राम मंदिर आन्दोलन की स्मृतियां 'एक गिलहरी का प्रयास मेरा भी रहा'
लखनऊ । राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए देशभर से हज़ारों रामसेवकों का लखनऊ में चारबाग़ रेलवे स्टेशन पर आना होता था। चारबाग़ बस अड्डा भी पास में ही था। रामसेवकों के जलपान की व्यवस्था उनके लिए भोजन की व्यवस्था तथा अयोध्या जाने के लिए खाने के पैकेट का इंतज़ाम चारबाग़ स्टेशन पर टेंट लगाकर के हमलोग करते थे। हमारे महानगर अध्यक्ष स्वर्गीय भगवती प्रसाद शुक्ल लगातार हमारा उत्साह वर्धन करते थे। किसी भी कार्यकर्ता ने दिन को दिन और रात को रात ना समझकर एक मिशन के भाव से सेवा की है।
यह स्मृतियां भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता आलोक अवस्थी ने हिन्दुस्थान समाचार से साझा की। उन्होंने बताया कि संघ की व्यवस्था में उस समय हमारे प्रांत प्रचारक स्वांतरंजन का हम स्वयंसेवकों को यह निर्देश था कि हर घर से 10 पैकेट जिसमें 4 पूड़ी (अजवाइनऔर नमक), गुड़ और अचार के साथ ठीक से पैक किया हुआ हो उसे एकत्रकर वितरण केंद्रों तक पहुंचाएं। हलवाई लगाकर खाना बनाने से मना किया गया था। अधिक से अधिक जन भागीदारी हो उसके लिए हर घर में जा करके अनुरोध कर हम सब आग्रह करके उनके यहां से खाना लेकर आते थे। रामधुन में सब लोग स्वाभाविक रूप से सेवा के लिए जुड़ गये थे। हमने यह भी पाया किसी के यहां से यदि एक दिन खाना लिया हो तो वो फिर पूछते थे कि आपने अगले दिन हमें सेवा का अवसर क्यों नहीं दिया। मैंने माताओं के आंसुओं को भी देखा और बेबसी भी देखी की भगवान श्रीराम का मंदिर कब बनेगा।
उन्होंने बताया कि बीच-बीच में अयोध्या जाना भी होता रहता था। क्योंकि लखनऊ स्टेशन अयोध्या जाने वालों का जंक्शन होता था। और हमें कभी कभी बड़े नेताओं के साथ सहयोगी के रूप में भेजा जाता था।
उन्होंने बताया कि हुसैनगंज चौराहे पर मेरे मित्र प्रदीप भार्गव का घर विश्व हिंदू परिषद की कार्यवाही का केंद्र रहता था। प्रदीप के पिता विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी थे। अक्सर वहां अशोक सिंहल का प्रवास होता था। उन्होंने कहा कि रामजन्मभूमि आंदोलन में मुलायम सरकार दमनकारी थी, उसकी परिणति अयोध्या में रामसेवकों के ऊपर नृशंसता से गोली चलवाकर की गई थी। हमने हताशा-निराशा और उत्साह की परिणति के फलस्वरूप विवादित ढाँचे को भी गिरते देखा था और हमारी वर्तमान पीढ़ी भगवान रामलला के भव्य मंदिर के स्वरूप को साकार होते हुए भी देख रही है।