यूरिक एसिड तुरन्त पहचान आसान नहीं, चुनौती बन रहा हाइपरयूरिसीमिया
यूरिक एसिड शरीर का सामान्य अपशिष्ट उत्पाद है। व्यक्ति के खून में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ने से स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ सकता है। यह आम स्थिति है, जिसे हाइपरयूरिसीमिया भी कहते हैं। इसके तुरंत लक्षणों का पता लगाना आसान नहीं होता, लेकिन लोगों की तंदुरुस्ती पर इसका लंबे समय तक काफी ज्यादा प्रभाव हो सकता है। अकसर देखने में आया है कि इसका निदान नहीं हो पाता, इसलिए हमें जोखिम के घटकों को पहचानने और जल्दी जांच कराने पर ज्यादा जोर देने की जरूरत है। हाइपरयूरिसीमिया भारत में एक लगातार बढ़ती चुनौती है।
भारत में एबॅट के एसोसिएट मेडिकल डायरेक्टर, डॉ. कार्तिक पीतांबरन के मुताबिक, यूरिक एसिड के उच्च स्तर से शरीर पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन अधिकांश रोगियों में इसके लक्षण प्रकट नहीं होते हैं। इस कारण से लोगों के लिए जोखिम के घटक की पहचान करना और जल्द से जल्द खुद की जांच कराना जरूरी हो जाता है, ताकि वे समय पर इसका पता लगा सकें। इसके हानिकारक प्रभावों से खुद को बचा सकें। अगर समय रहते इस बीमारी का पता लग जाता है, तो इससे संबंधित जटिलताओं के खतरे को भी कम किया जा सकता है। हमारी कोशिश है कि डॉक्टरों और रोगियों, दोनों को मदद पहुंचाने वाले समाधानों के द्वारा जांच एवं देखभाल की प्रक्रिया को सरल बनाने की है। इससे लोगों को अपना यूरिक एसिड का स्तर नियंत्रण में रखने के लिए सही जानकारी के साथ उनका सशक्तिकरण सुनिश्चित किया जा सकता है।
यूरिक एसिड के उच्च स्तर से स्थायी किडनी रोग
फोर्टिस हॉस्पिटल, दिल्ली के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. संजीव गुलाटी ने कहा, एक अध्ययन के अनुसार, डायबिटीज व हाइपरटेंशन या इन दोनों बीमारियों से पीड़ित रोगियों में से 30 फीसदी से अधिक हाइपरयूरिसीमिया होता है। यूरिक एसिड का उच्च स्तर स्थायी किडनी रोग और किडनी में तीव्र चोट के बढ़ने का भी कारण बन सकता है। हालांकि, अलाक्षणिक मामले निदान के बगैर गंभीर हो सकते हैं। बढ़े यूरिक एसिड की जल्दी जांच और उचित प्रबंधन स्वास्थ्य के अच्छे प्रबंधन एवं सम्बंधित स्थितियों को रोकने या संभालने के लिए बेहद जरूरी हैं। आमतौर पर, दोनों किडनी शरीर में उत्पन्न होने वाले यूरिक एसिड का 60 फीसदी से 65 फीसदी प्रभाव हटाती हैं, जो पेशाब के दौरान रक्तप्रवाह से छन कर बाहर निकल जाता है। बाकी बचा हुआ यूरिक एसिड आंतों और पित्त (बाइल) के रास्ते निकलता है। जब बहुत ज्यादा यूरिक एसिड बनने लगता है या उचित ढंग से उत्सर्जित नहीं होता है, तब समस्या हो सकती है। इसके परिणामस्वरूप क्रिस्टल जमा होने लगते हैं, जिससे शरीर के जोड़ों में या किडनी में एकत्र होकर गठिया (अर्थराइटिस का एक कष्टदायक रूप), किडनी में पथरी (किडनी स्टोन) या स्वास्थ्य की दूसरी जटिलताएं सामने आने लगती हैं।
यूरिक एसिड का सामान्य निष्कासन बाधित
यह समस्या कितनी आम है, अध्ययन बताते हैं कि हाइपरयूरिसीमिया भारत में लगातार बढ़ती एक गंभीर चुनौती है। भारत के विभिन्न राज्यों में इसकी व्यापकता अलग-अलग है। कुछ क्षेत्रों में तो यह प्रतिशतत्ता 47.2 तक है। उच्च यूरिक एसिड, पुरुषों और बुजुर्गों सहित कुछ खास आबादी में विशेष रूप से आम है। खून में यूरिक एसिड का बढ़ा हुआ स्तर किडनी, जठरांत्र और हॉर्मोन से सम्बंधित रोगों का कारण बन सकता है। इसके चलते शरीर से यूरिक एसिड का सामान्य निष्कासन बाधित हो जाता है। अत्यधिक फैटी मीट्स, सीफूड, अल्कोहल, सूखे बींस और मटर का, सेब, तरबूज आदि जैसे फ्रक्टोज से भरपूर फल, जिनमें प्राकृतिक रूप से ज्यादा शुगर होती है, का सेवन करने पर भी यूरिक एसिड का स्तर बढ़ सकता है।
कैसे करें हाइपरयूरिसीमिया की पहचान?
कुछ लोगों में यूरिक एसिड का स्तर ज्यादा होने पर जोड़ों में तेज दर्द, कोमलता, लालिमा या सूजन हो सकती है। जब यूरिक एसिड का उच्च स्तर किडनी में पथरी का रूप ले लेता है, तब पीठ के एक या दोनों ओर निचले हिस्से में या पेट में दर्द, मितली, पेशाब करते समय कठिनाई व दर्द जैसे लक्षण भी हो सकते हैं। हाइपरयूरिसीमिया से पीड़ित करीब 60 फीसदी लोगों में कोई लक्षण दिखाई नहीं देता। इसका नतीजा यह होता है कि अनेक लोग निदान के बिना रह जाते हैं। फिर भी, लक्षण रहित हाइपरयूरिसीमिया एक जोखिम है, जिससे हृदयधमनी के रोग, मोटापा, डायबिटीज आदि हो सकते हैं।
इस अवस्था में खतरा और अधिक बढ़ सकता है, अगर आप पुरुष है, बुजुर्ग हैं, मोटापा या उच्च बॉडी मास इंडेक्स के शिकार हैं। अत्यधिक रेड मीट, सीफूड, अल्कोहल या फ्रक्टोज का सेवन करते हैं। हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप), डायबिटीज, किडनी रोग, हाइपरलिपिडेमीया, और हाइपोथाइरॉइडिज्म जैसी अवस्था वाले लोगों को भी भारी खतरा रहता है। असल में कुछ प्रतिष्ठित चिकित्सीय संगठनों ने हृदयधमनी रोगों, डायबिटीज, चयापचयी लक्षण और किडनी स्टोन वाले रोगियों के लिए हाइपरयूरिसीमिया की जांच की अनुशंसा की है। इसके लिए जोखिम आंकलन पैमाना जैसे आसान साधन उपलब्ध हैं, जो किसी व्यक्ति के बढ़े हुए यूरिक एसिड लेवल के संभावित खतरे की गणना कर सकता है।
संबंधित जटिलताओं से बचाव
अध्ययनों से पता चला है कि यूरिक एसिड के उच्च स्तर के कारण हृदयधमनी रोगों के होने का खतरा भी बढ़ जाता है। हाइपरटेंशन, एक्यूट इस्केमिक स्ट्रोक या कोरोनरी आर्टरी रोग वाले लोगों में हाइपरयूरिसीमिया की व्यापकता अधिक है। अनुसंधान से यह भी संकेत मिलता है कि यूरिक एसिड का बढ़ा हुआ स्तर इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ावा दे सकता है। इसके चलते टाइप-2 डायबिटीज हो सकता है। जीवन शैली में कुछ बदलावों के द्वारा भी हाइपरयूरिसीमिया या इससे संबंधित जटिलताओं को रोका जा सकता है।
इन बदलावों में रोजाना व्यायाम, शारीरिक वजन पर नियंत्रण, रेड मीट, मछली और शराब के सेवन में कमी, कम चर्बी वाले दुग्ध उत्पादों का सेवन, पर्याप्त विटामिन सी वाले खाद्य लेना और ज्यादा वानस्पतिक प्रोटीन, नट्स, और फलियों का सेवन करना, उच्च फ्रक्टोज वाले कॉर्न सिरप (शुगर का एक प्रकार) से बचना और शुगर मिश्रित पेय पदार्थों के सेवन में कमी करना शामिल हैं। लोगों को अगर शक हो कि उन्हें हाइपरयूरिसीमिया का ज्यादा खतरा हो सकता है या इससे सम्बंधित कोई लक्षण हैं, तो उन्हें अपने डॉक्टर से सलाह करनी चाहिए। इससे उन्हें अपना यूरिक एसिड स्तर कम करने के लिए कारगर कार्य योजना बनाने में मदद मिलेगी।
About The Author

‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है।
टिप्पणियां