प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान में प्रायश्चित और यज्ञशाला (कर्म कुटी) पूजन का महत्व
अयोध्या । श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में आज से श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठानों की शुरुआत हुई है। यह वैदिक परंपराओं के अनुसार शुरु की गयी है। आज प्रायश्चित पूजन और कर्म कुटी (यज्ञशाला) पूजन से शुरू हुई। लेकिन हर किसी के मन में यह जिज्ञासा है कि किसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की वैदिक परंपरा की शुरुआत प्रायः प्रायश्चित और कर्म कुटी पूजन अर्थात यज्ञ वेदिका पूजन से क्यों शुरू होती है?
आचार्य सरोजकांत मिश्र बताते हैं कि यह पूजा, जाने अनजाने में जीवन के किसी भी क्षण में होने वाली प्रत्येक गलतियों अथवा पाप का प्रायश्चित है। यह मनसा-वाचा-कर्मणा होना चाहिए। निर्धारित विधि का अनुसरण कर मंत्र शक्ति से इसे पूर्ण किया जाता है। एक तरह से यह प्रक्रिया शरीर, मन और वचन का शुद्धिकरण है।
वैदिक साहित्य में प्रायश्चित का बहुत महत्व है। सामान्य अर्थ में यह किसी गलती की स्वीकारोक्ति के साथ पछतावा है। यही कार्य, प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व यजमान करता है। वैदिक परंपरा के मुताबिक वह शारीरिक, आंतरिक, मानसिक और बाह्य तरीकों से पछतावा अर्थात प्रायश्चित करता है। वाह्य प्रायश्चित के लिए 10 विधि स्नान की व्यवस्था है। पंच द्रव्य, औषधीय व भस्म सामग्रियां शामिल कर इसे पूर्ण किया जाता हैं।
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