल दोनों देशों के मध्य सदियों पुराने धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध हैं। यह तय किया गया कि दोनों देशों के इस विशिष्ट संबंध को बनाये रखने के लिए दोनों देशों के नागरिकों, बौद्धिकों, राजनेताओं एवं युवाओं को इन सांस्कृतिक संबंधों को पुर्नजीवित करने तथा निरंतर प्रतिष्ठित करते रहने का कार्य करते रहना होगा। दोनों देशों के नागरिकों, विशेष रूप से शैक्षणिक क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्तियों और संगठनों को नियमित रूप से ऐसे संवाद और विमर्श कार्यक्रमों का आयोजन बारी-बारी से दोनों देशों में करते रहना चाहिए जिससे संबंधों का आधार और अधिक विस्तृत और सुगम हो सके। घोषणा पत्र के जरिये यह संकल्प भी लिया गया कि अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के उभयदेशीय प्रतिभागी भविष्य में दोनो देशों के संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिए नियमित रूप से प्रस्ताव एवं कार्ययोजनायें तैयार करते हुए दोनों देशों के नीति निर्धारकों के समक्ष ‘जनाकांक्षाओं के प्रस्ताव’ के रूप में प्रस्तुत करेंगे।

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