जानिए कैसे तेजी से पिघलती बर्फ ने बढ़ाई दुनिया की टेंशन
नई दिल्ली: धरती का बढ़ता तापमान कितना खतरनाक साबित हो सकता है. ये बात किसी से छिपी नहीं है. हालांकि, आने वाले वक्त में बढ़ते तापमान की वजह से बड़ी मुसीबतें खड़ी हो सकती हैं. दरअसल, जलवायु परिवर्तन की वजह से पृथ्वी के घूमने की रफ्तार पर प्रभाव पड़ रहा है. इसकी वजह से आने वाले वक्त में समय में बदलाव भी देखने को मिल सकता है. एक स्टडी में इस बात का दावा किया गया है.
ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका जैसी जगहों पर बर्फ तेजी से पिघल रही है, जिसका नतीजा है कि समुद्री जलस्तर दिनों-दिन बढ़ रहा है. बर्फ के पिघलने और जलस्तर के बढ़ने की वजह से पृथ्वी के घूमने की रफ्तार थोड़ी कम होती जा रही है. हालांकि, हमारा ग्रह अभी पहले की तुलना में तेजी से ही घूम रहा है. मगर धरती का तापमान बढ़ने की वजह से पिघल रही बर्फ समय में थोड़ी सी कमी ला सकती है.
पृथ्वी की घूमने की दर का समय पर असर
नेचर जर्नल में पब्लिश की गई स्टडी में कहा गया, "ग्लोबल वार्मिंग पहले से ही ग्लोबल टाइमकीपिंग को प्रभावित कर रही है." दुनियाभर में घड़ियों और समय का निर्धारण करने के लिए 'कोऑर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम' (UTC) का इस्तेमाल किया जाता है. यूटीसी पृथ्वी की घूमने की रफ्तार के जरिए तय होती है. मगर पृथ्वी के घूमने की दर स्थिर नहीं है, इसलिए इसका असर हमारे दिन और रात की लंबाई पर सीधे तौर पर पड़ सकता है.
अगर पृथ्वी के घूमने की रफ्तार धीमी होती है, तो दिन बड़े हो सकते हैं. समय का निर्धारण करने वाले ग्लोबल टाइमकीपर्स ने 1970 से वैश्विक घड़ी में 27 लीप सेकेंड्स जोड़े हैं. हालांकि, अब पहली बार टाइमकीपर्स वैश्विक घड़ी में 2026 में एक सेकेंड कम करने पर विचार कर रहे हैं. इस घटना को 'निगेटिव लीप सेकेंड' कहा जाता है. हालांकि, स्टडी में ये भी कहा गया है कि बर्फ पिघलने की रफ्तार थोड़ी बहुत कम जरूर हुई है.
क्या होगा समय में बदलाव का असर?
स्टडी के मुताबिक, अभी तक 'निगेटिव लीप सेकेंड' का कभी इस्तेमाल नहीं किया गया है. इसका उपयोग दुनियाभर के कंप्यूटर सिस्टम के लिए एक अभूतपूर्व समस्या खड़ी कर देगा.
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में रिसर्चर डंकन एग्न्यू ने कहा, "ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है और यह सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है कि ग्लोबल टाइमिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के सभी हिस्से एक ही समय दुनियाभर में दिखाएं. लीप सेकेंड को लेकर कई कंप्यूटर प्रोग्राम मानते हैं कि वे सभी पॉजिटिव हैं, इसलिए इनकी कोडिंग फिर से करनी होगी."
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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है।
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