भाजपा से खोई केंद्र की सत्ता क़े द्वार की चाबी
उप्र : 'राम' क़े लिए 'काम' भुलाया तो जनता को ग़ुस्सा आया
* अति आत्मविश्वास ले डूबा प्रदेश में भाजपा को * आंतरिक सर्वे में रिजेक्ट सांसदों को थमा दिए टिकट * मोदी भी मुमकिन न बना पाए अकर्मण्य सांसदों की जीत
(हरिमोहन विश्वकर्मा )
लखनऊ। उप्र को आजादी क़े बाद से केन्द्र की सत्ता की चाबी यूँ ही नहीं कहा जाता है, ये बात 2024 में 18वीं लोकसभा क़े चुनाव परिणामों ने तय कर दी है। राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से 80 जीतने का दम भर रही भारतीय जनता पार्टी को प्रदेश ने ऐसी पटखनी दी है कि अच्छे से अच्छे दिग्गज भी चौकड़ी भूल गए। समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और आप क़े जिस गठबंधन में लोकसभा चुनाव से पहले लोकसभा सीटों क़े बंटवारे को लेकर रार मची हुई थी। उन्हीं दलों ने इंडिया गठबंधन क़े बैनर तले भारतीय जनता पार्टी क़े केन्द्र में तीसरी बार निर्विघ्न सत्ता पाने क़े रास्ते में बेड़ियाँ डाल दीं। चुनाव पूर्व जिस कांग्रेस को सपा सहित लगभग सभी दल अछूत मान रहे थे, उसी कांग्रेस ने सपा से मिली 17 सीटों पर फिलहाल गज़ब का प्रदर्शन करते हुए 6 सीटों पर जीत हासिल कर ली है और 3 सीटों पर आगे है। सबसे शानदार प्रदर्शन तो समाजवादी पार्टी ने किया है जिसने 2019 में जीती गई 5 सीटों को पीछे छोड़ते हुए ढाई दर्जन सीटें तो जीत ली हैं और एक दर्जन से ज्यादा पर आगे है। कहा जा सकता है कि लगातार तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर बैठने का सपना देख रहे नरेंद्र मोदी को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगता नजर आ रहा है। हिंदुत्व क़े कट्टर चेहरे समझे जाने वाले योगी क़े उत्तर प्रदेश में राम मंदिर का मुद्दा पीछे छोड़ते हुए बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए को फिलहाल सिर्फ़ 35 सीटें मिलती नजर आ रही हैं। और तो और भाजपा रामलला की धरती से जुड़ी अयोध्या सीट गंवा चुकी है। वहीं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन के खाते में 45 सीटें आती दिख रही हैं। इनमें सपा को 37 और कांग्रेस को 8 सीटों पर बढ़त हासिल है। बहरहाल कई सीटों पर मुकाबला तगड़ा चल रहा है। जो बीजेपी राज्य में 80 की 80 सीटें जीतने का दावा कर रही थी, उसके लिए सीटों में गिरावट काफी अप्रत्याशित लग रहा है। सबकी जुबान पर सवाल है कि आखिर वोटबैंक खिसकने के पीछे क्या वजह रही। यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या ओवरकॉन्फिडेंस बीजेपी को ले डूबा। वास्तव में लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के वोटिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव नजर आया है। 24 जनवरी को राम मंदिर क़े उद्घाटन क़े बाद से भाजपा के पक्ष में बना माहौल बिखरता नजर आया। अगर इसके कारणों में जाएं तो उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रति मोहभंग के सबसे बड़े कारण में से एक प्रत्याशियों से नाराजगी रही है। लगभग हर सीट पर यही स्थिति रही कि पार्टी के प्रत्याशी के विरोध की स्थिति रही। लोग यही कहते नजर आए कि आखिर कब तक मोदी के नाम पर ही कैंडिडेट्स को जीत दिलाते रहेंगे। भाजपा के अधिकांश सांसदों और स्थानीय नेताओं के ख़िलाफ़ बहुत ग़ुस्सा रहा लेकिन संगठन मोदी है तो मुमकिन क़े नारे में उलझा रहा। बीएसपी के वोटबैंक में मामूली गिरावट है लेकिन वो बीजेपी को नहीं गया। दलित मतदाता पूरी तरह से समाजवादी पार्टी के गठबंधन के पक्ष में लामबंद हो गए और बीजेपी का ठीक-ठाक वोट बैंक भी सपा कांग्रेस को मिल गया। वहीं यादव और मुसलमान वोटर्स भी एकमुश्त गठबंधन के पक्ष में ही रहा। ऐसी स्थिति में भाजपा को लगभग 30 सीट का नुक़सान हो गया है।
जनता में पीएम मोदी के प्रति भी ग़ुस्सा क़े बजाय बल्कि उदासीनता देखी गई। उन्हें फ्री राशन का श्रेय तो मिला लेकिन इस बार उनके नाम पर वोट पड़ता नजर नहीं आया। यहां मोदी की तुलना में योगी ज़्यादा लोकप्रिय नजर आ बीजेपी नेतृत्व ने 2024 के रण को कुछ ज्यादा ही हल्के में ले लिया। खबर लिखे जाने तक आए सभी 543 सीटों के रुझानों में एनडीए सरकार बहुमत के आंकड़े को पार कर चुकी है। रुझानों में एनडीए 270 सीटों पर आगे है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि रुझानों में इंडिया गठबंधन जोरदार टक्कर दे रहा है। कांग्रेस की अगुवाई वाला इंडिया गठबंधन अब तक 251 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है।लोकसभा चुनाव में मात्र 5 सीटें जीती थीं वही सपा ढाई दर्जन सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है और आधा दर्जन से अधिक सीटों पर आगे चल रही है।
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