पुरुषार्थी मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं है---आचार्य विनोद
कथा सुनाते आचार्य विनोद व भक्तगण
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गोंडा । इस संसार में सब कुछ सम्भव है,ऐसा कुछ भी नहीं जो असंभव हो, यह ऐसा इसलिए कि जीवन सम्भावनाओं से भरपूर है और संभावनाएं भी अकेली नहीं हैं।उनमें बहुत कुछ संयुक्त, संलग्न है। वह अपनें साथ अपना विकल्प, अपना जोरदार तो अपना विपरीत भी लाती हैं। उक्त बातें आचार्य विनोद ने कथा सुनाते हुए आगे कहा कि कई अवसर दिखते हैं, नये नये दस्तकों से सामना होता है। यहां मार्ग भी है,उपाय भी है.यत्र तत्र सर्वत्र निगाह करें,अपनें आस पास ही देंखें, कहो यहां क्या नहीं है। ऐसा क्या जो संभव नहीं है। इन्सान अवसर की तह में संभावनाओं के बीच पनपता भी है,और टूटता भी है, पाता भी है और गंवाता भी है। उसके लिए सारी दिशाएं मौजूद हैं,सारे द्वार खुले हैं, बस अच्छे-बुरे को,सही गलत को अलग करके देखना है, चुनना है और चलना है।
फिर जिसनें चलना शुरु कर दिया, निश्चित ही वह आज नहीं तो कल पहुंच ही जायेगा, फिर उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं, सब संभव है. लेकिन चयन करना इतना सरल भी नहीं, वह भी एक कला है, उसके लिए गहरी पारखी आंखें होनी चाहिए, और हंस जैसा नीर क्षीर का बिबेक और हुनर भी जरुरी है,सच तो यह है ब्यक्ति को ब्यक्ति बनाता है उसका ब्यक्तित्व,और ब्यक्तित्व बनता है सकारात्मक बिचारों से तथा सकारात्मक विचार तभी उत्पन्न होते हैं, प्रकट व अभिब्यक्त होते हैं,जब रुपान्तरण बाह्य या ऊपरी सतह पर नहीं अपितु भीतरी तल पर घटता है।
दूसरे शब्दों में जब परिवर्तन आत्मिक होता है, और परिवर्तन जब आत्मा के स्तर पर होता है, तब सब संभव होता है। तब सोच भी सही और नजरिया भी साफ हो जाता है, हमारा नियंत्रित मन, हमारे अच्छे सम्बन्ध, हमारा सकारात्मक दृष्टिकोण, हमारें जीवन जीनें की कला और हमारी खुशी की समझ सारे समस्याओ को सुलझाने में समर्थ हो जाता है। सब संभव हो जाता है। "चलो पंथ के राही तूं, जीवन के उत्साही तूं. कभी अकेला नहीं समझना, प्रभु के हो हमराही तूं, आपसभी भक्तजन सफल हों, समर्थ हों, सक्षम हों, समृद्ध हों, सुखी हो, स्वस्थ हों, सानन्द हों भगवान से यही प्रार्थना है।
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