श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह: नए युग का ऐतिहासिक शुभारम्भ

श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह: नए युग का ऐतिहासिक शुभारम्भ

रामलाल

बीते 22 जनवरी को अयोध्या में एकता, श्रद्धा, भक्ति और समरसता का अविस्मरणीय संगम देखा गया। जहां देश के प्रत्येक कोने से, भिन्न भिन्न पृष्ठभूमि से आए सहस्रों रामभक्त भव्य राममंदिर में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साक्षी बनने के लिए एकत्र हुए। श्री रामलला के आगमन के नाद से भारतवर्ष में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व में नवोत्साह की लहर का संचार हुआ।

भारतीय इतिहास में इस तरह का भव्य आयोजन कदाचित ही हुआ होगा, जिसमें सूक्ष्म स्तरीय योजना एवं वृहद् स्तरीय समायोजन का अनोखा मेल देखने को मिला। अयोध्या में भारत और सनातन सभ्यता की प्रत्येक ध्वनि, प्रत्येक भावना और प्रत्येक परम्परा को प्रभु श्रीराम के छत्र में प्रतिछाया मिली। लक्षद्वीप और अंडमान के एकांत द्वीपों से लद्दाख के सुदूर पर्वतों तक, मिजोरम एवं नागभूमि के हरित वनों से लेकर मरुभूमि की रेत तक, भारत के 28 राज्य एवं 8 केंद्र शासित प्रदेश इस महा-आयोजन के साक्षी बने और भारत की सभी भाषाओं ने कहा की ‘राम सभी के हैं।’

सितम्बर, 2023 से ही आमंत्रितों की सूची बनाने से लेकर उनको बुलाने की व्यवस्था का चिंतन प्रारम्भ हो गया था सभी को निमंत्रण देने का क्रम डिजिटल पत्राचार से प्रारम्भ हुआ, जिसके बाद सभी आमंत्रितों को राष्ट्र के सुदूर क्षेत्रों में जाकर भी व्यक्तिगत रूप से निमंत्रण दिए गए। अंतत: सभी आमंत्रितों को एक व्यक्तिगत कोड दिया गया। कार्यक्रम का स्वरूप पूर्णतय: धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रखा गया। इस हेतु सभी राष्ट्रीय और प्रांतीय दालों के राष्ट्रीय अध्यक्षों और गृह प्रदेश के मुख्यमंत्री के अतिरिक्त किसी केंद्रीय मंत्री अथवा मुख्य मंत्री को निमंत्रण नहीं दिया गया। उस दिन आमंत्रित विशिष्ट अतिथियों में यह भी एक चर्चा का विषय था।आमंत्रित महानुभावों में 10 रुपए से लेकर करोड़ों तक का दान करने वाले सभी दान-दाता वर्गों का प्रतिनिधित्व था।

राष्ट्र और सनातन सभ्यता के विभिन्न उद्गम स्थलों से निकलने वाली 131 प्रमुख और 36 जनजातीय, नवीन एवं प्राचीन धार्मिक परम्पराओं का प्रतिनिधित्व था। इनमे सभी अखाड़े, कबीर पंथी, रैदासी, निरंकरी, नामधारी, निहंग, आर्य समाज, सिंधी, निम्बार्क, पारसी धर्मगुरु, बौद्ध, लिंगायत, रामकृष्ण मिशन, सत्राधिकर, जैन, बंजारा समाज, मैतेई, चकमा, गोरखा, खासी, रामनामी आदि प्रमुख परम्पराएँ सम्मिलित थी। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन-जाति, घुमंतू समाज (Nomad Tribes) के प्रमुख जनों का भी प्रतिनिधित्व था। विभिन्न मत-पंथ जैसे इस्लाम, ईसाई, पारसी का भी यहाँ प्रतिनिधित्व था। 1949 में रामलला के पक्ष में निर्णय लेने वाले जिला न्यायाधीश श्री नय्यर के परिवार के साथ तत्कालीन Duty Constable अब्दुल बरकत, जिन्होंने गवाही दी थी, उनके परिवार को भी आमंत्रित किया गया था। रामलला के विरुद्ध मुकदमा लड़ने वाले परिवार के साथ तत्कालीन अधिकारियों के परिवारों को भी निमंत्रण दिया गया था।

रामजन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व करने वाले और इस आंदोलन में बलिदान हुए भक्तों के परिवार के सदस्य, रामजन्मभूमि की न्यायिक प्रक्रिया में सहभागी अधिवक्ता-गण भी इस आयोजन में सम्मिलित हुए। भारत की माननीया राष्ट्रपति और माननीय उप-राष्ट्रपति जी के साथ पूर्व राष्ट्रपति एवं प्रधान-मंत्री भी इस कार्यक्रम में आमंत्रित थे। भारत की सुरक्षा में तत्पर तीनों सेनाओं के सेवानिवृत्त सेनाध्यक्ष और परमवीर चक्र विजेता भी यहाँ थे और भारत को चंद्रमा तक ले जाने वाले इसरो के वैज्ञानिकों से लेकर भारतीय कोविड-वैक्सीन बनाने वाले वैज्ञानिक भी यहाँ थे। उच्चतम न्यायालय के तीन पूर्व मुख्य न्यायाधीश सहित अनेक पूर्व न्यायाधीश, सेवानिवृत्त प्रशासनिक पुलिस एवं अन्य अधिकारी, विभिन्न देशों में रहे भारत के राजदूतों से लेकर बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, नोबेल पुरस्कार, भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्मश्री और मैग्सेसे पुरस्कार के साथ साथ साहित्य अकेडमी पुरस्कार से सम्मानित महानुभाव भी सम्मिलित हुए।

प्रख्यात अधिवक्ता, चिकित्सक, सीए, समाचार पत्रों और टीवी चैनल्स के संचालक/सम्पादक, प्रख्यात सोशल-मीडिया इंफ्ल्युएंसर्स आदि के साथ साथ देश के बड़े औद्योगिक परिवार भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे। भारत के प्रमुख राज परिवारों के सदस्यों से लेकर अनेक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ी; चित्रकारी, शिल्पकारी, गायन, लेखन-साहित्य, वादन, नृत्यकला आदि ललित कलाओं के कलाकार, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, तमिल, तेलुगु, मराठी, गुजराती, बंगाली, ओडिया, असमिया, भोजपुरी, पंजाबी एवं हरियाणवी फ़िल्म उद्योग की अनेक हस्तियाँ भी इस आयोजन में सम्मिलित हुईं। 53 देशों से आये 150 प्रतिनिधि भी इस समारोह में सम्मिलित हुए।मुख्य पूजा में 15 यजमान बैठे थे, जिनमें सभी जातियों-वर्गों (सिख, जैन, नवबौद्ध, निषाद समाज, वाल्मीकि समाज, जनजाति समाज, घुमंतू जातियाँ आदि) और भारत की सभी दिशाओं (उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, उत्तर-पूर्व) से आए व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व था।

इन सभी की मंच पर ही बैठने की व्यवस्था थी। देश का पोषण एवं विकास करने वाले किसान और मज़दूर बंधुओं के साथ सहकारिता और ग्राहक संगठनों के प्रतिनिधि भी यहाँ उपस्थित थे। एलएंडटी व टाटा समूह के अधिकारी, अभियंता और श्रमिक भी यहाँ उपस्थित थे। जिन श्रमिकों ने प्रभु श्रीराम के मंदिर के निर्माण को आकार दिया, प्रधानमंत्री ने स्वयं उन पर पुष्प-वर्षा करके उनका अभिनंदन किया। संघ और विश्व हिंदू परिषद के अनेक प्रबंधक कार्यकर्ताओं से लेकर संघ के पूजनीय सरसंघचालक माननीय मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।तीन दिनों में अयोध्या में बिना किसी राजनैतिक या व्यावसायिक आयोजन के 71 निजी विमान गतिमान हुए। लखनऊ तथा अयोध्या के विमानतल एवं लखनऊ, अयोध्या, काशी, गोरखपुर, गोंडा, सुल्तानपुर, प्रयागराज आदि रेल-स्टेशनों पर केसरिया पटके के साथ स्वागत एवं यातायात की पूर्ण व्यवस्था की गयी। विभिन्न उपस्थित लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, सभी के लिए आवास व्यवस्था सावधानीपूर्वक तैयार की गई थी।

टेंट सिटी, होटेल, आश्रम, धर्मशाला सहित कुछ विद्यालयों तथा 200 स्थानीय परिवारों में रुकने की व्यवस्था की गयी थी। सम्पूर्ण अयोध्या ‘राम आएँगे’ गीत की ध्वनि से गुंजायमान थी। अयोध्या की गलियों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद देर रात्रि तक सभी ने लिया।भारत का इतिहास साक्षी है कि यह स्वयं में ऐसा एक ही कार्यक्रम था जहां इस स्तर के व्यक्ति 4-5 घंटों तक सामान्य कुर्सियों पर बैठे। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा जी वहाँ 4 घंटे व्हील-चेयर पर बैठे। ना तो वहाँ किसी के सहयोगी थे, ना ही सुरक्षाकर्मी। प्रसाद स्वरूप सभी को जल सेवा एवं जलपान अपनी कुर्सियों पर ही दिया गया। प्रभु श्रीराम के घर में सभी जातियाँ, सभी वर्ग, सभी क्षेत्र, एक समान थे, एक साथ थे। सभी ने अपने औहदे, अपनी सामाजिक-आर्थिक महत्ता से ऊपर उठकर अयोध्या के सादगी-पूर्ण आतिथ्य को सहृदय स्वीकार किया।

भारत के हर नगर, हर गाँव में सभी प्रभु श्री राम के शुभागमन हेतु आतुर थे। सम्पूर्ण भारत का हर गाँव, हर मोहल्ला, हर मंदिर अयोध्या बन गया था। जो अयोध्या नहीं आ पाए, उन्होंने स्थानीय मंदिरों में पूजन किया, रात्रि में दीपोत्सव मनाया। सभी का मन एवं आत्मा उस दिन अयोध्या में ही थे। श्री रामलला के स्वागत हेतु अयोध्या नगरी एवं मंदिर परिसर को भी असंख्य क्विंटल पुष्पों से सुसज्जित किया गया, भारत के सभी प्रांतों के परम्परागत वाद्य-वादक, 30 से अधिक कलाकारों ने वातावरण को राम-गीतों से संगीतमय कर दिया और आरती के समय सहस्रों पीतल की घंटियों से मंदिर परिसर गुंजायमान हो उठा। रामलला के अवतरण के साथ ही, हेलिकॉप्टर द्वारा मंदिर परिसर पर की गयी पुष्प वर्षा से लग रहा था मानों सम्पूर्ण देवलोक प्रसन्ना होकर पुष्प-वर्षा कर रहा है।

यह आयोजन एक समारोह मात्र के स्तर से ऊपर उठ गया था, यह एक दैवीय अनुभूति, एक आध्यात्मिक यात्रा में परिवर्तित हो चुका था। अगले दिन तो प्रातः 3 बजे से ही श्रद्धलुओं ने श्री रामलला के दर्शन हेतु पंक्ति-बद्ध होना प्रारम्भ कर दिया था। 23 जनवरी को लगभग 5 लाख लोगों ने उत्साह और पूर्ण अनुशासन के साथ श्री रामलला के दिव्य दर्शन किए।अयोध्या के इस दैवी आयोजन ने जाति, वर्ग, भाषा, प्रांत, मत-पंथ की सीमाओं को पार करते हुए, परंपरा से ओत-प्रोत, फिर भी प्रगति को गले लगाते हुए, एक राष्ट्र की सामूहिक चेतना का जागरण किया। प्रभु श्रीराम की चिर-विरासत का एक प्रमाण, जो विश्व भर में करोड़ों लोगों को प्रेरित और एकजुट करता यह आयोजन, एकता, अखंडता, समरसता और श्रद्धा के ‘रामोत्सव’ के रूप में युगों-युगों तक जीवित रहेगा। अब समय आ गया है कि हम प्रभु श्रीराम का स्मरण कर, भारत को सुखी, संपन्न, स्वस्थ, समर्थ और सम्मानित राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का संकल्प लें। भारत को ‘विश्व-गुरु’ के रूप में स्थापित करें।




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